नयी दिल्ली, नौ दिसंबर सेना की एक महिला अधिकारी को राहत देते हुए, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उन्हें स्थायी कमीशन प्रदान किया और कहा कि उन्हें गलत तरीके से इससे बाहर रखा गया जबकि समान रूप से पदस्थ अन्य अधिकारियों को यह लाभ दिया गया।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि सियाचिन या अन्य दुर्गम क्षेत्रों में बहादुरी से सीमा की पहरेदारी कर रहे जांबाज भारतीय सैनिकों को सेवा शर्तों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘क्या उन्हें यह कहना सही होगा कि समान रूप से पदस्थ होने की स्थिति में उन्हें राहत नहीं दी जाएगी, क्योंकि जिस निर्णय का उन्होंने हवाला दिया है वह कुछ खास आवेदकों के मामले में पारित किया गया था जिन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया था। हमें लगता है कि यह बहुत अनुचित परिदृश्य होगा।’’
शीर्ष अदालत ने एक महिला अधिकारी द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला दिया। यह अधिकारी आगरा में सैन्य डेंटल कोर में लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में पदस्थ हैं। उन्होंने लखनऊ स्थित सशस्त्र बल अधिकरण (एएफटी) की क्षेत्रीय शाखा के 2022 के आदेश को चुनौती दी थी।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग किया और उन्हें स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता के मामले को स्थायी कमीशन देने के लिए लिया जाए और उन्हें उसी तारीख से स्थायी कमीशन का लाभ दिया जाए जिस दिन अन्य व्यक्तियों ने एएफटी के 22 जनवरी 2014 के निर्णय के अनुपालन में लाभ हासिल किये थे।’’
महिला अधिकारी ने एएफटी की प्रधान पीठ के जनवरी 2014 के फैसले में दी गई राहत के समान उन्हें भी लाभ प्रदान करने संबंधी उनके अनुरोध को जनवरी 2022 में खारिज किये जाने संबंधी आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
महिला अधिकारी ने कहा कि वाद में अन्य आवेदकों के साथ शामिल नहीं हो पाईं क्योंकि उस वक्त उनका गर्भावस्था अंतिम चरण में था।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि आवेदक को (स्थायी कमीशन प्रदान करने पर विचार किये जाने से) गलत तरीके से बाहर रखा गया, जब समान रूप से पदस्थ अन्य अधिकारियों के नाम पर विचार किया गया और स्थायी कमीशन प्रदान किया गया।’’
न्यायालय ने कहा कि इसके निर्देशों को चार हफ्तों में लागू किया जाए तथा आवेदक को बकाया सहित वरिष्ठता, पदोन्नति एवं मौद्रिक लाभ सहित सभी लाभ प्रदान किए जाएं।
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