नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) की तारीख जितनी पास आ रही है उतनी ही सूबे की सियासत में उबाल बढ़ रहा है. सरकार और विरोधियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की बौछार तीव्र होती जा रही हैं. इस बीच क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति के तहत समाजवादी पार्टी (सपा) ने कई दलों से गठबंधन कर लिया है. सपा का दावा है कि क्षेत्रीय दलों के गठबंधन से उसका जनाधार बीजेपी से कहीं ज्यादा हो गया है और वह आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत की ओर बढ़ रही है. हाल ही में एक के बाद एक योगी सरकार के मंत्री और बीजेपी के विधायकों के इस्तीफे ने राजनीतिक गुणा-भाग बदलने के संकेत दिए. हालांकि बीजेपी योगी सरकार की वापसी को लेकर आश्वस्त है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 20% लोगों के भी वोट नहीं मिलेंगे: अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ गठबंधन के कुल 12 विधायकों ने राज्य सरकार पर पिछड़ा वर्ग विरोधी होने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया है. तीन मंत्रियों सहित बीजेपी के दस विधायक मंगलवार से शुक्रवार के बीच बीजेपी छोड़ चुके हैं. इनमें से अधिकांश विधायक उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनावों से पहले बहुजन समाज पार्टी से बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी की सहयोगी अपना दल-एस के भी दो विधायक टूट चुके है.
उधर, समाजवादी पार्टी भी दलबदल अभियान का गवाह बनी. बीजेपी के बाद सपा में इस्तीफे शुरू हुए. एक दिन पहले ही सपा एमएलसी घनश्याम सिंह लोधी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पार्टी पर दलित और पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाया है. हालांकि वह किस पार्टी में जा रहे हैं, उन्होंने अभी पत्ते नहीं खोले हैं.
इस बीच, बीजेपी प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के कुछ देर बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शनिवार को कहा कि अब वह बीजेपी के किसी विधायक को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेंगे और वे (बीजेपी) जिसके टिकट काटना चाहते हैं, काट दें.
इसके अलावा, सपा का आजाद समाज पार्टी से भी गठबंधन नहीं हो पाया, उल्टा भीम आर्मी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव पर निशाना साधा है. उन्होंने अखिलेश पर खुद को अपमानित करने का आरोप लगाया है. चंद्रशेखर इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि मैं तो सपा के साथ नहीं जा रहा हूं. अखिलेश को भी दलित नेताओं की जरूरत नहीं सिर्फ दलित वोट की जरूरत है. यह साफ हो गया कि उनका व्यवहार भी बीजेपी जैसा ही है. उन्होंने कहा कि वह सामाजिक न्याय का मतलब नहीं समझते है. हालांकि सपा प्रमुख ने इसके जवाब में कहा कि वह भीम आर्मी को दो सीटें देने के लिए तैयार थे, लेकिन उन्हें (चन्द्रशेखर आजाद) किसी का फोन आया जिसके बाद उन्होंने एक साथ चुनाव लड़ने से मना कर दिया.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीते कुछ दिनों में सपा में कई बाहरियों की एंट्री हुई, जिस वजह से सपा के भीतर भी हलचल मच गई थी. माना जा रहा है कि दूसरी पार्टियों के गठबंधन से सपा नेताओं के टिकट भी कट रहे थे, नतीजतन सपा में अंदरूनी कलह का भी खतरा बढ़ रहा था. दरअसल सपा अपने सहयोगियों को अपनी हिस्से की सीटें देकर वहां संयुक्त उम्मीदवार उतार रही है. साथ ही इतने दलों को एक साथ मैनेज करना भी बड़ी चुनौती है. ऐसे में बीजेपी के खिलाफ मजबूत फ्रंट बनाने के चक्कर में सपा में ही दरार का डर हो गया था. इसलिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब फूंक फूंक कर कदम बढ़ाते दिख रहे है.