जयपुर, 6 फरवरी : सूत्रों ने बताया कि भाजपा राज्यसभा चुनाव में किसी भी राज्य से किसी भी उम्मीदवार को खड़ा करने की पुरानी परंपरा के बजाय स्थानीय चेहरों को मैदान में उतारने की एक नई रणनीति पर विचार कर रही है. चुनाव आयोग ने 15 राज्यों में राज्यसभा चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी है. इसमें 56 सीटों पर चुनाव होंगे, जिसमें राजस्थान की तीन सीटें भी शामिल हैं. इन सीटों के लिए 27 फरवरी को मतदान होगा.
गौरतलब है कि राजस्थान से दस राज्यसभा सीटें हैं, इनमें से छह कांग्रेस और चार बीजेपी के पास हैं. राजस्थान से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और वर्तमान में भजनलाल सरकार में मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के प्रतिनिधित्व वाली तीन सीटों पर मतदान होगा. इन सीटों का कार्यकाल 3 अप्रैल को समाप्त हो रहा है. राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान किरोड़ी लाल मीणा ने सवाई माधोपुर से जीत हासिल की थी. विधायक बनने के बाद उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. इसलिए इस सीट पर भी वोटिंग होगी. यह भी पढ़ें : Bihar Politics: सम्राट चौधरी ने वित्त विभाग और प्रेम कुमार ने पर्यटन विभाग का पदभार संभाला
कांग्रेस के कब्जे वाली छह सीटों में से केवल एक सांसद राजस्थान से है, जबकि पांच अन्य राज्यों से हैं. नीरज डांगी राजस्थान से हैं, जबकि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, प्रमोद तिवारी, मुकुल वासनिक, के.सी. वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला बाहरी हैं. सूत्रों ने बताया कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राज्यसभा चुनाव के लिए उसी राज्य से उम्मीदवार उतारने पर चर्चा कर रहा है. सूत्रों ने कहा कि अगर सभी नेता इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे देते हैं तो एक राज्य के कुछ नेताओं को दूसरे राज्य के राज्यसभा चुनाव में उतारने की नीति का पालन नहीं किया जाएगा.
राज्य के शीर्ष नेताओं को इस बारे में संकेत दे दिया गया है और इस बात पर चर्चा चल रही है कि किस सीट से किस उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाएगा. पार्टी सूत्रों ने कहा कि विधानसभा चुनाव हारने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया को इन चुनावों में मौका दिया जा सकता है. साथ ही दिग्गज नेता अलका गुर्जर और ओम माथुर को भी इन चुनावों के जरिए दिल्ली भेजा जा सकता है.
स्थानीय सीटों पर बाहरी उम्मीदवारों को मैदान में उतारना पिछले कई वर्षों से एक बहस का विषय रहा है. पार्टी नेताओं ने कहा कि ऐसा कहा जा रहा है कि राज्यसभा चुनावों में जाने वाले बाहरी लोगों को इन राज्यों के मुद्दों की जानकारी नहीं है और इसलिए वे लंबे समय में स्थानीय जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं, इसलिए रणनीति में बदलाव किया गया है.