कहीं खोखले ना रह जाएं यमन शांति वार्ता के दावे
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सउदी अरब और हूथी समूह के बीच जारी वार्ताओं और कैदियों के बीच होने वाली अदलाबदली के बावजूद युद्ध के खत्म होने के कोई ठोस निशान नहीं दिखते. ज्यादात यमनी गुट बातचीत से बाहर रखे गए हैं.रिपोर्टः जेनिफर होलाइज

यमन में सउदी अरब के राजदूत मोहम्मद बिन सईद अल-जबेर और हूथी विद्रोहियों के राजनीतिक प्रमुख महदी अल-मशत ने पिछले दिनों गर्मजोशी से हाथ मिलाये थे. तब उम्मीद जगी थी कि जल्द ही यमन में लडाई खत्म हो सकती है. हूथी के कब्जे वाली राजधानी सना में सउदी और हूथी प्रतिनिधियों के बीच रविवार से शांति वार्ता चल रही है.

वार्ता के मुख्य विषयों में दोनों युद्धरत पक्षों के बीच छह महीने की संधि भी शामिल है. सउदी अरब के समर्थन वाली अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार और ईरान समर्थक हूथी समूह के बीच लड़ाई जारी है. समझौते के तहत हूथी के नियंत्रण वाले सना हवाईअड्डे और होडाइडा में लाल सागर बंदरगाह को फिर से खोलने, सरकार के नियंत्रण वाले ताइज शहर में हूथी नाकाबंदी उठाने, हूथी के नियंत्रण वाले रास्तों से सरकारी तेल ठिकानों से तेल निर्यात की बहाली और यमनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने जैसे मुद्दे शामिल हैं.

बातचीत के ताजा दौर से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय उम्मीद के बावजूद, शांति स्थापना को लेकर कुछ संदेह भी हैं. एक वजह ये है कि यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार की कार्यकारी संस्था, राष्ट्रपति काउंसिल को वार्ताओं में शामिल नहीं किया गया था. दूसरे यमनी दलों को भी नहीं रखा गया जैसे कि सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल(एसटीसी) के अलगाववादियों को.

यमन के दो प्रमुख राजनीतिक धड़ों, हूथियों और सरकार के बीच 2014 से लड़ाई छिड़ी है. ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों ने सना पर कब्जा कर सरकार को अपदस्थ कर दिया था. 2015 में हालात और बिगड़ गए, जब सउदी अरब की अगुवाई में नौ देशों के गठबंधन ने रेड सी तट पर बसे अदन शहर में अंतरराष्ट्रीय मान्यता वाली सरकार को बहाल करने के लिए दखल दिया.

ये क्रूर संघर्ष- जिसे सउदी अरब और ईरान के बीच एक प्रॉक्सी-वॉर यानी छद्म युद्ध की तरह देखा जाता है- करीब पांच लाख जानें ले चुका है और हजारों लोगों को देश में ही विस्थापित कर चुका है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक तीन करोड़ से थोड़ा अधिक की कुल आबादी में करीब एक तिहाई लोग पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर हैं. युद्धग्रस्त देश के हालात को दुनिया के सबसे भयानक मानवीय संकटों में एक माना जाता है.

शांति वार्ताओं से 'बढ़ सकता है विघटन का खतरा'

बर्लिन के थिंक टैंक, यमन पॉलिसी सेंटर जर्मनी की निदेशक मारवा बाबाड को लगता है कि मौजूदा वार्ताओं का दरअसल लक्ष्य, युद्ध का खात्मा नहीं है. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "स्थायी शांति के लिए खिड़की खुली रखनी है तो यमनी दलों के बीच प्रमुख मतभेदों को दूर करना ही होगा."

वो कहती हैं, "ओमान का उद्देश्य यमन में राष्ट्रीय स्तर की व्यापक शांति स्थापित कराने का नहीं था बल्कि वो हूथियों को सीमा पार से हमले बंद करने के लिए मनाना चाहता था और सउदी अरब और हूथियों के बीच संबंधों को सामान्य कराना चाहता था."

धुरविरोधी ईरान के साथ सात साल से ठप्प पड़े संबंधों को मार्च में बहाल करने की सहमति जताने के बाद, क्षेत्रीय शत्रुओं से संबंधों को सुधारने की कोशिशों की सउदी अरब की फेहरिस्त में, अगला नाम हूथी समूह का हो सकता है. ये कोई छिपी बात नहीं कि सउदी अरब, यमन में महंगे पड़ रहे छद्म युद्ध से निकलने के लिए छटपटा रहा है.

सना सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज में वरिष्ठ शोधकर्ता अब्दुलघनी अल-इरायनी ने डीडब्लू को बताया कि उन्हें लगता है, यमन को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया. वो कहते हैं, "सउदी अरब, क्षेत्र में टिकाऊ स्थिरता और सुरक्षा के लिए अपने दूरगामी हितों को दांव पर लगाकर छोटी अवधि के उद्देश्यों को पूरा कर रहा है."

"सउदी अरब ने दूसरे तमाम दलों की कीमत पर हूथियों को यमन का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दे दिया." वो आगाह करते हैं उसका ये कदम, राजनीतिक सत्ता में किसी को भागीदार बनाने की हूथियों की अनिच्छा के साथ मिलकर देश में अस्थिरता को और तीव्र कर सकता है.

अल-इरायनी कहते हैं, "मौजूदा वार्ता से क्षेत्रीय विघटन का जोखिम और बढ़ सकता है क्योंकि दूसरी पार्टियां हूथी के नियंत्रण में रहने को राजी नहीं होंगी."

उन्होंने इस संदर्भ में देश के दक्षिण में जारी उस आंदोलन की ओर ध्यान दिलाया जो 2017 से अपना एजेंडा चलाता आ रहा है. अल-इरयानी के मुताबिक सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल, एसटीसी के अलगाववादी बहुत मुमकिन है कि एकतरफा अलगाव की घोषणा कर दें.

ऐसा हुआ तो यमन और अधिक अस्थिरता का शिकार होगा. वो कहते हैं, "एसटीसी पूरे दक्षिण पर नियंत्रण को तैयार नहीं, ना ही हूथी गुट पूरे उत्तर पर नियंत्रण कर सकता है, लिहाजा हम दो राज्यों को अलग होता नहीं देख रहे, बल्कि यमनी राज्य के विघटन के मुहाने पर खड़े हैं."

उन्हें इस पर भी शक है कि नयी सरकारी संस्थाओं के रूप में हूथियों या एसटीसी को कोई अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल पायेगी.

इसकी वजह से, युद्ध खत्म होने के बाद, अंतरराष्ट्रीय निवेश पर नकारात्मक असर पड़ेगा और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया भी धीमी पड़ेगी.

शांति के लिए चाहिए पुनर्निर्माण, मेल-मिलाप और आर्थिक सुधार

संघर्षों के विश्लेषक और ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय शांति संस्थान में वरिष्ठ यमनी सलाहकार, हिशम अल-ओमाइसी को भी इस पर संदेह है कि सउदी अरब और हूथियों के बीच विशिष्ट शांति वार्ताएं, स्थायी समाधान दे सकती हैं.

उन्होंने डीडब्लू को बताया, "यमन में 21 सूबे और 333 जिले हैं. सबकी अपनी अपनी खास समस्याएं हैं. समावेशिकता और ऊपर से नीचे की ओर देखने की सोच के बगैर यमन में कोई भी शांति प्रक्रिया टिकाऊ नहीं हो सकती."

अल-ओमाइसी ने कहा कि शांति बहाली की खातिर यमन को पुनर्निर्माण के लिए योजनाओं, समन्वय के रास्तों और तरीकों, और आर्थिक सुधारों की जरूरत है, और "इन सबके बगैर, और भरोसा कायम करने वाले उपायों को लागू किए बिना मौजूदा शांति वार्ता, बस दावों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करने जैसा होगा."

इस बीच, उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हो रही कैदियों की अदलाबदली इस सप्ताह संपन्न हो जाएगी. मार्च में यमन सरकार ने 706 हूथियों और हूथी विद्रोहियों ने 181 कैदियों को छोड़ने का वादा किया था.

बृहस्पतिवार सुबह, 14 कैदियों की पहली खेप की अदलाबदली हो भी गई. वार्ता में शामिल सरकारी प्रतिनिधिमंडल के आधिकारिक प्रवक्ता माजिद फदाएल ने ट्विटर पर इस अदलाबदली की तस्दीक की है.