नयी दिल्ली, 17 दिसंबर दिल्ली की एक अदालत ने नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि दोषी ने ‘‘सुनियोजित तरीके से’’ शारीरिक संबंध बनाये और जब उसे पता चला कि पीड़िता गर्भवती है तो उसे छोड़ दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने 16 दिसंबर को पारित आदेश में कहा कि दोषी किसी भी नरमी का हकदार नहीं है क्योंकि दुष्कर्म की वजह से जन्म लिये बच्चे को ‘‘नाजायज होने’’का दंश झेलना पड़ेगा।
अतिरिक्त लोक अभियोजक अरुण के वी ने अधिकतम सजा का अनुरोध करते हुए दलील दी कि पेशे से ऑटो रिक्शा चालक दोषी ने 2016 और 2018 के बीच 15 वर्षीय किशोरी के साथ विवाह का झांसा देकर संबंध बनाया और बच्चे का जन्म होने के बाद उसे छोड़ दिया।
अभियोजक ने कहा, ‘‘यह सिर्फ यौन हिंसा का मामला नहीं है, बल्कि विश्वासघात का भी मामला है। पीड़िता को सामाजिक अस्वीकृति का आघात सहने के लिए छोड़ दिया गया। पीड़िता और उसके बच्चे दोनों को, दोषी के कृत्यों के कारण जीवन भर दंश झेलना पड़ेगा।’’
अदालत, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धारा 6 और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराये गए 27 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ सजा पर दलील सुन रही थी।
अदालत ने कहा, ‘‘दोषी ने बहुत ही सोच-समझकर नाबालिग को यौन संबंध बनाने के लिए बहलाया फुसलाया... नाबालिग को 17 साल की कम उम्र में मां बनने के लिए मजबूर किया गया...।’’
अदालत ने कहा कि दोषी ने न केवल नाबालिग पीड़िता का शोषण किया, बल्कि उसका भविष्य भी बर्बाद कर दिया।
इस बात पर जोर देते हुए कि दोषी किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है, अदालत ने दोषी को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसका अर्थ है वह अपना शेष जीवन जेल में काटेगा। अदालत ने इसके साथ ही दोषी पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया, जो पीड़िता को दिया जाएगा।
अदालत ने पीड़िता को 16.50 लाख रुपये का ‘‘अधिकतम मुआवजा’’ देते हुए कहा कि उसे अपने बच्चे की देखभाल करनी है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे इस बात का अहसास है कि पीड़िता का पता नहीं चल पाया है। हालांकि, वह सम्मानजनक जीवन जीने की हकदार है और उसका पता लगाया जाना जरूरी है, ताकि उसे मुआवजा राशि दी जा सके।’’
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