Tripura Violence: एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा की स्वतंत्र एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया. अधिवक्ता प्रशांत भूषण के मा जन्म, देखें पहली तस्वीर" /> BREAKING: सिद्धू मूसेवाला के घर फिर गूंजी किलकारी, मां चरण कौर ने दिया बेटे को जन्म, देखें पहली तस्वीर

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Tripura Violence: एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा की स्वतंत्र एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया. अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर याचिका में केंद्र, डीजीपी त्रिपुरा और त्रिपुरा सरकार को प्रतिवादी के रूप में रखा गया है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील को याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और त्रिपुरा के स्थायी वकील को देने की अनुमति दी.

देश IANS|
Tripura Violence: एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
उच्चतम न्यायालय (Photo Credits: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली, 29 नवंबर: सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सोमवार को त्रिपुरा (Tripura) में सांप्रदायिक हिंसा की स्वतंत्र एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया. अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर याचिका में केंद्र, डीजीपी त्रिपुरा और त्रिपुरा सरकार को प्रतिवादी के रूप में रखा गया है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील को याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और त्रिपुरा के स्थायी वकील को देने की अनुमति दी. पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात करुंगी, त्रिपुरा हिंसा और बीएसएफ अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उठाऊंगी: सीएम ममता बनर्जी

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तिथि निर्धारित की है. भूषण ने तर्क दिया कि जिस तरीके से पुलिस मामले की जांच कर रही है, याचिकाकर्ता ने उसे दिखाया है. उन्होंने आगे तर्क दिया कि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है, हिंसा पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए लागू कर रही है और तथ्य-खोज रिपोर्ट पेश करने वाले वकीलों को नोटिस भेज रही है.

याचिका में दावा किया गया है कि 13 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच त्रिपुरा में संगठित भीड़ द्वारा घृणात्मक अपराध किए गए. याचिका में कहा गया है, इसमें मस्जिदों को नुकसान पहुंचाना, मुसलमानों के स्वामित्व वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जलाना, इस्लामोफोबिक और नफरत फैलाने वाले नारे लगाने वाली रैलियां आयोजित करना और त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण देना शामिल है.

इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि उन लोगों की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जो मस्जिदों को अपवित्र करने या दुकानों में तोड़फोड़ करने और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण देने के लिए जिम्मेदार हैं. मामला उस पीठ के सामने आया, जिसने हाल ही में संपन्न नगरपालिका चुनावों से पहले त्रिपुरा में कानून-व्यवस्था की स्थिति के प्रभावी नियंत्रण के लिए निर्देश पारित किए हैं.

हाशमी की याचिका में दावा किया गया है कि राज्य सरकार के अधिकारियों और पुलिस ने कथित घृणा फैलाने वाले अपराधों में शामिल अपराधियों के साथ हाथ मिला रखा है. इसमें कहा गया है, पुलिस और राज्य के अधिकारियों ने हिंसा को रोकने के प्रयास के बजाय दावा किया कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं था और किसी भी मस्जिद को आग लगाने की खबरों से इनकार किया गया है.

हालांकि, अंतत: पुलिस सुरक्षा कई मस्जिदों तक बढ़ा दी गई; धारा 144 आईपीसी के तहत आदेश जारी किए गए थे; और हिंसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे की भी घोषणा की गई. याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में एक स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की जाए, जैसा कि एसआईटी द्वारा त्रिपुरा में मानवता के तहत हमले शीर्षक वाली तथ्य-खोज रिपोर्ट से स्पष्ट है.

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उच्चतम न्यायालय (Photo Credits: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली, 29 नवंबर: सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सोमवार को त्रिपुरा (Tripura) में सांप्रदायिक हिंसा की स्वतंत्र एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया. अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर याचिका में केंद्र, डीजीपी त्रिपुरा और त्रिपुरा सरकार को प्रतिवादी के रूप में रखा गया है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील को याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और त्रिपुरा के स्थायी वकील को देने की अनुमति दी. पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात करुंगी, त्रिपुरा हिंसा और बीएसएफ अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उठाऊंगी: सीएम ममता बनर्जी

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तिथि निर्धारित की है. भूषण ने तर्क दिया कि जिस तरीके से पुलिस मामले की जांच कर रही है, याचिकाकर्ता ने उसे दिखाया है. उन्होंने आगे तर्क दिया कि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है, हिंसा पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए लागू कर रही है और तथ्य-खोज रिपोर्ट पेश करने वाले वकीलों को नोटिस भेज रही है.

याचिका में दावा किया गया है कि 13 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच त्रिपुरा में संगठित भीड़ द्वारा घृणात्मक अपराध किए गए. याचिका में कहा गया है, इसमें मस्जिदों को नुकसान पहुंचाना, मुसलमानों के स्वामित्व वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जलाना, इस्लामोफोबिक और नफरत फैलाने वाले नारे लगाने वाली रैलियां आयोजित करना और त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण देना शामिल है.

इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि उन लोगों की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जो मस्जिदों को अपवित्र करने या दुकानों में तोड़फोड़ करने और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण देने के लिए जिम्मेदार हैं. मामला उस पीठ के सामने आया, जिसने हाल ही में संपन्न नगरपालिका चुनावों से पहले त्रिपुरा में कानून-व्यवस्था की स्थिति के प्रभावी नियंत्रण के लिए निर्देश पारित किए हैं.

हाशमी की याचिका में दावा किया गया है कि राज्य सरकार के अधिकारियों और पुलिस ने कथित घृणा फैलाने वाले अपराधों में शामिल अपराधियों के साथ हाथ मिला रखा है. इसमें कहा गया है, पुलिस और राज्य के अधिकारियों ने हिंसा को रोकने के प्रयास के बजाय दावा किया कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं था और किसी भी मस्जिद को आग लगाने की खबरों से इनकार किया गया है.

हालांकि, अंतत: पुलिस सुरक्षा कई मस्जिदों तक बढ़ा दी गई; धारा 144 आईपीसी के तहत आदेश जारी किए गए थे; और हिंसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे की भी घोषणा की गई. याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में एक स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की जाए, जैसा कि एसआईटी द्वारा त्रिपुरा में मानवता के तहत हमले शीर्षक वाली तथ्य-खोज रिपोर्ट से स्पष्ट है.

मीडिया पर भड़की मीसा भारती, कहा- मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर किया गया पेश
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जब बैलट पेपर्स से वोटिंग होती थी तो क्या होता था हम भूले नहीं हैं... EVM पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बातें

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