नई दिल्ली, 25 सितंबर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता राम माधव ने शनिवार को कहा कि भारत का विभाजन केवल क्षेत्र का नहीं हुआ था बल्कि मन भी बंट गये थे. उन्होंने कहा कि आपस में जोड़ने के तरीकों को तलाशने और उन तत्वों को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है जो अलगाववादी विचार में विश्वास रखते हैं.माधव ने कहा कि ‘अखंड भारत’ के विचार को केवल भौतिक सीमाओं को मिलाने के बारे में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि विभाजन की भयावहता से जो मानसिक बाधाएं पैदा हुईं उन्हें मिटाने के प्रयास के रूप में समझा जाना चाहिए.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) की ओर से ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को सम्बोधित करते हुए माधव ने कहा कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक ‘दैत्य’ के रूप में बढ़ने का मौका दिया गया और वह भारत का विभाजन कराने के लिए तुले हुए थे.आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य माधव ने विभाजन को एक “प्रलयंकारी घटना” बताया जो गलत निर्णयों की वजह से हुई. उन्होंने कहा, “भारत का विभाजन उस दौरान अन्य कई देशों में हुए विभाजन जैसा नहीं था. वह केवल सीमाओं का बंटवारा नहीं था… वह इस झूठे सिद्धांत पर किया गया था कि हिंदू और मुसलमान अलग राष्ट्र हैं जबकि वे भिन्न पद्धतियों को मानते हुए भी एक साथ रह रहे थे. ”यह भी पढ़े:राहुल गांधी की नई टीम, कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी 28 सितंबर को कांग्रेस में होंगे शामिल, मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
उन्होंने कहा कि विभाजन से महत्वपूर्ण सबक भी मिले हैं और हमें अतीत की उन गलतियों से सीखना चाहिए तथा जो लोग बंट गए उनके बीच “पुल बनाने” का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत का बंटवारा केवल क्षेत्र का विभाजन नहीं था बल्कि मन भी बंट गये थे.माधव ने कहा, ‘‘हमें मानसिक बंटवारे की दीवारों को ढहाना हेागा और एक अखंड भारतीय समाज बनाना होगा ताकि भारत को भविष्य में कभी विभाजन की एक अन्य त्रासदी को नहीं झेलना पड़े. और अगला कदम होगा सेतु का निर्माण करना. ’’उन्होंने कहा, ‘‘हमें सेतु निर्माण के तरीके तलाशने होंगे तभी विभाजन (के प्रभावों) को वास्तविक तौर पर निष्प्रभावी किया जा सकता है. भले ही भौगोलिक, राजनीतक एवं भौतिक सीमाएं बरकरार रहें, किंतु मानसिक बाधाएं, विभाजित हृदय की सीमाओं को मिटाया जाना चाहिए. ’’माधव ने कहा, ‘‘वास्तव में हमें ‘अखंड भारत’ के पूरे विचार को इसी दृष्टिकोण से देखना चाहिए, भौतिक सीमाएं मिटाने की नजर से नहीं. किंतु मन की उन बाधाओं को दूर करना चाहिए जो विभाजन की भयावह गाथा के कारण पैदा हुई. ’’
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