
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित तीन भाषा फॉर्मूला को तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में लागू करने की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता का तर्क था कि ये राज्य केंद्र द्वारा तय की गई नीति के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं और इससे राष्ट्रीय एकता एवं शिक्षा के स्तर पर असमानता पैदा हो रही है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह नीति का मामला है और इसे लागू करना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है.
क्या है तीन भाषा फॉर्मूला?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, छात्रों को तीन भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए—इनमें से दो भारतीय भाषाएं होनी चाहिए. इसका उद्देश्य भाषाई विविधता को बढ़ावा देना और विद्यार्थियों को बहुभाषी बनाना है. हालांकि, कुछ राज्य इसे अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर हस्तक्षेप मानते हैं.
Supreme Court declines to entertain a PIL seeking implementation of the three-language formula, proposed by the National Education Policy (NEP) 2020, in Tamil Nadu, Kerala and West Bengal
— ANI (@ANI) May 9, 2025
तमिलनाडु की कड़ी आपत्ति
तमिलनाडु ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह तीन भाषा फॉर्मूला को लागू नहीं करेगा और दो भाषा नीति—तमिल और अंग्रेज़ी—को ही जारी रखेगा. केरल और पश्चिम बंगाल ने भी इस दिशा में केंद्र की पहल पर विशेष रुचि नहीं दिखाई है.
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट किया कि शिक्षा एक समवर्ती विषय है और केंद्र राज्यों पर किसी विशेष नीति को थोप नहीं सकता. अदालत ने कहा कि नीति को लागू करना प्रशासनिक निर्णय है, जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत संबंधित राज्य सरकारें तय करेंगी.