मुंबई, आठ अक्टूबर बम्बई उच्च न्यायालय ने 23-वर्षीय अविवाहित महिला को 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है और कहा है कि विवाहित महिलाओं को इस तरह की अनुमति पर प्रतिबंध लगाने का मतलब होगा- कानून की संकीर्ण व्याख्या करना।
एक खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की संकीर्ण व्याख्या कानूनी प्रावधान को अविवाहित महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण बना देगी और इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करेगी।
अदालत का यह फैसला उस समय आया जब 21 सप्ताह की गर्भवती महिला ने वित्तीय और व्यक्तिगत कारणों से गर्भ समाप्त करने की मांग की।
न्यायमूर्ति सारंग कोटवाल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने अविवाहित महिला की याचिका का महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस आधार पर विरोध किये जाने पर सात अक्टूबर को आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता उन महिलाओं की निर्दिष्ट श्रेणी में नहीं आती है, जो 20 सप्ताह से अधिक समाप्त करने के लिए मजबूर कर सकती है।
‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम’ (एमटीपीए) नियमावली के नियम 3-बी के तहत, केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति है। इन श्रेणियों में यौन उत्पीड़न पीड़िता, नाबालिग, विधवा या तलाकशुदा, शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग महिलाएं और भ्रूण संबंधी असामान्यताएं शामिल हैं।
महिला की याचिका में कहा गया है कि उसका गर्भ सहमति से बने यौन संबंध से हुआ है और उसके पास बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए वित्तीय साधन नहीं हैं।
सितंबर 2024 में महिला 21 सप्ताह की गर्भवती थी और राज्य-संचालित जेजे अस्पताल ने उसे गर्भपात के लिए अदालत की मंजूरी लेने की सलाह दी, क्योंकि यह 20 सप्ताह की सीमा पार कर चुका था।
एमटीपीए के प्रावधानों के तहत 20 सप्ताह की गर्भ अवधि से परे की गर्भावस्था को अदालत की मंजूरी के बाद ही समाप्त किया जा सकता है।
अदालत ने महिला को गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए एक चिकित्सा प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दी।
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