नयी दिल्ली, सात दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधिकरण ने लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर प्रतिबंध पांच और वर्ष के लिए बढ़ाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि यह समूह अब भी भारत की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बना हुआ है और देश की अखंडता व सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों में लिप्त है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की सदस्यता वाले न्यायाधिकरण ने कहा कि लिट्टे का सभी तमिलों के लिए एक अलग मातृभूमि (तमिल ईलम) का उद्देश्य भारत की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा है।
न्यायाधिकरण ने कहा कि ऐसा करना भारत के भू-भाग के एक हिस्से को अलग करने के समान है और इस प्रकार यह गैरकानूनी गतिविधियों के दायरे में आता है।
अंतिम निष्कर्ष में न्यायाधिकरण ने कहा, “उसका मानना है कि गैर कानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम (यूएपीए) के अंतर्गत लिट्टे को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूत मौजूद हैं।”
लिट्टे पर प्रतिबंध पांच साल के लिए बढ़ाए जाने के बाद गृह मंत्रालय ने यूएपीए के तहत 14 मई, 2024 को न्यायाधिकरण का गठन किया गया था।
गृह मंत्रालय द्वारा शुक्रवार को जारी अधिसूचना के अनुसार, सरकार ने न्यायाधिकरण के समक्ष कहा है कि मई 2009 में श्रीलंका में अपनी सैन्य हार के बाद भी, लिट्टे ने 'ईलम' की अवधारणा को नहीं छोड़ा है और वह गुप्त रूप से धन जुटाने और प्रचार गतिविधियों के माध्यम से इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए काम कर रहा है।
सरकार के अनुसार, शेष लिट्टे नेताओं या कार्यकर्ताओं ने भी बिखरे हुए कार्यकर्ताओं को फिर से संगठित करने तथा स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठन को पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
न्यायाधिकरण ने दलीलों पर गौर करने के बाद लिट्टे पर लगा प्रतिबंध पांच साल बढ़ाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)