नई दिल्ली, 15 नवंबर : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को स्वीकार किया कि इजरायल-हमास युद्ध प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर (आईएमईसी) के लिए एक चुनौती है, जिसका उद्देश्य कनेक्टिविटी में सुधार और उत्सर्जन में कटौती करना है. आईएमईसी परियोजना के लिए समझौते पर इस साल सितंबर में भारत की अध्यक्षता में नई दिल्ली में हुई जी20 बैठक में हस्ताक्षर किए गए थे. रेल और बंदरगाह गलियारे की परिकल्पना मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया को जोड़ने वाले गलियारे के रूप में की गई है जो इज़राइल से होकर गुजरेगी. यह वैश्विक बुनियादी ढांचे पर चीन के बेल्ट एंड रोड दबाव का मुकाबला करने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है.
सीतारमण ने यहां हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय डायलॉग 2023 में कहा, ''गलियारे के सामने अपनी भू-राजनीतिक चुनौतियां हैं. इजराइल और गाजा में चल रहा संघर्ष इसकी एक चिंताजनक अभिव्यक्ति है.'' हालाँकि, उन्होंने कहा कि यह परियोजना सभी हितधारकों के लिए फायदेमंद होगी क्योंकि यह परिवहन की एक अधिक कुशल प्रणाली स्थापित करेगी जो रसद लागत को कम करेगी, आर्थिक एकता बढ़ाएगी, अधिक नौकरियां पैदा करेगी और कार्बन उत्सर्जन कम करेगी. यह भी पढ़ें : राजस्थान के लिए डबल इंजन की सरकार जरूरी, कांग्रेस की विदाई तयः जयराम ठाकुर
आईएमईसी मुख्यतः जलमार्ग होगा जो समुद्री से होकर गुजरेगा. यह मुंबई, मुंद्रा और कांडला (गुजरात) में जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी जैसे भारतीय बंदरगाहों को संयुक्त अरब अमीरात में फ़ुजैरा और अबू धाबी सहित पश्चिम एशिया के बंदरगाहों और सऊदी अरब के दम्मम और घुवाइफ़त बंदरगाहों से जोड़ेगा. एक रेल खंड भी होगा जो आईएमईसी के तहत सऊदी अरब के हराद और अल हदीथा शहरों को इज़राइल में हाइफ़ा बंदरगाह से जोड़ेगा. सीतारमण ने कहा, "अंतिम खंड, जिसे कुछ लोग उत्तरी गलियारा कहते हैं, एक बार फिर हाइफ़ा के बंदरगाह को पीरियस के ग्रीक बंदरगाह और वहां से यूरोप तक जोड़ने वाला एक समुद्री खंड होगा."