वाशिंगटन, एक सितंबर अमेरिकी राजनयिक ने सोमवार को कहा कि चीन अपने हितों के हर मोर्चे पर लड़ाई तेज कर रहा है, इसलिए अमेरिका की रणनीति उसे हर मोर्चे पर पीछे धकेलने की है।
अमेरिकी विदेश उप मंत्री स्टीफन बियेगन ने ‘तीसरे भारत-अमेरिका नेतृत्व सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हमारी रणनीति चीन को वस्तुत: हर क्षेत्र में वापस पीछे धकेलने की है। हम यह सुरक्षा के क्षेत्र में कर रहे हैं। हम यह पर संप्रभु इलाकों पर दावा जताने की उसकी बेमानी मांगों के संदर्भ में कर रहे हैं, चाहे भारत-चीन सीमा पर भारत की गलवान घाटी का मामला हो या फिर दक्षिण प्रशांत सागर का।’’
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इस सम्मेलन का आयोजन ‘अमेरिका भारत रणनीति एवं साझेदारी मंच’ (यूएसआईएसपीएफ) ने किया था।
उन्होंने कहा कि ट्रम्प प्रशासन भी आर्थिक मामलों में यही कर रहा है।
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भारत में अमेरिकी राजदूत रहे रिचर्ड वर्मा से बात करते हुए बियेगन ने कहा,‘‘ राष्ट्रपति ने चीनी अर्थव्यवस्था के अनुचित और दमनकारी तौर-तरीकों के खिलाफ कार्रवाई की है और पहले चरण का व्यापार समझौता (इस दिशा में) बस पहला कदम है। आने वाले वर्षों में अमेरिका-चीन आर्थिक संबंधों में संतुलन लाने के लिए ढेर सारे कदम उठाए जाएंगे।’’
उन्होंने रेखांकित किया कि बहुत लंबे समय से, चीन को विशेष विशेषाधिकार और लाभ, और यहां तक कि उनके बीच के संदेह का लाभ देने की इच्छा थी, ताकि चीन को अधिक आधुनिक और समृद्ध बनाया जा सके।’’
बियगन ने कहा कि बीस साल पहले जब चीन को विश्व व्यापार संगठन में लाने के लिए पहल की गई तो नीति निर्माताओं को मानना था कि चीन जिन संस्थानाओं से जुड़ रहा है उससे उसकी राजनीतिक प्रणाली और चीनी हितों में बदलाव होगा और वह अधिक नियम आधारित व्यवस्था बनेगा।
उन्होंने कहा कि नियम आधारित व्यवस्था चीन सरकार के रुख में बदलाव करेगी और भले चीन में वास्तविक लोकतंत्र नहीं आए, वह दुनिया के अन्य हिस्सों से बेहतर साझेदारी कर सके।
उप विदेशमंत्री ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से अमेरिकी प्रशासन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि सभी मोर्चो पर यह प्रयोग असफल रहा है और मैं यह उल्लेख करना चाहता हूं कि हम चीन को दोबारा पीछे धकेलेंगे।’’
उन्होंने कहा कि तार्किक संतुलन और साझे हित की तलाश करने के बजाय अमेरिका ने पाया कि प्रौद्योगिकी की चोरी हो या अन्य देशों के जमीन और समुद्री इलाकों पर राष्ट्रीय संप्रभुता का दावा, चीन ने जितना हो सकता था उतना मौकों का दोहन किया।
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