Chanakya Niti: दो बार अपमान बर्दाश्त करना समझदारी! मगर बार-बार अपमान सहते रहना अपराध भी है और मूर्खता भी!
Chanakya Niti

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में कई बातों पर अपना अलग मत दर्शाया है. दुनिया उन्हें ‘कौटिल्य’ के नाम से भी जानती है. आचार्य की भिन्न-भिन्न विषयों पर बनाई नीतियां आम लोगों के जीवन को स्पर्श करती है, उन्हें प्रभावित और प्रेरित करती है. उदाहरण के लिए उनका यह सोचना कि किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता से ज्यादा सीधा नहीं होना चाहिए. वन में जाकर देखें कि लोग सीधे तने वाले वृक्षों की कटाई ज्यादा करते हैं, टेढ़े तने को छूना भी नहीं चाहते. इसी संदर्भ में उनका मानना है कि बार-बार किसी का अपमान सहना सज्जनता नहीं मूर्खता है. वास्तव में आपका बार-बार अपमान करने वाला आपकी परेशानी और चुप्पी को अपनी जीत समझकर खुश होता है. वह आपको महज मनोरंजन का साधन समझता है, ऐसे में आपको अपनी सज्जनता की प्रवृत्ति पर ध्यान देने की जरूरत है.

* दुर्गंध सिर्फ सड़े-गले फूलों से ही आती है. ताजे-खिले फूल तो आसपास के वातावरण को भी महकाते हैं. ठीक इसी तरह दूसरों का अपमान करने वाले नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग पूरे वातावरण को दूषित करते हैं.

* जमीन से आसमान की ऊंचाई को छूने वाला व्यक्ति कभी किसी का अपमान नहीं कर सकता. लेकिन इनमें कुछ ऐसे लोग जरूर होते हैं, जो किसी क्षेत्र विशेष में थोड़ा बहुत नाम-दाम कमा लेते हैं. ऐसे लोगों का अहम् हमेशा उनके सर चढ़ कर बोलता है. यद्यपि ऐसे लोग ऐसे लोग अविकसित मस्तिष्क वाले होते हैं, और एक दिन अपनी ही हरकतों से अपने ही खोदे गड्ढे में गिर जाते हैं. यह भी पढ़ें : Chandra Grahan 2022: दीपावली पर सूर्य ग्रहण! और अब देव दिवाली पर लग रहा है चंद्र ग्रहण! जानें चंद्र ग्रहण का देव दिवाली पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

* आम तौर पर जब कोई आपका अपमान करता है तो अगर आप भी उसी की भाषा में उसका जवाब देंगे तो, हो सकता है, आपको कुछ देर के लिए अच्छा लगे, लेकिन ये आपको मानसिक रुप से बाद में परेशान करेगा और वो पल आपके लिए बुरी याद बनकर रह जाएगा. यही नहीं समाज में आपकी इज्जत कम होगी.

* जब कोई किसी का अपमान करता है तो बहुत थोड़े लोग होते हैं, जो समझदारी से काम लेते हैं. चाणक्य नीति के अनुसार अगर कोई आपका अपमान करता है तो उस पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया ना दें. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अपमान बर्दाश्त करते रहिये. क्योंकि दो बार अपमान बर्दाश्त करना समझदारी है, मगर अपमान सहते रहना अपराध है. महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां को उसकी 100 गलतियां क्षमा करने का वचन दिया था, और जब शिशुपाल कृष्ण का अपमान लगातार करता रहा, अंततः श्रीकृष्ण ने उसकी 101 वीं गलती पर उसका गर्दन अपने सुदर्शन चक्र से उड़ा दिया.

आपने भी देखा होगा कि राह चलते हाथी पर कुत्ते भोंकते हैं, मगर हाथी अपने रास्ते चलता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लोग कुत्तों की ही खिल्ली उड़ाते हैं.

* लोग आपके व्यक्तित्व से नहीं कर्म से प्रभावित होते हैं. आपका कर्म ही आपके व्यक्तित्व की शान बढ़ाता है. आप जब तक स्वयं नाम-दाम नहीं अर्जित करेंगे, लोग आपको हलके से लेंगे. मथुरा के राजा कंस के दरबार में जब कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ पहुंचे थे, तो सारे दरबारी उनकी खिल्ली उड़ा रहे थे, लेकिन जब कंस के शक्तिशाली राक्षसों को भगवान कृष्ण ने धूल चटाई, तब स्वयं कंस को भी कृष्ण के दिव्य बल के सामने अपना मस्तक झुकाना पड़ा था.

* हीरा जब तक कोयले की खान में होता है, उसकी चमक फीकी ही रहती है, लोग उसे कोयले के समान महज पत्थर मानते हैं, लेकिन जब जौहरी उसे तराशता है, तब उसकी कीमत हजार गुना बढ़ जाती है. कहने का आशय यह है कि अगर आपको अपने क्षेत्र में सफलता अर्जित करनी है तो अपने लक्ष्य से चूके नहीं, कोई आपका अपमान करता है तो भी अपने भीतर अपमान से उपजी आग को ज्वलंत रखिये, अंततः आपको हीरे-सा चमकने से कोई नहीं रोक सकता.