सिक्किम उच्च न्यायालय (Sikkim High Court) ने हाल ही में माना कि बिना किसी दृश्य चोट के थोड़ी सी भी प्रवेश (Slight Penetration) आईपीसी की धारा 376 एबी के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 5 के तहत बलात्कार (Rape) और गंभीर यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) के लिए पर्याप्त है. Sex Change: डॉक्टर ने नाबालिग का जबरन किया लिंग परिवर्तन, कर्नाटक HC ने आरोपी के खिलाफ केस रद्द करने से किया इनकार
न्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान और न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राय की खंडपीठ ने कहा, "आईपीसी के तहत रेप और पोक्सो एक्ट के तहत पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट का मामला दर्ज करने के लिए किसी भी हद तक पेनेट्रेशन पर्याप्त है.
पीड़िता का बयान विशिष्ट, सुसंगत और स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने अपना लिंग उसके प्राइवेट पार्ट में डाला था."
वर्तमान अपील POCSO अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसने अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376AB और POCSO अधिनियम की 5 (m) के तहत दोषी ठहराया था.
अपीलकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए अधिवक्ता बी.के. गुप्ता ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कोई भी बाहरी चोट दर्ज नहीं की गई थी. यह केवल लेबिया मिनोरा पर निशान प्रकट करता है, जो कि भेदक यौन हमले के लिए चार्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के एक महत्वपूर्ण गवाह मुकर गए, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हो गया है.
अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.के. छेत्री ने कहा कि आक्षेपित निर्णय में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और यह कि पीड़िता के अलावा, अभियोजन पक्ष ने उसकी मां और उसके पिता की भी जांच की, जिनमें से सभी ने अपीलकर्ता की पहचान की.
विशेष न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले में उनकी राय थी कि पीड़िता 12 साल से कम उम्र की बच्ची थी और उसने पीड़िता की गवाही को भी दृढ़ और स्पष्ट माना है. उसने घटना के बारे में और यह भी बताया कि कैसे अपीलकर्ता ने अपना लिंग उसकी योनि में डाला था, जो कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान के अनुरूप है.