दाढ़ी एवं बाल बढ़ाने वाले या हिप्पियों की जीवन शैली क्या आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं!
प्रतीकात्मक तस्वीर, (Photo Credits: Pixabay)

सन 1999 की बात है, जब हॉलीवुड की प्रख्यात अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट एक इवेंट की थीम के अनुरूप पूरे बालों के साथ प्रस्तुत हुई थीं. थीम को पूरा तवज्जो देते हुए जूलिया ने बगल के बालों को भी साफ नहीं करवाया था. अमेरिका की ख्याति प्राप्त इस शख्सियत की इस अदा ने फैशन जगत की सोच को एक ऐसी दिशा दी कि लोगों ने बाल कटाना ही नहीं बल्कि शेव कराना भी छोड़ दिया. यद्यपि कुछ लोगों ने इस घटना की निंदा की तो कुछ ने स्वच्छता एवं लिंगवाद पर अच्छी खासी बहस भी छेड़ी. लेकिन फैशन के इस नए ट्रेंड पर अंकुश नहीं लगा सके. बताया जाता है कि इसके बाद सालों-साल तक दाढ़ी नहीं बनाने अथवा सिर के बाल नहीं कटाने के ट्रेंड को खूब हवा मिली. इस ट्रेंड में महिलाओं की सहभागिता भी पुरुषों से कम नहीं थी. माना जाता है कि बाद में रॉबर्ट्स जूलिया की इस नो सेविंग’ की प्रवृत्ति को कई हस्तियों ने भी अपनाया, जिसकी वजह से यह फैशन लंबे समय तक चला.

हिप्पी युग

जो महिलाएं अथवा पुरुष अपने शरीर के अनावश्यक बालों को साफ नहीं करते अथवा पुरुष सिर के बालों को नहीं कटवाते हैंउनके बारे में कहा जाता है कि वे हिप्पियों के नक्श-ए-कदम पर चल रहे हैं. जिस तरह रॉबर्ट जुलिया के बारे में अकसर देखा जाता है कि वह बगल के बालों को भी साफ नहीं करतींइस तरह की टेंडेंसी अकसर हिप्पियों में ही देखने को मिलती है. क्या कभी किसी ने सोचा है कि वे ऐसा क्यों करतीं? हिप्पियों में अकसर देखा जाता है कि वे लंबे समय शेविंग नहीं करते हैं. सर के बालों को भी वे इस कदर बढ़ाते हैं और कंघी नहीं करते कि बाल आपस में उलझकर जम से जाते हैं. इसके पीछे किसी तरह के सेक्सिज्म अथवा विद्रोही होने जैसी बात नहीं है. इस संदर्भ में एक पुरानी घटना हैजिसके बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है. जिन दिनों हिप्पियों का ट्रेंड शिखर पर था, तब कहा जाता है कि हिप्पी समुदाय सिर अथवा शरीर के बाल इसलिए नहीं कटवाते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि आपके बाल आपकी स्वतंत्र सोच को प्रतिबिंबित करते हैं.

जारी है ट्रेंड ऋषि-मुनियों के युग से?  

उनकी इस सोच का प्रबल उदाहरण हैं वैदिक काल के वे ऋषि-मुनिजो सालों-साल दाढ़ी अथवा बालों को कटाए बिना अपनी साधना में तल्लीन रहते थे. उनका मानना था कि बाल अथवा दाढ़ी पर कैंची चलाने का आशय है उनकी आजादी अथवा उनकी सोच पर कैंची चलाना. यही वजह है कि वे अपनी दाढ़ी अथवा बालों को कटवाए बिना निरंतर बढ़ने देते थे, जो बढ़ते समय के साथ जटाओं का रूप अख्तियार कर लेते थे.