नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बच्ची का पीछा करने और उसका यौन उत्पीड़न करने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि व्यक्ति मानसिक विकार से पीड़ित है और उसे अपने कार्यों की जानकारी नहीं है।
उच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों की ओर से दायर की गई रिपोर्ट पर गौर किया जिसमें राय व्यक्त की गई है कि आरोपी मनोविकृति एन.ओ.एस. (अन्यथा निर्दिष्ट नहीं) के साथ ‘बॉर्डर लाइन इंटेलेक्चुअल एबिलिटी’ से पीड़ित है। ‘बॉर्डर लाइन इंटेलेक्चुअल एबिलिटी’ से आशय ऐसे लोगों से है जिनकी बौद्धिक क्षमता सामान्य बुद्धिमत्ता वाले लोगों और बौद्धिक रूप से असामान्य लोगों के बीच की होती है।
न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने कहा, “मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि याचिकाकर्ता को नियमित चिकित्सीय देखभाल और निगरानी तथा इलाज के लिए अपने परिवार के सदस्यों की मदद की जरूरत है।”
उन्होंने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में विवरण नहीं दिया गया है लेकिन उक्त राय में पीड़िता के पिता की अनापत्ति भी दी गई, लिहाज़ा यह अदालत उक्त प्राथमिकी और इससे संबंधित कार्यवाही को रद्द करती है।
अदालत ने 2021 में व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया जो भारतीय दंड संहिता के तहत पीछा करने और बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत दर्ज की गई थी।
अदालत ने पीड़िता के पिता से भी बात की जिन्होंने कहा कि प्राथमिकी रद्द करने को लेकर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
प्राथमिकी के मुताबिक, नवंबर 2021 में, जब छठी कक्षा में पढ़ने वाली लड़की अपने घर के बाहर अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी, तभी व्यक्ति आया और उसने बच्ची को गलत तरीके से छुआ।
लड़की वहां से भागने में कामयाब रही लेकिन व्यक्ति उसका पीछा करता रहा और घर पहुंचकर बच्ची ने अपने पिता को इसकी जानकारी दी, जिन्होंने आरोपी को वहां से भगा दिया।
प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह करते हुए व्यक्ति के वकील ने कहा कि वह द्विध्रुवी विकार का मरीज है। उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल द्वारा जारी चिकित्सा दस्तावेज यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर रखे कि उसका अपने कार्यों पर नियंत्रण नहीं है।
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