भारत पर लगे परमाणु प्रतिबंध हटाएगा अमेरिका
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका ने कहा है कि भारत के परमाणु संस्थानों पर लगे प्रतिबंध हटाए जा रहे हैं. बाइडेन सरकार के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भारत का दौरा किया है.अमेरिका ने भारतीय परमाणु संस्थानों पर लगे पुराने प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसका उद्देश्य भारत के साथ ऊर्जा संबंधों को मजबूत करना और 20 साल पुराने ऐतिहासिक परमाणु समझौते को नई रफ्तार देना है. यह जानकारी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने नई दिल्ली में अपनी यात्रा के दौरान दी.

सुलिवन ने अपने दौरे के दूसरे दिन एक कार्यक्रम में कहा, "अमेरिका उन नियमों को हटाने की प्रक्रिया में है, जो भारत और अमेरिकी कंपनियों के बीच नागरिक परमाणु सहयोग में रुकावट डाल रहे थे." उन्होंने कहा कि ये औपचारिकताएं जल्द पूरी हो जाएंगी और इससे दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नए अवसर खुलेंगे.

ऊर्जा साझेदारी में नया मोड़

भारत को अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की सप्लाई पर बातचीत 2000 के दशक के मध्य से चल रही है. 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने एक समझौते पर दस्तखत किए थे, जो भारत को अमेरिकी नागरिक परमाणु तकनीक बेचने की अनुमति देता है.

हालांकि, इस साझेदारी में कई अड़चनें आई हैं. खासकर भारत के परमाणु दायित्व कानूनों को लेकर. ये कानून अंतरराष्ट्रीय मानकों से अलग हैं. दुनियाभर में, किसी परमाणु दुर्घटना की जिम्मेदारी आमतौर पर संयंत्र चलाने वाली कंपनी की होती है, न कि संयंत्र बनाने वाले की.

लेकिन भारत के सख्त नियमों की वजह से विदेशी सप्लायरों के साथ समझौते मुश्किल हो गए. इसी कारण भारत का 2020 तक 20,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य अब 2030 तक खिसक गया है.

व्यापार के रास्ते साफ करने की कोशिश

अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद कई भारतीय संस्थानों पर प्रतिबंध लगाए थे. हालांकि, समय के साथ कई प्रतिबंध हटा लिए गए, 2010 में दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग को लेकर समझौता भी हुआ था. लेकिन अभी भी भारत के कुछ रिएक्टर, परमाणु ऊर्जा संयंत्र और परमाणु ऊर्जा विभाग की इकाइयां इस सूची में हैं.

अब सुलिवन के बयान से संकेत मिलता है कि इन प्रतिबंधों को हटाने पर गंभीरता से काम हो रहा है. उन्होंने कहा, "यह उन संस्थानों के लिए नए अवसर पैदा करेगा, जो अभी तक प्रतिबंधों की सूची में थे."

सुलिवन की यह यात्रा अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित है. यह सहयोग खासतौर पर रक्षा, अंतरिक्ष और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे क्षेत्रों में बढ़ रहा है.

2022 में दोनों देशों ने एक तकनीकी पहल शुरू की थी. इसका मकसद सेमीकंडक्टर उत्पादन और एआई विकास में सहयोग करना था. इसी पहल के तहत जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच भारत में जेट इंजन बनाने का समझौता हुआ. सुलिवन की यात्रा का उद्देश्य इन परियोजनाओं को आगे बढ़ाना और नई साझेदारियों के रास्ते तलाशना है.

राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भ

यह दौरा बाइडेन प्रशासन के आखिरी बड़े भारत दौरे के रूप में देखा जा रहा है. सुलिवन ने बताया कि भारत-अमेरिका साझेदारी की अमेरिका की क्षेत्रीय और वैश्विक प्राथमिकताओं में केंद्रीय भूमिका है. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की.

हालांकि, दोनों देशों के रिश्तों में कुछ तनाव भी रहे हैं. 2023 में अमेरिकी अभियोजकों ने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार के एक अधिकारी का न्यूयॉर्क में एक सिख कार्यकर्ता की हत्या की साजिश में हाथ था. इसके अलावा कनाडा में एक सिख कार्यकर्ता की हत्या ने भी विवाद खड़ा किया था. लेकिन इन घटनाओं से द्विपक्षीय संबंधों की व्यापक तस्वीर पर असर नहीं पड़ा है.

परमाणु व्यापार प्रतिबंध हटने से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी प्रगति हो सकती है. 2019 में दोनों देशों ने भारत में छह अमेरिकी परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने पर सहमति जताई थी. यह परियोजना अब तेज हो सकती है. भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों के जरिए परमाणु ऊर्जा का दोहन महत्वपूर्ण है.

भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र अभी तक कड़े कानूनों और बाधाओं से जूझ रहे हैं. उन्हें इस कदम से नई दिशा मिल सकती है. इससे न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ेगा, बल्कि तकनीक, रक्षा और वैश्विक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी रिश्ते मजबूत होंगे.

सुलिवन ने कहा, "इन बाधाओं को दूर कर हम पुराने विवादों को पीछे छोड़ सकते हैं." यह कदम दोनों देशों के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत है.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)