विनायक दामोदर सावरकर पर बड़े विमर्श की तैयारी, अमित शाह संभालेंगे कमान
विनायक दामोदर सावरकर (Photo Credit: Twitter)

देश की आजादी की लड़ाई में विनायक दामोदर सावरकर का क्या योगदान था, समय-समय पर उनको लेकर विरोधियों की ओर से उठाए जाने वाले सवालों में कितना दम है, ऐसे तमाम मुद्दों पर अब राष्ट्रीय विमर्श शुरू होने जा रहा है. सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान की ओर से 26 और 27 फरवरी को यहां अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित होने जा रहे दो दिवसीय कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भाग लेंगे. इस कार्यक्रम को सावरकर साहित्य सम्मेलन नाम दिया गया है. सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बतौर अतिथि भाग लेकर उनके योगदान पर चर्चा करेंगे. इस कार्यक्रम में वीर सावरकर के बारे में गहन अध्ययन रखने वाले कई विद्वानों को आमंत्रित किया गया है, जो आजादी की लड़ाई में सावरकर के योगदान पर चर्चा करने के साथ उन तमाम सवालों के भी जवाब देंगे, जिसको लेकर विरोधी अक्सर सावरकर के योगदान पर प्रश्नचिह्न् लगाने की कोशिश करते हैं.

आयोजन समिति से जुड़े आशीष कुमार अंशु ने आईएएनएस से कहा, "वीर सावरकर महान क्रांतिकारी थे और उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. विरोधी सावरकर को लेकर मिथ्याप्रलाप करते हैं. यह दो दिवसीय कार्यक्रम वीर सावरकर के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में लोगों को गहन जानकारी देने वाला होगा. गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की खास मौजूदगी होगी." वीर सावरकर को लेकर गृहमंत्री अमित शाह का लगाव किसी से छुपा नहीं है. अमित शाह अपने कमरे में भी वीर सावरकर की तस्वीर रखते हैं. ऐसे में इस कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी खास होगी. वीर सावरकर को लेकर अमित शाह पूर्व में कह चुके हैं कि अगर सावरकर न होते तो शायद 1857 की लड़ाई को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम न मिलता.

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अमित शाह ने पिछले साल एक कार्यक्रम में कहा था, "सिख गुरुओं का बलिदान हो या फिर महाराणा प्रताप के मुगलों के सामने हुए संघर्ष की एक बड़ी लंबी गाथा, हमने संदर्भग्रंथ में परिवर्तित नहीं किया. शायद वीर सावरकर न होते तो सन् 1857 की क्रांति भी इतिहास न बनती, उसे भी हम अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखते. वीर सावरकर ने ही सन् 1857 की क्रांति को पहला स्वतंत्रता संग्राम का नाम देने का काम किया. नहीं तो आज भी हमारे बच्चे उसको विप्लव के नाम से जानते."

सन् 1883 में मुंबई में जन्मे सावरकर क्रांतिकारी होने के साथ लेखक, वकील और हिंदुत्व की विचारधारा के समर्थक थे. अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी की सजा दी थी. विनायक दामोदर सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था. पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वीर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था, जिसको लेकर कांग्रेस ने सवाल भी उठाए थे. कई मौकों पर सावरकर को लेकर विवाद खड़ा होता रहा है.

वाजपेयी सरकार वीर सावरकर को भारत रत्न देने की कोशिश कर चुकी है. वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास प्रस्ताव भेजा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था.