जूनागढ़, 13 जनवरी : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के जूनागढ़ जिला स्थित मढड़ा धाम में आयोजित चारण समाज की आध्यात्मिक गुरु आई श्री सोनल मां के जन्म शताब्दी समारोह पर शनिवार को उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. प्रधानमंत्री ने तीन दिवसीय जन्म शताब्दी समारोह कार्यक्रम को वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित करते हुए लोगों से अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का जश्न मनाने के लिए 22 जनवरी को श्री राम ज्योति प्रज्वलित करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, ‘‘मढड़ा धाम, चारण समाज के लिए श्रद्धा का केंद्र है, शक्ति का केंद्र है, संस्कार-परंपरा का केंद्र है. मैं आई के श्री चरणों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हूं, उन्हें प्रणाम करता हूं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘गुजरात और सौराष्ट्र की ये धरती खास तौर पर महान संतों और विभूतियों की भूमि रही है। कितने ही संत और महान आत्माओं ने इस क्षेत्र में पूरी मानवता के लिए अपना प्रकाश बिखेरा है.’’
मोदी ने कहा कि गिरनार भगवान दत्तात्रेय और अनगिनत संतों का स्थान रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘सौराष्ट्र की इस सनातन संत परंपरा में श्री सोनल मां आधुनिक युग के लिए प्रकाश स्तम्भ की तरह थीं. उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा, उनकी मानवीय शिक्षाएँ, उनकी तपस्या, से उनके व्यक्तित्व में एक अद्भुत दैवीय आकर्षण पैदा होता था. उसकी अनुभूति आज भी जूनागढ़ और मढड़ा के सोनल धाम में की जा सकती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘सोनल मां का पूरा जीवन जनकल्याण के लिए, देश और धर्म की सेवा के लिए समर्पित रहा. उन्होंने भगत बापू, विनोबा भावे, रविशंकर महाराज, कनभाई लहेरी, कल्याण सेठ जैसे महान लोगों के साथ काम किया.’’
मोदी ने कहा कि चारण समाज के विद्वानों के बीच उनका एक विशेष स्थान हुआ करता था और उन्होंने कई युवाओं का मार्गदर्शन कर उनका जीवन बदला. समाज के प्रति उनके योगदान को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए अद्भुत काम किया. उन्होंने कहा कि सोनल मां ने व्यसन और नशे के अंधकार से समाज को निकालकर नयी रोशनी दी तथा समाज को कुरुतियों से बचाने के लिए निरंतर काम करती रहीं.
मोदी ने कहा कि भागवत पुराण जैसे ग्रन्थों में चारण समाज को सीधे श्रीहरि की संतान कहा गया है. उन्होंने कहा, ‘‘विशाल चारण साहित्य आज भी इस महान परंपरा का प्रमाण है. चाहे देशभक्ति के गीत हों, या आध्यात्मिक उपदेश हों, चारण साहित्य ने सदियों से इसमें अहम भूमिका निभाई है.’’ उन्होंने कहा कि सोनल मां को पारंपरिक पद्धति से कभी शिक्षा नहीं मिली. लेकिन, संस्कृत पर भी उनकी अद्भुत पकड़ थी और शास्त्रों का उन्हें गहराई से ज्ञान प्राप्त था.
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