लखनऊ, 16 जनवरी : उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से लगातार मिल रही चुनौति के बाद भारतीय जनता पार्टी अब 'हिंदू पहले' की नीति पर चल रही है. 'हिन्दू पहले' की नीति दिवंगत कल्याण सिंह द्वारा प्रतिपादित नीति का अनुसरण करती है. इस नीति का उद्देश्य जातिगत रेखाओं को धुंधला करना और सभी हिंदुओं - विशेषकर ओबीसी और दलितों को एक छत्र के नीचे लाना है. शनिवार को भाजपा द्वारा जारी 107 उम्मीदवारों की पहली सूची स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि पार्टी एक समावेशी छवि पेश करने की कोशिश कर रही है और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के ओबीसी को अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के प्रयासों को कुंद कर रही है.
भाजपा की पहली सूची में 44 ओबीसी और 19 दलित हैं, यानी लगभग 60 प्रतिशत टिकट और यह संयुक्त दलित और ओबीसी आबादी के अनुपात में है. 2017 में भी पार्टी ने इन सीटों पर 44 ओबीसी को मैदान में उतारा था. ओबीसी में पार्टी ने जाटों को सबसे ज्यादा 16 सीटों के साथ प्रतिनिधित्व दिया है. यह कदम किसानों के आंदोलन के मद्देनजर जाट भावनाओं को शांत करने का एक प्रयास है. गुर्जरों को सात और लोधों को छह सीटें मिली हैं. सैनी, कश्यप, कुशवाहा, प्रजापति और कुर्मी उम्मीदवारों को भी शामिल किया गया है. भाजपा ने 19 दलितों में से 13 जाटवों को टिकट दिया है, जो मायावती के वफादार मतदाता आधार हैं. वाल्मीकि, धोबी, खटीक, पाई और बंजारा जैसी अन्य उप जातियों को भी समायोजित किया गया है. यह भी पढ़ें : Goa Election 2022: शिवसेना-गोवा में NCP के साथ करेगी गठबंधन, 10-15 से सीटों पर लड़ेगी चुनाव
जाहिर है, भाजपा बसपा के वोट आधार पर हमला कर रही है क्योंकि मायावती अब तक निष्क्रिय रही हैं और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि ऊंची जातियों में ठाकुरों को 18 सीटों के साथ हिस्सा मिला है, जबकि ब्राह्मण 10 सीटों के साथ और वैश्य 8 सीटों के साथ पीछे हैं. जाहिर तौर पर बीजेपी इस बार ब्राह्मण वोटरों को खुश करने के लिए ज्यादा जोर नहीं लगा रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा की महिला आउटरीच का मुकाबला करने के लिए, बीजेपी ने अपनी पहली सूची में 10 महिला उम्मीदवारों को शामिल किया है, जो 2017 की तुलना में कम है. पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि पार्टी जान-बूझकर जातिगत रेखाओं को खत्म करने की कोशिश कर रही है. पार्टी पदाधिकारी ने कहा, "हम अखिलेश यादव की तरह जातिवाद को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं. हम दलितों से लेकर ब्राह्मणों तक सभी हिंदुओं को एकजुट करने में विश्वास करते हैं. योगी आदित्यनाथ का यही मतलब था जब उन्होंने हाल ही में 80 बनाम 20 की बात की थी."