देश की खबरें | दिल्ली में सर्दियों के दौरान प्रदूषण में वाहनों से होने वाले उत्सर्जन की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी

नयी दिल्ली, छह नवंबर विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अनुसार, दिल्ली में सर्दियों के मौसम में प्रदूषण में सबसे अधिक हिस्सेदारी वाहनों से होने वाले उत्सर्जन की होती है। यह हिस्सेदारी पराली जलाने, सड़क की धूल या पटाखे फोड़ने से होने वाले प्रदूषण से भी अधिक है।

सीएसई के मुताबिक, स्थानीय स्रोतों से होने वाले प्रदूषण में 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी शहर की जर्जर परिवहन प्रणाली की है। अनुमान है कि रोजाना 11 लाख वाहन दिल्ली से होकर गुजरते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता और खराब हो जाती है।

वाहनों के राष्ट्रीय राजधानी से गुजरने से प्रदूषण में वृद्धि होती है, विशेष रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के स्तर में। दिल्ली में 81 फीसदी एनओएक्स प्रदूषण वाहनों के कारण होता है।

सीएसई की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण में प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों की हिस्सेदारी 30.34 प्रतिशत (जिसमें से 50.1 प्रतिशत प्रदूषण परिवहन के माध्यम से होता है) है, जबकि 34.97 फीसदी प्रदूषण एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के जिलों से और 27.94 प्रतिशत अन्य क्षेत्रों से उत्पन्न होता है। पराली जलाने की घटनाएं दिल्ली में केवल 8.19 प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।

सीएसई ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण कर ये आंकड़े जारी किए हैं। इनमें भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, मद्रास (आईआईटीएम); टेरी-एआरएआई और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का वायु गुणवत्ता डेटा और गूगल मैप से हासिल यातायात संबंधी आंकड़े शामिल हैं।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के पीछे मुख्य कारण परिवहन की स्थिति है। पराली जलाना, सड़कों पर उड़ने वाली धूल और पटाखे फोड़ना चिंताजनक है, लेकिन परिवहन की स्थिति पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। हमें दोषारोपण में नहीं उलझना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण सर्दियों के दौरान खेतों में पराली जलाए जाने और पटाखे फोड़े जाने से प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन वे अकेले इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। सबसे बड़ा कारण वाहनों से होने वाला उत्सर्जन है और हमें इस समस्या से निपटने के लिए साल भर प्रयास करने की जरूरत है। केवल आपातकालीन उपाय के रूप में क्रमिक प्रतिक्रिया कार्य योजना (जीआरएपी) को लागू करना काफी नहीं होगा।’’

सीएसई ने सार्वजनिक परिवहन में सुधार के लिए एकीकृत परिवहन प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित किया।

सीएसई के मुताबिक, इस समय दिल्ली में उपयोकर्ताओं के लिए सार्वजनिक परिवहन महंगा है और सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने वाले करीब 50 प्रतिशत यात्री अपनी सालाना आय का 18 प्रतिशत यातायात पर खर्च करते हैं, जबकि निजी वाहन मालिक अपनी सालाना आय का केवल 12 प्रतिशत इस मद में खर्च करते हैं।

उसने कहा कि व्यय में यह अंतर यात्रा के दौरान लगने वाले समय और बस से यात्रा के लिए बार-बार साधन बदलने की जरूरत के कारण है।

भारी मांग के बावजूद दिल्ली की परिवहन प्रणाली लोगों की जरूरतों पर खरी नहीं उतरती। दिल्ली सरकार ने सार्वजनिक परिवहन बेड़े में नयी बसें शामिल की हैं, जिससे जुलाई 2024 में राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर दौड़ने वाली बसों की संख्या 7,683 (इनमें 1,970 इलेक्ट्रिक बसें शामिल हैं) हो गई, लेकिन यह अब भी उच्चतम न्यायालय के 10 हजार बसों को चलाने के 1998 के निर्देश से कम है।

दिल्ली में इस समय प्रति लाख आबादी पर लगभग 45 बसें चलाई जाती हैं, जो आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रति लाख आबादी पर 60 बसों के मानक से कम है। बसों के खराब होने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। 2018-19 में ‍ऐसी 781 घटनाएं सामने आई थीं, जो 2022-23 में बढ़कर 1,259 हो गईं।

आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में यातायात के लिहाज से सबसे व्यस्त घंटों (शाम पांच बजे से रात नौ बजे तक) में वाहनों की औसत रफ्तार घटकर 15 किलोमीटर/घंटा रह जाती है और नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर दोपहर के घंटों (दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक) की तुलना में 2.3 गुना अधिक हो जाता है।

आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में दोपहर में वाहनों की औसत गति 21 किलोमीटर/घंटा होती है। भारी यातायात जाम और वाहनों की धीमी गति के कारण होने वाला उत्सर्जन वायु की गुणवत्ता को खराब करता है, खासकर सर्दियों के दौरान जब हवा भारी होने की वजह से प्रदूषक सतह के करीब जमा होने लगते हैं।

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