आज के दिन रिलीज हुई थी पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र! जानें इसके निर्माण की रोमांचक कथा!
राजा हरिश्चंद्र (Image Credit: Instagram)

आज भारतीय सिनेमा की दुनिया में अपनी साख रखता है. विश्व में सबसे ज्यादा फिल्म बनाने वाले भारत ने सिनेमा जगत के हर क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास किया है. भारतीय सिनेमा की 108वीं सालगिरह पर यह जानना बेहद रोमांचक होगा कि भारत में पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' (Raja Harishchandra) कब और कैसे बनी. आइये जानते हैं  (Dadasaheb Phalke) की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' की रोमांचक कथा

श्री राम-कृष्ण को पर्दे पर चलते देखने का ख्वाब

दादा साहब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 में हुआ था. उन्होंने कभी फिल्म नहीं देखी थी. एक दिन एक दोस्त की जिद पर वह गिरगांव (बंबई) अमेरिका इंडिया थियेटर में प्रदर्शित अंग्रेजी फिल्म ‘अमेजिंग एनिमल’ देखने पहुंच गये. पर्दे पर उन्होंने पहली बार इंसान को चलते-फिरते देखा तो हैरान रह गये. घर आने पर जब उन्होंने अपने परिवार को यह बात बताई तो उनकी बातों पर किसी को भरोसा नहीं हुआ. अगले दिन वह पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने पहुंचे, तब जाकर सबको विश्वास हुआ. उस समय वे 41 साल के थे. इसके बाद दादा साहब जब भी कोई नई फिल्म आती, वे देखने पहुंच जाते थे. उन्हीं दिनों ईस्टर के दिन दादा साहब ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने पहुंचे. परदे पर जीसस क्राइस्ट को चलते-फिरते देखा तो मन में आया काश हमारे राम एवं कृष्ण भी परदे पर यूं ही चलते-फिरत दिखते. बस उसी पल उन्होंने मन बना लिया कि ऐसी फिल्म हम खुद बनाएंगे, जिसमें भारतीय संस्कृति के बारे में दुनिया जानेगी.

फिल्म मेकिंग के जुनून ने पहुंचा दिया लंदन

फिल्म बनाने की जिद और जुनून में वह लंदन पहुंच गये, फिल्म मेकिंग सीखने के लिए. दो वीक तक फिल्म मेकिंग की मुख्य तकनीक सीखकर वे वापस बंबई आ गये. 1 अप्रैल 1912 को उन्होंने ‘फाल्के फिल्म्स’ नाम से प्रोडक्शन कंपनी शुरु की. लंदन प्रवास के दरम्यान उन्होंने विलियमसन्स कैमरा और कोडक रॉ फिल्म्स का ऑर्डर बुक कर दिया था. ये सारे सामान मई 1912 को मिल गया.

आसान नहीं था सफर

फिल्म बनाने का सपना देखना जितना आसान था, उतना ही मुश्किल हो रहा था निर्माता तलाशना. विश्वास के अभाव में कोई भी व्यक्ति दादा साहब की फिल्म मेकिंग पर पैसे लगाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था. तब प्रोड्यूसर्स में विश्वास जगाने के लिए दादा साहब ने मटर के पौधे के विकास पर एक छोटी फिल्म बनाकर दिखाई, तब यशवंत नाडकर्णी एवं नारायण राव को विश्वास हुआ और दादा साहब को पैसे से मदद करने के लिए तैयार हुए.

कास्टिंग कलाकारों का

पैसों की व्यवस्था हो गयी तो दादा साहब ने कलाकारों के चयन के लिए अखबार में विज्ञापन छपवाया. लेकिन जो भी आया, उनकी एक्टिंग पसंद नही आयी. अंततः उन्होंने थियेटर से कुछ कलाकारों को चुना. ये कलाकार थे पांडुरंग गढाधर सने, गजानन वासुदेव और दतात्रेय दामोदर दबके. दादा साहब को राजा हरिश्चंद्र के किरदार के लिए दबके का व्यक्तित्व अच्छा लगा.

और इस तरह बना इतिहास

कैमरा, रॉ मैटीरियल, कलाकार एवं पटकथा तैयार होने के बाद फिल्म बनाने का सिलसिला शुरु हुआ. शूटिंग के लिए दादर मुख्य रोड पर स्थिति स्टूडियो में शूटिंग शुरु हुई. 21 दिन निरंतर काम चलने के बाद 50 मिनट की फिल्म राजा हरिश्चंद्र पूरी हुई. चूंकि यह मूक फिल्म थी, इसलिए बैकग्राउंड म्युजिक, गीत-संगीत की जरूरत नहीं थी. फिल्म रिलीज से पूर्व ही दादा साहब ने कलाकारों को 21 दिन के काम का 40 रुपये वेतन का भुगतान किया. अब 21 अप्रैल 1913 को फिल्म का प्रीमियर ग्रांट रोड (बंबई) स्थित ओलंपिया थियेटर में कुछ खास अतिथियों के साथ किया गया. आम पब्लिक के लिए 3 मई 1913 को गिरगांव के पास बॉम्बे कॉर्ननेशन थियेटर में फिल्म रिलीज हुई. बताया जाता है कि पहली भारतीय फिल्म देखने के लिए थियेटर के बाहर हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए. यह भीड़ देखकर दादा साहब गदगद होकर रह गये. अंततः उनके जुनून ने एक कीर्तिमान एक इतिहास रच दिया.