West Bengal Assembly Elections 2021: पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है. वर्तमान में सूबे की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का किला ध्वस्त करने के लिए बीजेपी हर मुमकिन पैंतरे अपना रही है. हालांकि पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले एक सत्ता विरोधी लहर (एंटी इंकम्बेंसी) भी देखने को मिल रही है. इसी महीने हुए एक सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार से लोगों का मोहभंग हो रहा है. हालांकि फिर भी ममता सरकार की वापसी होगी और बीजेपी राज्य में दूसरी बड़ी पार्टी बनेगी. बीजेपी महासचिव का दावा 'मेरे पास ममता बनर्जी सरकार को समर्थन दे रहे 41 विधायकों की सूची'
बीजेपी का मुकाबला करने के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने वाम दलों (Left) और कांग्रेस (Congress) को ममता बनर्जी की अगुवाई में बंगाल के सियासी रण में उतरने का आह्वान किया. हालांकि दोनों दलों ने इस प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया. राज्य में कांग्रेस आगामी चुनावों के लिए वाम दलों के साथ सीट साझा करने को लेकर बातचीत कर रही है. इस बार कांग्रेस बंगाल में सीटों की मात्रा के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने वाली है. लेकिन टीएमसी के इस ऑफर से यह स्पष्ट हो गया कि वह बीजेपी के दमदार तैयारी से घबराई हुई है.
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को सर्वोच्च प्राथमिकता मानकर जुटी बीजेपी तैयारियों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है. बीजेपी 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने के लक्ष्य के साथ अपने दम पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बहुमत के लिए लड़ेगी. पार्टी नेताओं का दावा है कि सूबे में पार्टी को किसी अन्य दल के चुनावी सहयोग की आवश्यकता नहीं है. बीजेपी अपने दम पर बंगाल की 294 सदस्यी विधानसभा में 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी. हालांकि, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी के 200 से अधिक सीटें लाने के लक्ष्य का माखौल उड़ाया है. और दावा किया है कि बीजेपी उम्मीदवारों की अधिकतर सीटों पर जमानत तक जब्त हो जाएगी.
उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटों को जीतकर बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में गहरी पैठ बना ली है. बीजेपी को 40 फीसदी वोट हासिल हुआ. टीएमसी की झोली में 22 सीटे गई थी. जबकि वाम दल अपना खाता भी नहीं खोल सके थे.
जम्मू-कश्मीर और असम के बाद पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है. राज्य में लगभग 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इनमें से कम से कम 24 फीसदी बंगाली भाषी मुस्लिम हैं. हालांकि पहाड़ी और जंगलमहल क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है, लेकिन उत्तर, दक्षिण और मध्य बंगाल में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक रहते हैं. मध्य और उत्तर बंगाल में मुर्शिदाबाद 60 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर है और मालदा में 50 फीसदी से जादा मुस्लिम आबादी रहती है. वहीं उत्तर बंगाल के उत्तर दिनाजपुर में भी मुस्लिम आबादी ही नेताओं की किस्मत का फैसला करेगी. West Bengal Elections Survey: बंगाल में मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद ममता दीदी
पॉलिटिकल पंडितों की मानें तो अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन को रोकने के लिए ही टीएमसी ने कांग्रेस और लेफ्ट को साथ आने का न्योता दिया था. मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों को कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ कहा जाता हैं, जो कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र हैं. यह भी माना जा रहा है कि हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम समुदाय के वोटरों का मत विभाजित होना टीएमसी को मुसीबत में डाल सकता है.
यानी कि काल्पनिक महागठबंधन (MGB) गणितीय रूप से ममता बनर्जी को सुरक्षित बना सकता है. आम चुनावों में बीजेपी और टीएमसी के वोट शेयर में केवल 3 प्रतिशत का अंतर था. तीनों दलों के एक साथ आने से ममता बनर्जी के पाले में बीजेपी की तुलना में 10 से 15 फीसदी वोट अधिक पड़ सकते है. लेकिन सीपीएम और टीएमसी लंबे समय से राज्य में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. ऐसे में साथ आना कुछ हद तक नुकसानदायक भी हो सकता है.
शायद यह वामपंथियों के लिए आत्मघाती भी साबित हो सकता है. कांग्रेस ने राज्य की विधानसभा चुनाव के लिए वाम दलों के साथ गठबंधन करने का ऐलान कर दिया है. गौरतलब है कि साल 2016 में हुए पिछले चुनावों में कांग्रेस ने वाम दलों के साथ गठबंधन किया था और 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. हालांकि, तब से उसके आधे विधायक तृणमूल में शामिल हो गए हैं. पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के पास अब सिर्फ उनका वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध कोर वोटर आधार ही बचा है, जिसका बीजेपी के साथ जाना बहुत मुश्किल है.
इसके अलावा, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) भी विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है. उधर, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईए) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत से लड़ने का ऐलान किया है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा यह आरोप लगाने के बाद कि आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों को विभाजित करने के लिए बीजेपी हैदराबाद की एक पार्टी को पैसे दे रही है, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार करते हुए कहा कि मुस्लिम मतदाता ममता की 'जागीर' नहीं है. जिस वजह से मुस्लिम वोटरों में विभाजन तय माना जा रहा है.
वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने 219 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी. कांग्रेस को तब 23, लेफ्ट को 19 और बीजेपी को 16 सीटें हासिल हुई थीं. इस साल अप्रैल से मई के बीच चुनाव होने की संभावना है.