चाणक्य मुर्गे से चार महत्वपूर्ण गुणों को ग्रहण करने पर जोर देते हैं. उदाहरण के लिए यथा समय जागना, युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहना, बंधु-बांधवों को उनका उचित हिस्सा देना, तथा भरपेट भोजन कर खुद को सदा सक्रिय रखना. आचार्य चाणक्य ने अपनी इस नीति को संस्कृत के इन श्लोकों से बताने की कोशिश की है. समझदार व्यक्ति मुर्गे की इस आदत को अपनाकर अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.
प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागं च बन्धुषु ।
स्वयमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ॥
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र के छठे अध्याय के 17वें श्लोक में लिखा है कि व्यक्ति को पुस्तकों का अध्ययन करने के अलावा जीव-जंतुओं से भी कुछ सीख लेना चाहिए. अपने कार्य अथवा व्यवहार में एकाग्रता नहीं होने पर व्यक्ति को जीवन में असफलता का स्वाद बार-बार चखना ही पड़ता है. इसके लिए मनुष्य को मुर्गे की चार आदतों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए. यह भी पढ़ें : Tattoo Effect: डॉक्टरों ने कहा, ‘टैटू गुदवाने से Hepatitis, HIV और Cancer का खतरा’
ब्रह्म मुहूर्त में उठनाः आचार्य चाणक्य ने अन्य जीवों की तरह मुर्गे की जीवन शैली को भी काफी करीब से देखा समझा है. आचार्य के अनुसार मुर्गा अकेला जीव है, जो ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाता है, और तत्परता से अपने व अपने बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था करता है. अगर मनुष्य को जीवन में सफल होना है तो उसे भी मुर्गे की तरह सुबह-सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए. इससे आपके पास अध्ययन से लेकर ढेर सारे कार्य करने का पर्याप्त समय और ऊर्जा रहता है. सुबह किये गये अध्ययन अथवा कार्य से सफलता की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं.
युद्ध के लिए सदा तत्पर रहनाः मुर्गे की एक और खास आदत है, युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहना. यहां युद्ध का आशय है, व्यक्ति को किसी भी हालात में किसी भी तरह के कार्य के लिए सदा सजग रहना चाहिए. आपका आलस्यपन आपको पीछे धकेल सकता है. आप सफलता हासिल करने से चूक सकते हैं.
अपनो को समान हिस्सा देनाः मुर्गे की तीसरी प्रशंसनीय आदत यह है कि वह जो भी खाद्य-पदार्थ हासिल करता है, उसे अपने बंधु-बांधवों को बराबर हिस्सा देता है. अगर आपने जीवन में कुछ भी सफलता प्राप्त करते हैं, तो उसका शेयर अपने भाई को जरूर दें, इससे रिश्ते तो प्रगाढ़ होते ही हैं, साथ ही आपके हर संकट में आपको भाई का साथ मिलता है.
भर पेट भोजनः मुर्गे की एक और अच्छी आदत है कि वह भरपेट भोजन करता है. आचार्य का मानना है कि जो व्यक्ति डटकर खाना खाता है, वह हष्ट-पुष्ट रहता है. जब तन स्वस्थ और निरोग रहता है तो व्यक्ति अपने कार्य को अच्छी तरह से अंजाम देता है. उसे निश्चित तौर पर सफलता प्राप्त होती है.