Hindi Language Row: भाषा थोपने का सवाल ही नहीं, लेकिन... हिंदी विवाद पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बड़ा बयान

नई दिल्ली: केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच भाषा नीति को लेकर चल रहे विवाद के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि "किसी भी भाषा को थोपने का कोई सवाल ही नहीं है." उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन को लिखे पत्र में यह भी कहा कि विदेशी भाषाओं पर अत्यधिक निर्भरता छात्रों को उनकी भाषाई जड़ों से दूर कर रही है और नई शिक्षा नीति (एनईपी) इसे सही करने का प्रयास करती है.

प्रधान ने अपने पत्र में लिखा कि एनईपी "भाषाई स्वतंत्रता के सिद्धांत को बनाए रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि छात्र अपनी पसंद की भाषा में सीखना जारी रखें." उन्होंने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पर "राजनीतिक कारणों से एनईपी 2020 का लगातार विरोध करने" का आरोप भी लगाया. प्रधान ने डीएमके पर "संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाने और प्रगतिशील सुधारों को राजनीतिक लाभ के लिए खतरे के रूप में पेश करने" का भी आरोप लगाया.

प्रधान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मई 2022 में चेन्नई में दिए गए बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि "तमिल भाषा शाश्वत है." उन्होंने आगे लिखा, "मोदी सरकार तमिल संस्कृति और भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. मैं विनम्रता से अपील करता हूं कि शिक्षा का राजनीतिकरण न किया जाए."

तमिलनाडु बनाम केंद्र: हिंदी विवाद की नई कड़ी

यह पत्र केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच भाषा विवाद का ताजा उदाहरण है. इससे पहले स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि प्रधान ने राज्य को तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की, अन्यथा शिक्षा क्षेत्र से संबंधित केंद्रीय निधियों को रोका जाएगा.

प्रधान ने स्टालिन के पत्र को "राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित" और "काल्पनिक चिंताओं" से भरा बताया. स्टालिन ने प्रधानमंत्री से 2024-25 के लिए शिक्षा क्षेत्र में तमिलनाडु को 2,154 करोड़ रुपये की राशि जारी करने की अपील की थी.

स्टालिन ने रविवार को आरोप लगाया कि प्रधान "भाषा थोपने के लिए तमिलनाडु को ब्लैकमेल" कर रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार 1967 से चली आ रही दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) को नहीं छोड़ेगी.

"भाषा युद्ध के लिए तैयार": उदयनिधि स्टालिन

तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने बुधवार को कहा कि राज्य "एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार" है.

उन्होंने बीजेपी को चेतावनी देते हुए कहा, "यह द्रविड़ भूमि है, पेरियार की भूमि है. पिछली बार जब आपने तमिल लोगों के अधिकार छीनने की कोशिश की थी, तो उन्होंने 'गो बैक मोदी' कहा था. अगर आप फिर से कोशिश करेंगे... इस बार आवाज़ होगी 'गेट आउट मोदी' और एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा."

दक्षिण भारत में हिंदी थोपने का आरोप

इतिहास गवाह है कि तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों को केंद्र द्वारा हिंदी थोपने की कोशिशों पर संदेह रहा है. 1930 और 1960 के दशक में इस मुद्दे पर हिंसक प्रदर्शन भी हुए थे.

तमिलनाडु राज्य सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में दो-भाषा नीति लागू है, जिसमें केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है. राज्य के शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यमोझी ने एनडीटीवी से कहा कि यह नीति छात्रों को उनकी भाषाई विरासत से जोड़े रखती है और अंग्रेजी सीखकर उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में मदद करती है.

उन्होंने कहा, "1967 से तमिलनाडु दो-भाषा नीति का पालन कर रहा है और हमारे लिए तमिल और अंग्रेजी पर्याप्त हैं. हमने पहले ही विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं."

लेकिन एनईपी 2020 तीन-भाषा नीति का प्रस्ताव रखती है, जिसमें हिंदी को एक विकल्प के रूप में शामिल किया गया है. तमिलनाडु सरकार इसे भाषा थोपने की कोशिश मानती है.

बीजेपी की तीन-भाषा नीति पर जोर

तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी राज्य में तीन-भाषा नीति को लेकर अभियान तेज कर रही है. यह अभियान 1 मार्च से शुरू होगा.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह अभियान तमिल राजनीति में बीजेपी के पैर जमाने की कोशिश का हिस्सा है. पार्टी अब तक तमिल मतदाताओं को लुभाने में असफल रही है. 2016 में बीजेपी ने सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन कोई सीट नहीं जीत पाई. 2021 में पार्टी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीतीं. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा, 2019 और 2024 दोनों में उसे एक भी सीट नहीं मिली.

बीजेपी की राज्य इकाई के प्रमुख के. अन्नामलाई ने डीएमके पर हमला बोलते हुए कहा कि "दुनिया तेजी से बदल रही है, फिर 1960 के दशक की पुरानी नीति को तमिलनाडु के बच्चों पर थोपने का क्या तुक है?"