मुंबई, 22 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के प्रधान जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिया कि वे अपनी-अपनी अदालतों में वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा चालू अवस्था में होने की जांच करें। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि अगर विचाराधीन कैदियों को अदालत के समक्ष पेश करने के दौरान पुलिस सुरक्षा की उपलब्धता को लेकर जेल अधिकारियों के साथ सामयिक बैठक होती है तो उसके बारे में भी सूचित करें।
न्यायमूर्ति प्रसन्ना वराले और न्यायमूर्ति एस. एम. मोदक की पीठ ने पांच अप्रैल को इससे संबंधित आदेश परित किया जिसकी प्रति शुक्रवार को उपलब्ध हुई। इसके मुताबिक उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष ने सभी प्रधान जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिया कि वे जेल अधिकारियों से बैठक करें ताकि अधिक पुलिस सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया, ‘‘ सभी प्रधान जिला न्यायाधीश सत्यापित करें कि क्या पुलिस एस्कॉर्ट की उपलब्धता को लेकर ये बैठकें हो रही हैं या नहीं। अगर ऐसी बैठकें हो रही हैं तो प्रधान जिला न्यायाधीश सत्यापित करें कि क्या इससे संबंधित रिपोर्ट उच्च न्यायालय प्रशासन को भेजी गई।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर किन्हीं कारणों से बैठकें नहीं हुई तो प्रधान जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिया जाता है कि वे सामयिक आधार पर इन बैठकों को सुनिश्चित करें।
अदालत ने कहा, ‘‘हम महाराष्ट्र के सभी प्रधान जिला न्यायाधीशों को निर्देश देते हैं कि वे सत्यापित करें कि वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा काम कर रही है या नहीं। अगर वे काम नहीं कर रही है तो उन्हें कार्य करने की स्थिति में लाने के लिए कदम उठाएं।’’
उचच न्यायालय ने यह आदेश बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया जिसे सुशील लोहिया ने दायर किया था जिनका बेटा ब्रिजेश लोहिया मौजूदा समय में न्यायिक हिरासत में है।
ब्रिजेश लोहिया को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आपराधिक षडयंत्र और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया है। ब्रिजेश आठ मार्च 2022 को सीबीआई की हिरासत में था और 22 मार्च को उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया। हालांकि, 22 मार्च को उसे रिमांड के लिए न तो प्रत्यक्ष रूप से न ही वीडियो कांफ्रेंस के जरिये अदालत के समक्ष पेश किया गया। विशेष अदालत ने उसकी न्यायिक हिरासत पांच अप्रैल तक बढ़ा दी।
सुशील लोहिया ने इसके बाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि चूंकि उनके बेटे को 22 मार्च को अदालत में पेश नहीं किया गया, इसलिए उसकी हिरासत अवधि बढ़ाने के आदेश को रद्द किया जाए और तुंरत रिहा किया जाए।
अतिरिक्त लोक अभियोजक एमएच महात्रे ने अदालत को सूचित किया कि आरोपी को अदालत में 22 मार्च को पेश नहीं किया जा सका क्योंकि पुलिस एस्कॉर्ट (सुरक्षा) उपलब्ध नहीं थी।
उच्च न्यायालय ने इस पर लोहिया की याचिका को स्वीकार्य योग्य नहीं होने का हवाला देते खारिज कर दिया लेकिन कहा कि जिस तरह से जेल अधीक्षक अपनी ड्यूटी कर रहे हैं और जिस तरह न्यायधीश ऐसे मामलों से निपट रहे हैं उस पर वह टिप्पणी करने का इच्छुक है।
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