11 नवंबर को जस्टिस संजीव खन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का पदभार ग्रहण करेंगे. उन्होंने अपनी सादगी और व्यक्तिगत सुरक्षा से दूर रहने की अपनी इच्छा के चलते, हाल ही में अपनी मॉर्निंग वॉक छोड़ने का फैसला किया. सीजेआई बनने से पहले सुरक्षा सलाह मिलने पर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सुरक्षा की आदत नहीं होने के कारण वह अकेले टहलने में ही सहज महसूस करते थे. अब, एक नई जिम्मेदारी के साथ, वह देश के सर्वोच्च न्यायालय का नेतृत्व करेंगे.
योग्यता और न्यायिक सफर
दिल्ली में जन्मे जस्टिस खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में शामिल हुए. उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में 14 साल तक सेवा दी और सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने से पहले कई महत्वपूर्ण फैसलों में योगदान दिया. जस्टिस खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना भी एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश रहे हैं, और उनके चाचा, दिवंगत जस्टिस एच.आर. खन्ना, ने आपातकाल के समय इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ महत्वपूर्ण निर्णय दिए थे, जो आज भी याद किए जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश और विवाद
2019 में जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया, लेकिन उनकी वरिष्ठता को लेकर विवाद हुआ क्योंकि कॉलेजियम ने कई वरिष्ठ जजों को नज़रअंदाज कर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के लिए चुना. इस निर्णय के बाद उनकी नियुक्ति पर बहस छिड़ी, परंतु उनके निर्णय और निष्पक्षता ने उन्हें न्यायपालिका में एक प्रमुख स्थान दिलाया.
केस से जुड़ी अहम बातें और कार्यकाल की विशेषता
जस्टिस खन्ना ने लगभग 65 महत्वपूर्ण फैसले लिखे हैं और 275 से अधिक बेंचों का हिस्सा रहे हैं. हाल ही में उन्होंने समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, जिसकी वजह निजी कारण बताए गए. न्यायपालिका में उनके 6 महीने के कार्यकाल को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह न्यायपालिका के विकास में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
समाज और न्याय में योगदान
जस्टिस खन्ना का मानना है कि न्याय का कार्य केवल कानून के नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि समाज में विश्वास और नैतिकता को भी बनाए रखना है. उनका नेतृत्व न्यायपालिका में एक नई दिशा और एक नई दृष्टि का परिचय देता है, जिसमें उनके फैसले समाज के हर वर्ग के लिए न्याय और समानता को सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं.
जस्टिस संजीव खन्ना का भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालना न केवल उनकी क्षमता और न्यायप्रियता का सम्मान है, बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत भी है. उनके कार्यकाल से न्यायपालिका में और अधिक संतुलन और विश्वास की उम्मीद की जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश और विवाद
2019 में जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया, लेकिन उनकी वरिष्ठता को लेकर विवाद हुआ क्योंकि कॉलेजियम ने कई वरिष्ठ जजों को नज़रअंदाज कर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के लिए चुना. इस निर्णय के बाद उनकी नियुक्ति पर बहस छिड़ी, परंतु उनके निर्णय और निष्पक्षता ने उन्हें न्यायपालिका में एक प्रमुख स्थान दिलाया.
केस से जुड़ी अहम बातें और कार्यकाल की विशेषता
जस्टिस खन्ना ने लगभग 65 महत्वपूर्ण फैसले लिखे हैं और 275 से अधिक बेंचों का हिस्सा रहे हैं. हाल ही में उन्होंने समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, जिसकी वजह निजी कारण बताए गए. न्यायपालिका में उनके 6 महीने के कार्यकाल को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह न्यायपालिका के विकास में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
समाज और न्याय में योगदान
जस्टिस खन्ना का मानना है कि न्याय का कार्य केवल कानून के नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि समाज में विश्वास और नैतिकता को भी बनाए रखना है. उनका नेतृत्व न्यायपालिका में एक नई दिशा और एक नई दृष्टि का परिचय देता है, जिसमें उनके फैसले समाज के हर वर्ग के लिए न्याय और समानता को सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं.
जस्टिस संजीव खन्ना का भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालना न केवल उनकी क्षमता और न्यायप्रियता का सम्मान है, बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत भी है. उनके कार्यकाल से न्यायपालिका में और अधिक संतुलन और विश्वास की उम्मीद की जा रही है.