Azadi Ka Amrit Mahotsav 2021: भारत को ब्रिटिश हुकूमत से 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी. नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) ने लाल किले से तिरंगा फहराया. लेकिन कुछ लोग यह जान हैरान होंगे कि 1907 में एक भारतीय वीरांगना ने विदेश में तिरंगा फहराकर आजादी का पूर्व संकेत दे दिया था? कौन थी वह भारतीय वीरांगना? यह भी पढ़ें: 75th Independence Day: इस वर्ष हम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाएंगे कुछ इस अंदाज में! जब घर-घर लहराएगा तिरंगा प्यारा!
भारत को ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने शहादत दी होगी. कुछ ने सुर्खियां बटोरीं तो कुछ गुमनामी अंधेरे में खोकर रह गये. सत्तासीन होने के बाद कांग्रेस ने भी उन्हें ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं समझी. इस गुमनामी में महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है. रानी चेनम्मा, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल, एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली जैसी महिला नेत्रियों का नाम आज की युवा पीढ़ी ने शायद ही सुनी होगी. आज आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर हम ऐसी ही एक वीरांगना पारसी महिला मैडम भीकाजी कामा की बात करेंगे, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी मोर्चा संभाला. भीकाजी कामा पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने आजादी से 4 दशक पूर्व 1907 में ही विदेश में भारतीय तिरंगा फहराकर सत्तासीन ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थी.
राष्ट्र के लिए पति को छोड़ा!
भारतीय मूल की पारसी परिवार में जन्मीं भीकाजी का जन्म 24 सितंबर 1861 में हुआ था. साल 1885 में उनकी शादी रुस्तमजी कामा से हुई थी. रूस्तमजी कामा उच्च शिक्षित एवं पेशे से वकील थे. भीकाजी के लिए राष्ट्र प्रेम सर्वोपरि था, जबकि पति ब्रिटिश हुकूमत की पैरवी करते थे, जो भीकाजी को पसंद नहीं था. विवाद इतना बढ़ा कि दोनों अलग हो गये. भीकाजी के राष्ट्रवादी विचारों से रुस्तमजी इतने खफा थे कि भीकाजी की मृत्योपरांत रूस्तमजी उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं गए.
लंदन में रहकर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल किया
भीकाजी ने भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए सरकार विरोधी हर एक्टिविटीज में शामिल होती थीं. 1996 में बम्बई में जब प्लेग का रोग फैला, तो भीकाजी मरीजों की सेवा में जुट गईं. इस प्रयास में वे भी प्लेग की चपेट में आ गईं. डॉक्टर्स ने उन्हें लंदन जाकर इलाज की सलाह दी. लंदन में वे प्लेग मुक्त तो हो गईं, लेकिन यहीं उनकी मुलाकात श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और विनायक दामोदर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों से हुई. भीकाजी उनसे इतनी प्रभावित हुईं कि स्वस्थ होने के बाद वे स्वदेश लौटने के बजाय वहीं रहकर भारतीय क्रांतिकारियों के पक्ष में समर्थन जुटाने लगीं.
दादाभाई नौरोजी से प्रभावित हुई भीखाजी
लंदन में भीकाजी की मुलाकात दादाभाई नौरोजी से हुई. उन्होंने भीकाजी को अपना निजी सचिव रख लिया. कहते हैं कि भीकाजी देश-विदेश में घूम-घूम कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल तैयार करती रहीं. इस दरम्यान उन्होंने भारतीय आंदोलनों को प्रवासी भारतीयों के समक्ष मुखर किया. उन्हें आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने भारतीय आंदोलनों पर क्रांतिकारी लेख लिखे, भाषण दिये, 'पेरिस इंडियन सोसाइटी' बनाई. क्रांतिकारी एवं 'वंदे मातरम्' जैसी मैगजीन शुरू की. भीकाजी की गतिविधियों से ब्रिटिश हुकूमत ने फ्रांस सरकार से उनके प्रत्यर्पण की मांग की. मगर फ्रांस तैयार नहीं हुआ. लेकिन 1914 में प्रथम विश्व युद्ध में जब फ्रांस और ब्रिटेन साथ हो गये तो भीकाजी को फ्रांस छोड़ना पड़ा.
भीकाजी ने इस तरह इतिहास रचा
साल 1907 में स्टटगार्ट (जर्मनी) में अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस का अधिवेशन था. यहां भाग ले रहे हर देश के ध्वज लगे थे. जबकि भारतीय ध्वज के रूप में ब्रिटिश ध्वज लगा था. भीकाजी ने इसका पुरजोर विरोध किया. उन्होंने रातों-रात नया तिरंगा बनाया और ब्रिटिश ध्वज की जगह तिरंगा फहराया. यह पहला मौका था, जब विदेशी जमीन पर भारतीय झंडा लहराया था, तब भीकाजी ने कहा था, -दुनिया वालों, देखो यह है भारतीय ध्वज, जो हर भारतीयों का प्रतिनिधित्व करता है. इसे सलाम करो. हमने इसे अपने रक्त से सींचा है. हजारों क्रांतिकारियों ने इसके सम्मान में शहादतें दी हैं, मैं पूरी दुनिया से अपील करती हूं कि वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करे.
राष्ट्रीय ध्वज से अलग क्या था इस तिरंगा में!
भीकाजी ने इस तिरंगे का डिजाइन अपने सहयोगी सरदार राणा की मदद से तैयार किया था. इसमें हरी, पीली एवं लाल पट्टियां थीं. हरी पट्टी पर 8 कमल के फूल भारत के आठ बड़े प्रांतों के प्रतीक स्वरूप थे. बाद में इसी झंडे से मिलता-जुलता राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन किया गया था. राणा जी एवं कामा जी द्वारा तैयार यह ध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदार राणा के पौत्र एवं भाजपा नेता राजेंद्रसिंह राणा के घर पर धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा हुआ है.