Chanakya Niti: सफलता हासिल करने के आचार्य चाणक्य के चार रामबाण सरीखी नीतियां! जीवन में कभी असफल नहीं होंगे!
Chanakya Niti (Photo Credits: File Image)

Chanakya Niti: विकट से विकट परिस्थितियों में भी आचार्य चाणक्य ने जीवन में कभी हार नहीं मानी और अपनी नीतियों के जरिये निरंतर सफलता हासिल करते रहे. उनकी तर्क संगत नीतियां किसी रामबाण से कम नहीं. यहां आचार्य के उन 4 रामबाण के बारे में बात करेंगे, जिसे अपना कर आप बड़ी से बड़ी लड़ाई जीतकर सफलता हासिल कर सकते हैं. आइये जानें क्या हैं वे चार महत्वपूर्ण नीतियां?  यह भी पढ़ें: ये तीन सबसे करीबी लोग आपके लिए आस्तीन के सांप हो सकते हैं! समय रहते इनसे बना लें दूरी!

1- सफलता के लिए सज्जनता से ज्यादा चतुर होना चाहिए

नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।

छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥

आचार्य चाणक्य यहां स्पष्ट करते हैं कि व्यक्ति का ज्यादा सीधापन और सज्जनता कभी भी उसके गले की हड्‌डी बन सकता है. आचार्य उदाहरण स्वरूप बताते हैं, जिस तरह वन में सीधे वृक्ष पहले काटे जाते हैंक्योंकि टेढ़े-मेढे वृक्ष के मुकाबले सीधे वृक्षों को काटना ज्यादा आसान होता है. यही वजह है कि व्यक्ति के सीधेपन का फायदा हर कोई उठाने की कोशिश करता है. इसलिए इस कलयुग में सफलता पाने के लिए थोड़ा चालाक बनना जरूरी है.

2- सफलता के लिए सही रास्ता चुनें

कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ 

कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः 

 उपरोक्त श्लोक में आचार्य चाणक्य ने बताने की कोशिश की है कि अगर आप भविष्य खुद को सुखद और सहज बनाना है तो सही समयसही मित्रसही ठिकाने, पैसे कमाने के सही साधनपैसे खर्चा करने के सही तरीके और अपनी ऊर्जा स्रोत पर केंद्रित हों. यही बातें आपको जीवन के हर मोड़ पर कामयाबी दिलाती है.

3- फैसला लेने से पूर्व सही-गलत की परख करें

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते 

ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव हि 

उपरोक्त श्लोक में आचार्य ने बताया है कि जो व्यक्ति हर चीज को पाने के लालच में हर घड़ी उसके लिए परेशान रहता है, इस प्रयास में वह अकसर अच्छी वस्तु को छोड़ देता है, गलत चीज को हासिल कर प्रसन्नता से फूला नहीं समाता. ऐसे लोग जीवन में कभी भी सफलता हासिल नहीं कर पाते. इसलिए जब भी कोई निर्णय लें तो पहले सही-गलत का परख अवश्य कर लें.

4- कर्म से ही सफलता मिलती है

गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थितः।

प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते॥

 अर्थात, आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य हमेशा से अपने कर्म और गुणों से श्रेष्ठ कहलाता है. राजमहल के शिखर पर बैठने से कौवा गरुड नही हो जाता. उसी तरह एक व्यक्ति के मूल्यउसकी महानता उसके स्थान या स्थिति द्वारा निर्धारित नहीं होती बल्कि उनके गुणों द्वारा निर्धारित होती है. श्रेष्ठता गुणों से आती हैन कि ऊँचे स्थान पर बैठने से.