Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की चेतावनी! ऐसे 3 लोगों को न दें तवज्जो! ये आपके जीवन में जहर घोल सकते हैं!
Chanakya Niti (Photo Credits: File Image)

कुछ मित्र डबल स्टैंडर्ड वाले होते हैं, जो आपके अच्छे समय में आपका सबसे बड़ा हितैषी बनने का नाटक करते हैं, लेकिन आपका बुरा समय शुरू होते ही उनकी आंखें, उनका नजरिया बदल जाता है, और यही उनका असली चेहरा होता है. आचार्य चाणक्य ने दोस्ती की विवेचना इन श्लोकों में बड़ी समझदारी के साथ की है. कहा जाता है कि इन श्लोकों का गहराई से अध्ययन और मनन करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी किसी से हार नहीं सकता, क्योंकि उसे एहसास होता है कि जीवन में किन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए और किन से बच कर रहना चाहिए, क्योंकि वे आपके जीवन में जहर घोल सकते हैं. आइये जानते हैं इस संदर्भ में क्या कहना चाहा है आचार्य चाणक्य ने... यह भी पढ़ें: Chanakya Niti: सफलता हासिल करने के आचार्य चाणक्य के चार रामबाण सरीखी नीतियां! जीवन में कभी असफल नहीं होंगे!

मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।

दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥

मूर्खों से मित्रता

आचार्य चाणक्य के अनुसार जीवन में किसी मूर्ख से नाता जोड़ने अथवा उसे बुद्धिमानी का लेक्चर देने से कोई लाभ नहीं मिलता. यहां मूर्ख का आशय वह व्यक्ति है, जो स्वयंभु बनने की कोशिश करता है, वह खुद से ज्यादा श्रेष्ठ किसी को नहीं समझता. ऐसे लोगों से ज्ञान-विज्ञान की बात करना निरर्थक ही होगा. ये ना खुद का विकास कर सकते हैं, ना किसी और को विकसित होते देख सकते हैं. इससे आपको सिवाय नुकसान के और कुछ नहीं मिलता, लिहाजा ऐसे लोगों से जितनी जल्दी अलग हो जाएं, आपके लिए बेहतर होगा.

इस तरह की महिलाएं भी कष्ट देती हैं

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में महिलाओं की काफी प्रशंसा भी की है, लेकिन इस श्लोक में उन्होंने माना है कि ऐसी महिलाओं से दूर रहना चाहिए जो किसी की सुनती नहीं, हमेशा अपना ही चलाती हैं. इस तरह की महिलाओं का स्वभाव ज्यादातर दुष्टता से भरा होता है. दुर्भाग्य से अगर ऐसी औरत किसी की पत्नी बनकर घर आ जाए तो घर को नर्क बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, ये महिलाएं पति के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के मन में भी जहर ही घोलने का कार्य करती हैं. लिहाजा विवाह के लिए तैयार युवकों को स्त्री के इस व्यवहार का आकलन करने के बाद ही विवाह के लिए सहमति देनी चाहिए.

सदा अपना दुखड़ा रोने वाले

आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का तीसरा संकेत यह मिलता है कि अगर आप किसी दुखियारे की मदद करना चाहते हैं तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अगर आप पायें कि सामने वाले के चेहरे पर संतुष्टि अथवा खुशी लाना नामुमकिन है, तो ऐसे लोगों से जितनी जल्दी नाता तोड़ लेंगे, आपका भला होगा. ऐसे लोगों को समझाना अपनी मेहनत और ऊर्जा का क्षरण करना ही होगा. ऐसे लोगों से मित्रता रखकर आप स्वयं भी नकारात्मक सोच वाले बन सकते हैं.