विधानसभा चुनाव से जम्मू-कश्मीर के लोगों में जगी नई उम्मीद
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

एक दशक बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहा है. यहां के निवासियों के लिए अपनी सरकार चुनने का यह मौका, कभी न खत्म होने वाली हिंसा के बीच उम्मीद की नई किरण लेकर आया है. नई सरकार से लोगों को क्या उम्मीदें हैं?जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया 18 सितंबर से शुरू हो रही है. तीन चरण में हो रहा मतदान 1 अक्टूबर को पूरा होगा. मतों की गिनती 8 अक्टूबर को होगी. चुनाव के लिए महिलाओं में काफी उत्साह दिख रहा है. दक्षिणी कश्मीर की एक चुनावी रैली में आईं दर्जनों महिलाएं अपने पसंदीदा उम्मीदवार के समर्थन में पारंपरिक गीत गाती नजर आईं.

जम्मू-कश्मीर में चुनाव से क्या मिलेगा लोगों को

करीब एक दशक में पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव से इन महिलाओं के बीच उम्मीद की एक नई किरण जगी है. वे ऐसा प्रतिनिधि चाहती हैं, संभवतः ऐसी महिला प्रतिनिधि, जो उनकी रोजमर्रा से जुड़ी समस्याओं को हल कर सके. जैसे कि गांव में पानी की कमी, कश्मीर के बाहर की जेलों में बंद स्थानीय लड़के और मुसलमान बहुल घाटी क्षेत्र में युवा बेरोजगारी की बढ़ती समस्या.

ये महिलाएं, बतौर उम्मीदवार इल्तिजा मुफ्ती का समर्थन कर रही हैं. वह पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी हैं. दक्षिणी कश्मीर की एक चुनावी रैली में आईं 45 साल की शमीमा जान ने इल्तिजा मुफ्ती के बारे में डीडब्ल्यू से कहा, "वह युवा और ऊर्जावान हैं. अगर हम उन्हें वोट देते हैं, तो वह हमारी बात सुनेंगी. हमारे बहुत से युवा कश्मीर से बाहर के जेलों में बंद हैं और हम चाहते हैं कि उन्हें रिहा किया जाए."

क्या कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए तैयार है?

शमीमा जान जिस समय यह बात कह रही थीं, उसी समय इल्तिजा मुफ्ती अपनी एसयूवी गाड़ी की छत से बाहर निकलकर भीड़ को संबोधित कर रही थीं. शमीमा ने आगे कहा, "इस चुनाव से हमारे हालात बदल सकते हैं." शमीमा के आसपास खड़ी महिलाओं ने भी सिर हिलाकर इस बात पर सहमति जताई.

अलगाववादी भी स्थापित पार्टियों को दे रहे चुनौती

जम्मू-कश्मीर में पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था. उस समय भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और क्षेत्रीय पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) ने गठबंधन सरकार बनाई थी. 2018 में भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और गठबंधन सरकार टूट गई. इसके बाद केंद्र सरकार ने अलगाववादी हिंसा से जूझ रहे इस क्षेत्र को सीधे नियंत्रण में ले लिया था.

अब वर्षों की राजनीतिक अनिश्चितता के बाद एक बार फिर कश्मीर के लोगों को नई सरकार चुनने का मौका मिला है. जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द किए जाने और दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित होने के बाद यह यहां का पहला विधानसभा चुनाव है.

जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां, सभी इस चुनाव में भाग ले रही हैं. कई अलगाववादी भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में खड़े हैं. इससे पहले वे चुनावों का बहिष्कार करते थे. इस बार के चुनाव में उनके रुख में साफ तौर पर बदलाव नजर आ रहा है.

प्रतिबंधित इस्लामी गुट का 'इंजीनियर रशीद' को समर्थन

इस साल हुए लोकसभा चुनाव 2024 ने पहले ही नेताओं की एक नई पीढ़ी का संकेत दिया था, जिसमें अब्दुल रशीद शेख भी शामिल हैं. इनके समर्थक इन्हें 'इंजीनियर रशीद' के नाम से जानते हैं.

सिविल इंजीनियर रहे रशीद शेख आतंकवाद के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के आरोप में जेल में थे. उन्होंने जेल से ही लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी. संभावना जताई जा रही है कि उनकी अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) विधानसभा चुनाव में पुराने राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौती दे सकती है.

रशीद को इसी महीने अंतरिम जमानत दी गई है और उन्हें चुनावी अभियान में शामिल होने की अनुमति मिली है. कश्मीर के त्राल शहर में एआईपी की एक रैली में आए मंजूर अहमद ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि हम हमेशा डर के साये में नहीं रहना चाहते हैं. हम रशीद की बातों को सुनने के लिए काफी संख्या में यहां आए हैं क्योंकि उनके भाषण हमारे विचारों और सोच से मेल खाते हैं."

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रशीद की एक और समर्थक अतीका जान ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनका बेटा जेल में है और वह उसे बाहर निकालना चाहती हैं. अतीका ने बताया, "मेरा बेटा पिछले एक साल से जेल में है. मैं यह बात रशीद को बताना चाहती थी क्योंकि वह मेरा दर्द समझ सकते हैं."

रशीद की पार्टी एआईपी ने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी गुट के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन किया है. इस गुट के उम्मीदवार आधिकारिक तौर पर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे.

कश्मीर में राजनीतिक पैठ बनाने की पूरी कोशिश कर रही है बीजेपी

बीजेपी, मुसलमान-बहुल कश्मीर घाटी में समर्थन हासिल करने के लिए संघर्ष करती रही है. हालांकि, हिंदू-बहुल जम्मू में पार्टी के पास अच्छा जनाधार है. इसके अलावा जम्मू बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है, जहां वह अपनी राष्ट्रवादी बयानबाजी, सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं और विकास परियोजनाओं के वादों का लाभ उठा सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर को जम्मू के डोडा जिले में एक राजनीतिक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि बीजेपी ने पूरे क्षेत्र को समृद्ध बनाया है. उन्होंने कहा, "हम और आप मिलकर कश्मीर को देश का एक सुरक्षित और समृद्ध हिस्सा बनाएंगे." उन्होंने यह भी कहा कि अलगाववादी हिंसा के बावजूद आतंकवाद "जम्मू-कश्मीर में अपनी अंतिम सांसें ले रहा है."

हालांकि, स्थानीय नेता बीजेपी के इन बदलाव के दावों को 'झूठा' बताते हुए खारिज करते हैं. कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, "बीजेपी कहती आ रही है कि हालात सुधर गए हैं, लेकिन यह उसके लिए शर्म की बात है कि वह पिछले 10 साल में जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं करा पाई. लोग परेशान हैं, उनका दम घुट रहा है."

केंद्र सरकार के बदलावों का विरोध करने का मौका?

2019 में राजनीतिक बदलावों के बाद जम्मू-कश्मीर को मिले केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे के कारण नई निर्वाचित सरकार के पास सीमित शक्तियां होंगी. कानून-व्यवस्था और जमीन से जुड़े मुद्दे जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्र केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहेंगे और स्थानीय सरकार इनमें कोई बदलाव नहीं कर सकती है.

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स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नूर मुहम्मद बाबा ने डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कहा, "यह चुनाव एक ही साथ काफी महत्वपूर्ण और महत्वहीन, दोनों है. महत्वपूर्ण इसलिए है कि यह (चुनाव) लंबे समय बाद हो रहा है और लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का मौका मिल रहा है. इससे यह संदेश भी जाएगा कि लोग किस तरह गुस्से में हैं और बदलावों पर अफसोस कर रहे हैं."

हालांकि, वह आगाह करते हैं कि उन्हीं बदलावों का मतलब है सरकार के पास 'कम शक्ति' होगी. नूर मुहम्मद बाबा कहते हैं, "अब लोग तय करेंगे कि वे बदलावों के पक्ष में हैं या उनके खिलाफ."