
जर्मनी के आम चुनाव का प्रचार अभियान जोरों पर है. हालांकि लाखों गैर-जर्मन नागरिक जो जर्मनी में रहते और काम करते हैं, वे इसमें वोट नहीं दे सकेंगे.फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी का गठन एक संघीय राज्य के रूप में हुआ और यहां संसदीय लोकतंत्र है. जर्मन संविधान या "बेसिक लॉ" में यह साफ है कि लोग वोट देंगे. लेकिन ये "लोग" हैं कौन?
संघीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक23 फरवरी को होने जा रहे आम चुनाव में करीब 5.92 करोड़ लोग वोट देने के अधिकारी हैं. हालांकि जर्मनी में रहने वाले करीब एक करोड़ लोग चुनाव में वोट नहीं दे सकते क्योंकि वे जर्मन नागरिक नहीं हैं.
कुल मिला कर जर्मनी में वयस्क आबादी का करीब 14 फीसदी हिस्सा राष्ट्रीयता की वजह से वोट देने वालों की सूची में शामिल नहीं होगा. जर्मनी में रहने वाली अंतरराष्ट्रीय आबादी का यह करीब 60 फीसदी है.
ब्रिटेन में जन्मे कार्यकर्ता फिल बटलैंड भी पहले उन्हीं लोगों में से एक थे. वह 1990 के दशक में जर्मनी आए. सबसे पहले वह ग्लोबलाइजेशन के विरोध में खड़ी हुई मुहिम एटीटीएसी के साथ राजनीति में सक्रिय हुए. हाल के दिनों तक वह लेफ्ट पार्टी के सदस्य थे.
आप्रवासियों का वोट कैसे तय कर सकता है जर्मन चुनाव के नतीजे
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "लंबे समय तक मेरा स्थायी निवास जर्मनी रहा है, मेरी जिंदगी जर्मनी में बीती है, सब कुछ जो मैं कर रहा हूं वह जर्मनी में है और उसके बाद यह थोड़ी सी अनोखी बात यह है कि मैं जर्मनी के चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकता."
ब्रिटेन के बाहर 15 साल रहने के बाद वहां के चुनावों में वोट देने का बटलैंड का अधिकार खत्म हो गया. वह जर्मन की नागरिकता के लिए आवेदन नहीं करना चाहते थे क्योंकि उस वक्त वह बेरोजगार थे. उन्हें बताया गया कि जर्मनी का नागरिकता सिर्फ तभी उन्हें मिल सकती है जबकि वह एक तय रकम से ऊपर अर्जित करते हों.
बटलैंड बताते हैं, "उन्होंने नियमों में अब ढील दी है लेकिन अगर आपके पास नौकरी नहीं है या कम आमदनी वाली नौकरी है तो नियम अब भी बहुत से ऐसे लोगों के मुकाबले काफी सख्त हैं, जिनके पास अच्छी आदमनी वाली नौकरी है. ज्यादातर नियमों में गरीब लोगों को बाहर कर दिया गया है."
जर्मनी के लिए समस्या है 'लोकतांत्रिक कमी'
जर्मन सरकार ने नागरिकता देने के नियमों को जनवरी 2024 में आसान बना दिया. इसकी वजह यह थी कि देश ज्यादा कुशल कामगारों के लिए जर्मनी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आकर्षक बनाना चाहता है और ताकि कामगारों की कमी से निपटा जा सके.
नए कानून के तहत विदेशी लोग जर्मन नागरिकता के लिए पांच साल बाद ही आवेदन कर सकते हैं और कुछ असाधारण मामलों में तो तीन साल बाद ही. पहले कम से कम आठ साल जर्मनी में रहने के बाद ही नागरिकता के लिए आवेदन किया जा सकता था. इसके अलावा वे दोहरी नागरिकता के लिए भी आवेदन कर सकते हैं. ये विशेषाधिकार पहले सिर्फ यूरोपीय संघ या स्विट्जरलैंड के नागरिकों को ही मिलता था.
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कंसल्टेंसी फर्म ट्रांसफॉर्मेकर्स के सीईओ ओएज्गुर ओएज्वतन का कहना है, "नागरिकता सुधारों का मतलतब है कि बेहतरीन हालत में भी अगर हम प्रशासकीय समय को शामिल कर लें तो कम से कम चार से छह साल का समय ऐसा है जिसमें लोग अपनी बात नहीं रख सकते. निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है." ओएज्वतन की जल्दी ही एक किताब आ रही है जिसमें अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि वाले जर्मन लोगों के राजनीतिक प्रभाव की चर्चा है.
जर्मन नागरिकता पाना आसान नहीं है, इसलिए भी क्योंकि आवेदन से जुड़े खर्चे भी बहुत हैं. फीस के अलावा जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेजों को आधिकारिक अनुवादक से अनुवाद कराना पड़ता है और जर्मन भाषा मे दक्षता के साथ ही आय से जुड़े सबूत देने पड़ते हैं.
जैसा कि ओज्वतन बताते हैं, जर्मनी में "लोकतांत्रिक कमी" खासतौर से बड़ी समस्या है क्योंकि एक देश के तौर पर उसे आप्रवासन की जरूरत है ताकि कामगारों की कमी से निपटा जा सके. देश की आबादी तेजी से बूढ़ी होने के साथ ही सिकुड़ रही है, इसके साथ ही यह ये भी दिखाता है कि जर्मन राजनीति से लोगों का संपर्क घट रहा है.
ओज्वतन ने कहा, "नीति के स्तर पर सरकार ने जो सुधार किए हैं उनका मतलब है कि उदारता आ रही है लेकिन नारों को देखें तो हम बहुत पीछे गए हैं." ओएज्वतन का इशारा आप्रावसियों के विरोध में उठने वाली आवाजों की ओर था जो लगभग पूरे राजनीतिक जगत में जब तब सुनाई देती हैं.
ओज्वतन का कहना है, "जाहिर है कि यह सवाल उठाता हैः आखिर क्या मैं इस देश में रहना चाहता हूं? और अगर मैं इस देश में नहीं रहना चाहता हूं, तो क्या मुझे नागरिकता के लिए आवेदन करना है या मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं?"
जर्मनी में वोट कौन दे सकता है
जर्मनी में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय लोगों को क्या वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए, इस पर बहस कई दशकों से चली आ रही है. 1970 के दशक में इसकी शुरुआत हुई. तब जर्मनी में "गेस्ट वर्कर" के अधिकारों को लेकर इसकी चर्चा हुई. ये लोग प्रवासी कामगार थे जो इटली, ग्रीस और तुर्की जैसे देशों से 1950 के दशक में यहां आए थे. इन लोगों को स्थाई निवास और नागरिकता के अधिकारों को लकर तब बड़ी चर्चा हुई थी.
नागरिकता कानून में सुधारों की शुरुआत 1 जनवरी, 2000 से लागू हुई. तब जर्मन नागरिकता केवल जर्मन मां बाप के वंशजों को ही मिल सकती थी. सुधारों के तहत इसमें जन्मस्थान के सिद्धांत को भी शामिल किया गया. इस सुधार का मतलब था कि विदेशी मां बाप से जर्मनी में पैदा हुए बच्चों को भी जर्मन नागरिकता मिल सकता है लेकिन कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद ही.
संघीय चुनाव एक्ट के तहत सभी जर्मन नागरिक जिन्होंने चुनाव के दिन तक 18 साल की आयु पूरी कर ली है और जर्मनी में कम से कम तीन महीने रहे हों या फिर देश में नियमित रूप से रहते हों वे संघीय चुनावों और प्रांतीय चुनावों मे वोट देने के अधिकारी हैं. विदेशों में रहने वाले जर्मन भी वोट दे सकते हैं बशर्ते कि उन्होंने समय पर अपना नाम दर्ज करा लिया हो.
यूरोपीय संघ के नागरिक जो जर्मनी में रहते हैं उन्हों म्युनिसिपल स्तर और यूरोपीय संघ के चुनावों में वोट देने की आजादी है.
गैर जर्मन नागरिकों को म्युनिसिपल चुनावों में वोट देने का कानून उत्तरी जर्मनी के श्लेषविग होल्स्टाइन और उसके पड़ोसी प्रांत हैम्बर्ग ने शुरू किया था. हालांकि इसे आखिरकार संघीय संवैधानिक अदालत ने 1990 में असंवैधानिक घोषित कर दिया.
मताधिकार या नागरिकता के अधिकारों में सुधार की योजना नहीं
थिंक टैंक डिप्लोमैट के तोबिया स्पोरी का कहना है, "ज्यादातर मामलों में नागरिकता हासिल करने के नियमों को बदलना आसान होता है, मताधिकार की तुलना में. हालांकि अगले चुनावों में कुछ भी बदलने नहीं जा रहा है."
स्पोरी के मुताबिक यह वास्तविकता है कि जर्मनी में राजनीतिक वातावरण इतना अधिक दक्षिण की तरफ जा चुका है कि फरवरी के चुनाव में शामिल कोई भी मुख्यधारा की पार्टी ज्यादा समेकित चुनाव तंत्र के बारे में बात भी नहीं कर रही है. वास्तव में वे उल्टी दिशा में जा रही हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा फ्रीडरिष मैर्त्स पहले ही कह चुके हैं कि अगर लोगों को सालों पहले जर्मन नागरिकता मिल गई तो क्या हुआ, आप उनसे यह छीन भी सकते हैं."
मताधिकार के मुद्दे का असर इस बात पर भी होता है कि कौन संसद में बैठा है और किनका प्रतिनिधित्व हो रहा है.
जर्मनी में संसद के करीब 11 फीसदी सदस्य अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि वाले हैं. सभी 16 राज्यों में से प्रत्येक की एसेंबली में यह आंकड़ा महज 7 फीसदी है. पूर्वी जर्मनी के कुछ हिस्सों में तो यह 1 फीसदी से भी कम है.
स्पोरी का कहना है, "यह जरूरी है कि लोगों को नागरिकता से मुक्त रह कर भी मताधिकार मिलने की संभावना हो. हमारी रिसर्च में आप देख सकते हैं कि मताधिकार की संभावना लोगों को जागरूक और सशक्त बनाती है, क्योंकि तब वे सचमुच राजनीति में शामिल होते हैं और चुनाव से अलग भी उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ती है."
जर्मनी में किसे मताधिकार मिले, इसे लेकर कोई बड़ा बदलाव हाल फिलहाल में होने के आसार नहीं हैं. हालांकि देश में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय नागरिक फिर भी चाहें तो दूसरे तरीकों से राजनीतिक दबाव बना सकते हैं, मसलन कि राजनीतक दलों या फिर चुनाव समूहों में शामिल हो कर और धरने या हड़तालों में हिस्सा लेकर.
बटलैंड कहते हैं, "मैं धरना प्रदर्शनों, यहां तक कि हड़तालों का पुराना मुरीद हूं. राजनेताओं पर दबाव बनाने के लिए, भले ही आप वोट ना दे सकें लेकिन कम से कम उन्हें अपनी मौजूदगी और मांगों के बारे में तो बता सकते हैं, और इस मामले में राष्ट्रीयता के नाम पर कोई अलगाव नहीं है.