मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का शहर में एक भारतीय परिवार में हुआ था. अबुल कलाम आज़ाद हमारे स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षामंत्री थे. वह फारसी और अरबी के प्रकांड विद्वान ही नहीं थे, बल्कि एक अतिप्रतिष्ठित शायर और लेखक भी थे. पत्रकारिता में भी उन्होंने बड़ी प्रतिष्ठिता हासिल की. वह आपसी सौहार्द और राष्ट्रवाद के प्रति हमेशा समर्पित रहे. 1992 में उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्विटर पर ट्विट करके इस महान शख्सियत को याद किया.
Remembering Acharya JB Kripalani and Maulana Abul Kalam Azad on their birth anniversaries.
Two exemplary personalities, their notable role during the freedom struggle and emphasis on public welfare, equality, education and justice will never be forgotten.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 11, 2018
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद साझा संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में भी जाने जाते हैं.धर्म, राष्ट्र और संस्कृति एवं उनके आपसी संबंधों पर उन्होंने जो रोशनी डाली है, वह आज भी प्रासंगिक है. मौलाना आजाद राष्ट्र और राष्ट्रीयता को भौगोलिक क्षेत्र के बजाय धर्म से जोड़ने के सख्त खिलाफ थे. जब मुस्लिम लीग ने धर्म की बुनियाद पर मुल्क के बंटवारे की बात की और द्विराष्ट्रीय सिद्धांत दिया तो मौलाना आजाद ने इसका पुरजोर विरोध किया और मिसाके मदीना का हवाला भी दिया था. यह भी पढ़ें-राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिक्षा में अधिक भागीदारी का आह्वान करते हुए कहा-प्रत्येक बच्चा शिक्षित हो
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने पहले ही पाकिस्तान के बिखरने की भविष्यवाणी कर दी थी. 1946 ई0 में शोरिस कश्मीरी को दिए एक इंटरव्यू में मौलाना आजाद ने जो पेशनगोई (भविष्यवाणी) की वह आज सही साबित हो रही है. उन्होंने कहा था कि मजहब पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को एक नहीं रख सकता है. क्योंकि मजहब के अलावा दोनों में कोई समानता नहीं है. उनका यह भी ख्याल था कि मजहब का इस्तेमाल लोगों को बांटने के लिए किया जाएगा तो इसकी कोई सीमा नहीं रह जाएगी.