Bombay High Court: किसी पुरुष का अपने परिवार पर उत्पीड़न का आरोप लगाना IPC की धारा 498A के तहत नहीं आता; महिलाओं के प्रति क्रूरता से संबंधित मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

Bombay High Court: बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी पुरुष का अपने ही परिवार के सदस्यों पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाना और ससुराल में किसी महिला से क्रूरता दोनों अलग-अलग बातें हैं. अदालत ने सोमवार को उपलब्ध कराये गये 18 जुलाई के एक आदेश में यह टिप्पणी की. अदालत ने अपने आदेश में मार्च 2013 में मुंबई की निवासी एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी रद्द कर दी, जिसने अपने सास-ससुर, देवर और ननदों पर क्रूरता व अत्याचार का आरोप लगाया था.

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अजीब बात यह है कि महिला ने अपने पति के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया. अदालत ने पूरे मामले को कानूनी प्रक्रिया तथा ससुराल में महिलाओं के प्रति क्रूरता से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा का दुरुपयोग करार दिया.

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न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने कहा कि प्राथमिकी एक “छद्म मुकदमा” है, जो व्यक्ति ने संपत्ति विवाद को निपटाने के लिए अपनी पत्नी के माध्यम से अपने ही परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज कराया. अदालत ने कहा कि यह एक "अजीब मामला" है, जिसमें महिला ने अपने पति के खिलाफ एक भी आरोप लगाए बिना अपने ससुराल वालों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत अपराध करने का आरोप लगाया है. धारा 498ए किसी महिला को उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार द्वारा परेशान किए जाने से संबंधित है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ महिला द्वारा लगाए गए उत्पीड़न व क्रूरता के आरोप "काफी सामान्य और अस्पष्ट" हैं.

उच्च न्यायालय ने कहा, "निस्संदेह, शिकायतकर्ता महिला ने प्राथमिकी में क्रूरता की घटनाओं की एक सूची दी है. हालांकि, ये घटनाएं आईपीसी की धारा 498 (ए) के प्रावधानों के तहत नहीं आतीं. किसी पुरुष का अपने परिवार के सदस्यों पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाना आईपीसी की धारा 498 के दायरे में नहीं आता.”

महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उसके ससुराल वाले उसके पति से छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करते थे ताकि उसे और उसके पति को घर से निकाल दिया जाए. महिला ने दावा किया कि उसके ससुराल वाले उसे अपने रसोई के सामान का उपयोग करने नहीं देते, घर की छत और बगीचे में जाने से रोकते हैं, तथा घरेलू सहायिका से उसके घर का काम न करने को कहते है. अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला "कानून की प्रक्रिया का पूर्ण दुरुपयोग" है. अदालत ने कहा, “प्राथमिकी अपने पिता की संपत्ति हासिल करने के लिए पत्नी के कंधे पर बंदूक रखकर चलाई गई गोली है. इसलिए, हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि यह प्राथमिकी याचिकाकर्ताओं से निजी रंजिश के चलते दायर कराई गई है.”

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