नई दिल्ली: मोदी सरकार ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया है. दरअसल इस महाव्यापार समझौते से घरेलू अर्थव्यवस्था (Economy) पर उलट प्रभाव पड़ने का खतरा है. जिसके चलते अब भारत आरसीईपी (RCEP) समझौते में शामिल नहीं होगा. सरकार का मानना है कि वह देशहित से समझौता नहीं कर सकती है. विदेश मंत्रालय में सचिव विजय ठाकुर सिंह ने भारत के आरसीईपी समझौते में शामिल नहीं होने के फैसले की जानकारी दी है.
आरसीईपी समझौते के लिए चल रही वार्ता में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को बैंकॉक रवाना हुए. पीएम मोदी ने जाने से पहले कहा था कि आरसीईपी बैठक में भारत इस बात पर गौर करेगा कि क्या व्यापार, सेवाओं और निवेश पर उसकी चिंताओं और हितों को पूरी तरह से समायोजित किया जा रहा है. इसके बाद ही वह इस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा. दरअसल आरसीईपी आरसीईपी को लेकर धातु, डेयरी, इलेक्ट्रानिक्स और केमिकल जैसे उद्योग से जुड़ी कई घरेलू कंपनियों ने चिंता जताई थी.
7 साल से चल रही थी बातचीत-
आरसीईपी को लेकर बातचीत सात साल से चल रही है. यह नवंबर 2012 में कंबोडिया में नॉमपेन्ह में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू हुई थी. आरसीईपी के तहत आने वाले सभी देशों ने इसी महीनें बातचीत पूरी कर जून 2020 में समझौते पर हस्ताक्षर करने का फैसला किया था. इसमें आसियान के दस सदस्यों (ब्रुनेई, दारुस्सलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं.
#WATCH Vijay Thakur Singh, Secretary (East),MEA: India conveyed its decision at the summit not to join RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) Agreement. This reflects both our assessments of current global situation&of the fairness & balance of the agreement. pic.twitter.com/IAT6xiq02R
— ANI (@ANI) November 4, 2019
इन मुद्दों पर मतभेद-
दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार क्षेत्र आरसीईपी को अंतिम रूप देने के लिए सभी देशों के बीच गहन बातचीत हुई. रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बाजार प्रवेश और कुछ वस्तुओं पर प्रशुल्क संबंधी मुद्दों को लेकर भारत सहमत महीन हुआ. भारत को यह अंदेशा था कि आरसीईपी के परिणाम संतुलित और उचित नहीं होंगे.
Sources: The key issues include- inadequate protection against import surge,insufficient differential with China,possible circumvention of rules of origin,keeping the base year as 2014 and no credible assurances on market access and non-tariff barriers. #RCEP https://t.co/8E235LrEP6
— ANI (@ANI) November 4, 2019
लघु उद्योग हो सकते थे बंद-
जानकारों की मानें तो भारत अपने घरेलु बाजार को बचाने के लिए ही आरसीईपी में शामिल नहीं हो रहा है. भारतीय उद्योग को यह खतरा बना हुआ है कि आरसीईपी समझौता होने से देश में सस्ते चीनी माल की बाढ़ आ जाएगी. दरअसल आरसीईपी समझौते के बाद समूह के सदस्य देशों के बीच माल एवं सेवाओं का शुल्क मुक्त आयात-निर्यात होगा. ऐसे में भारत में चीन से कृषि और औद्योगिक उत्पादों के सस्ते सामान का आयात बढ़ सकता है. जिससे लघु उद्योग के साथ-साथ छोटे व्यापारी खत्म हो सकते है.
भारत के अलावा सभी 15 देश राजी-
सूत्रों के अनुसार भारत को छोड़ कर बाकी सभी 15 देश समझौते के पक्ष में है. देश के एक प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने रविवार को कहा था कि प्रमुख क्षेत्रीय व्यापार समझौते आरसीईपी में शामिल नहीं होने से भविष्य में भारत के निर्यात और निवेश प्रवाह को नुकसान पहुंच सकता है.
उल्लेखनीय है कि आरसीईपी समझौता यदि हो जाता है तो इससे दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र निर्माण होता. इसमें शामिल कुल 16 देशों में दुनिया की कुल आबादी में से 3.6 अरब लोग हैं. यह संख्या दुनिया की कुल आबादी का करीब आधा है. इसकी वैश्विक वाणिज्य में करीब 40 प्रतिशत और वैश्विक जीडीपी में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी.
(एजेंसी इनपुट के साथ)