मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने गुरुवार को कहा कि पॉक्सो कानून (POCSO Act) लागू करना बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने में एक महत्वपूर्ण और प्रगतिशील कदम है, हालांकि नाबालिगों के बीच सहमति से यौन संबंध बनाने की घटनाएं कानून के तहत अपरिभाषित है क्योंकि कानून की नजर में नाबालिग की सहमति वैध नहीं मानी जाती है. कोर्ट ने यह बात ने 19 साल के लड़के को सुनाई जाने वाली दस साल की कठोर जेल की सजा को रद्द करते हुई कही है. लड़के पर अपनी नाबालिग चचेरी बहन के साथ दुष्कर्म का दोष साबित हुआ है. हालांकि जांच में पता चला है कि दोनों के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमती से बने थे. POCSO एक्ट के तहत पैंट की ज़िप खोलना ‘सेक्शुअल असॉल्ट नहीं- बॉम्बे हाईकोर्ट
जस्टिस संदीप शिंदे (Sandeep Shinde) ने सुनवाई के बाद 19 वर्षीय लड़के को जमानत दे दी है. पॉक्सो एक्ट के तहत लड़के को नाबालिग चचेरी बहन के साथ बार-बार बलात्कार करने के लिए दोषी ठहराया गया था. घटना सितंबर 2017 की हैं, जब पीड़िता 8वीं कक्षा में थी और 2 साल से आरोपी के घर में रह रही थी.
मामले के तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि जांच के दौरान पीड़ित के बयान में खुलासा हुआ था कि यह सब सहमति हुआ है, वो भी एक बार नहीं बल्कि कम से कम 4-5 बार. इसके मद्देनजर कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून को परिभाषित करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 19 जनवरी को अपने एक फैसले में कहा था कि किसी बच्ची की छाती को कपड़ों के ऊपर से स्पर्श करने को पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है. हालांकि चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अगुवाई वाली देश की शीर्ष कोर्ट ने इस फैसले पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी.
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को भी नोटिस जारी किया था और अटॉर्नी जनरल बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी थी. दरअसल, अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) के के वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष इस विषय का उल्लेख किया था और कहा था कि यह फैसला ‘अभूतपूर्व’ है तथा यह एक खतरनाक नजीर पेश करेगा.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपनी याचिका में कहा है कि यदि शारीरिक संपर्क की ‘‘इस तरह की उल्टी-सीधी व्याख्या करने की अनुमति दी जाएगी, तो यह महिलाओं के मूलभूत अधिकारों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, जो समाज में यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं और यह महिलाओं के हितों का संरक्षण करने के लिए लक्षित विभिन्न विधानों के तहत प्रदत्त लाभकारी वैधानिक सुरक्षा को कमजोर कर देगा.’’ आयोग ने कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश में अपनाई गई इस तरह की संकीर्ण व्याख्या एक खतरनाक मिसाल पेश करती है, जिसका महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. वहीं, वकीलों के एक संगठन ‘यूथ बार एसोएिशन ऑफ इंडिया’ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के फैसले के खिलाफ शीर्ष कोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है. (एजेंसी इनपुट के साथ)