टैरिफ की जंग और भारत का बढ़ता महत्व
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ जंग के बीच कारोबार के लिए भारत का महत्व बढ़ रहा है. जर्मन कंपनियां भारत को भूराजनीतिक उथल पुथल का लाभार्थी मान रही है और भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहती है.जर्मनी का हैम्बर्ग शहर भारत के साथ अपने पांच सौ साल के व्यापारिक संबंधों के लिए जाना जाता है. इस समय वह भारत और जर्मनी के प्रमुख कारोबारियों का मक्का बना हुआ है. 23 से 29 जून तक हो रहे भारत सप्ताह के दौरान आर्थिक, राजनीतिक, कारोबारी और सांस्कृतिक रिश्तों पर करीब 70 समारोहों का आयोजन हो रहा है जिनमें इंडो जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स का वार्षिक जलसा भी शामिल है.

हैम्बर्ग में जर्मन भारतीय बिजनेस आउटलुक के नतीजे रिलीज किए गए. इंडो जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स और कंसल्टेंसी कंपनी केपीएमजी द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सक्रिय करीब 2000 जर्मन कंपनियों में से आधी से ज्यादा की इस साल और निवेश करने की योजना है. इस सर्वे की मानें तो 2030 तक करीब 80 प्रतिशत जर्मन कंपनियां अपना निवेश बढ़ाएंगी.

जर्मनी और भारत का उत्साह

आखिर ये उत्साह आ कहां से रहा है? जब से यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन के साथ मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के अंत तक मुक्त व्यापार समझौते की उम्मीद जताई है, उद्यमियों के बीच जोश साफ झलकता है. अब वे चाहे भारतीय उद्यमी हों या जर्मन, दोनों ही इस संभावना से पैदा हुए मौके का फायदा उठाना चाहते हैं.

हैम्बर्ग में हुए कई सारे कारोबारी आयोजनों में भारत और जर्मनी की कुशलताओं को साथ लाने पर चर्चा हुई. मैन्युफैक्चरिंग जैसे पारंपरिक इलाकों के अलावा कई सारे दूसरे भविष्य के लिए महत्वपूर्ण इलाकों में भी सहयोग की संभावनाओं पर जोर दिया जा रहा है. इनमें एआई, ग्रीन मोबिलिटी और लाइफ साइंस जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं.

बड़े बाजार का आकर्षण

भारत में जर्मन कंपनियों की बढ़ती दिलचस्पी के पीछे भारत का 1.5 अरब आबादी वाला बड़ा बाजार तो शामिल है ही, कुछ दूसरे मुद्दे भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. जबसे अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने टैरिफ का चाबुक चलाया है, हर देश और हर उद्यमी आशंका में घिरा

दिखता है. लेकिन भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापारिक बातचीत से उम्मीदें भी जगी हैं.

अमेरिका और भारत इस समय जल्द से जल्द एक अंतरिम व्यापारिक समझौते की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि टैरिफ में छूट 9 जुलाई तक ही है. दोनों देशों के बीच 2017 से ही मुक्त व्यापार संधि के लिए बातचीत चल रही है और उम्मीद की जा रही है कि साल के अंत से पहले ही दोनों देशों के बीच समझौता हो जाएगा. इस समझौते से टैरिफ के मामले में भारत प्रतिस्पर्धी हो जाएगा. जर्मन कंपनियां भी इसका फायदा उठाना चाहेंगी.

एक दूसरे की जरूरत

दोनों ही देशों के आर्थिक रणनीतिकार इस हकीकत को समझते हैं कि भारत और जर्मनी अपनी कुशलताओं की वजह से एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं. जर्मनी को कुशल कामगारों की जरूरत है तो भारत को अपनी युवा आबादी के लिए नौकरियों की. इसलिए हैम्बर्ग में बहुत सी बैठकों का मुद्दा ये रहा है कि भारतीय युवाओं को किस तरह जर्मनी के लेबर मार्केट के लिए ट्रेन किया जाए.

भारत और जर्मनी के आर्थिक रिश्तों को आसान बनाने में ईयू और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते का अहम रोल होगा. भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप आकरमन मुक्त व्यापार समझौते को लेकर आश्वस्त दिखते हैं लेकिन साथ ही चेतावनी भी देते हैं कि उसे पूरी तरह लागू करने में वक्त लगेगा. फिर भी उन्हें उम्मीद है कि जर्मन कंपनियां सहयोग के लिए पहल करेंगी.

छात्रों की भूमिका

आने वाले समय में इस सहयोग को बढ़ाने में जर्मनी में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. आकरमन ने पहले से ही भारत में कैंपेन चला रखा है ताकि और ज्यादा भारतीय छात्र जर्मन विश्वविद्यालयों में दाखिला लें. अमेरिका में आप्रवासी छात्रों के खिलाफ ट्रंप सरकार की सख्ती ने भी जर्मन विश्वविद्यालयों की राह आसान की है. आकरमन ने कहा, "मैं छात्रों से कहता हूं, हम तुम्हारे सोशल मीडिया पोस्ट नहीं पढ़ेंगे.”

जर्मनी में भारत के राजदूत अजीत गुप्ते भी छात्रों के आदान प्रदान में बहुत संभावना देखते हैं. उनका सुझाव है कि जर्मन विश्वविद्यालयों को पहल करनी चाहिए और जिस तरह यहां कुछ मास्टर्स के कोर्स अंग्रेजी में हैं, उसी तरह अंग्रेजी में अंडरग्रैजुएट कोर्सों की भी शुरुआत करनी चाहिए. इस समय समय जर्मनी में 50,000 से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो जर्मनी में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की सबसे बड़ी संख्या है. यहां काम के लिए आ रहे लोगों की तादाद भी बढ़ी है और भारतीय डायस्पोरा बढ़कर 3 लाख से भी ज्यादा का हो गया है. जर्मनी भारतीय कामगारों को लुभाने की कोशिश कर रहा है.

स्किल्ड लेबर की बढ़ती मांग

जर्मनी में रहने वाले भारतीय लोगों की संख्या में अभी और वृद्धि होगी. जर्मनी को ना सिर्फ उच्च प्रशिक्षित एक्सपर्टों की जरूरत है बल्कि स्किल्ड लेबर की भी. हालांकि अस्पतालों में नर्सों या दूसरे केयरगिवर जैसे पेशों में भारतीय प्रशिक्षित हैं, लेकिन बहुत से दूसरे इलाकों में अभी भी उनका स्किल रोजगार की जरूरतों के अनुरूप नहीं है. हैम्बर्ग में भारतीय अधिकारियों और ट्रेनिंग के इलाके में काम करने वाले लोगों की दिलचस्पी ये जानने में है कि भारतीय ट्रेनिंग संस्थान उन जरूरतों को कैसे पूरा कर सकते हैं.

हैम्बर्ग का चैंबर ऑफ कॉमर्स विदेशों से आने वाले स्किल्ड लेबर में जेंडर गैप को पाटने के प्रयास भी कर रहा है. नीति आयोग की सोनिया पंत बताती हैं कि भारत में अलग-अलग राज्य अंतरराष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए ट्रेनिंग सेंटर बना रहे हैं. सीआईआई के रोहित शर्मा नॉर्थ ईस्ट का उदाहरण देते हैं जहां जापान जैसे देशों में रोजगार पाने के लिए ट्रेनिंग की सुविधाएं बनाई गई हैं.

भारत और जर्मनी में सांस्कृतिक अंतर भी हैं

जैसे जैसे भारतीयों की आबादी बढ़ रही है, जर्मन कंपनियों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ रही है, सांस्कृतिक अंतर का मुद्दा भी सामने आ रहा है. इसमें भाषा की एक अहम भूमिका है. हैम्बर्ग में भारतीय कंसुल जनरल सौम्या गुप्ता कहती हैं, अगर आप जर्मनी आ रहे हैं तो जर्मन सीखकर आइए, "आपको यहां रहने में और काम ढूंढ़ने में भी आसानी होगी.”

हैम्बर्ग के रोजगार एजेंसी के बोर्ड मेंबर सोएंके फॉक कहते हैं कि लोग सिर्फ कामगारों के तौर पर यहां नहीं आते, बल्कि इंसान के तौर पर आते हैं. इसलिए खासकर महिलाओं के लिए रहने का बेहतर माहौल तैयार करना होगा. महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सक्रिय रीता पनेसर कहती हैं कि हमारी कोशिश है कि महिलाएं लीडरशिप रोल में आएं. और इसके लिए मेंटरिंग जरूरी है.

ये सारी तैयारियां हैं भारत और जर्मनी के बीच संबंधों को बढ़ाकर बेहतर कारोबारी माहौल बनाने की. जर्मन भारत बिजनेस आउटलुक के अनुसार कंपनियों के हिसाब से भारत में काम करने के कई फायदे हैं. सर्वे के मुताबिक 61 फीसदी कंपनियां राजनीतिक स्थिरता को, 53 प्रतिशत उच्च प्रशिक्षित कर्मचारियों को और 53 प्रतिशत ही कर्मचारियों पर होने वाले खर्च को भारत में निवेश का सकारात्मक पहलू मानती हैं. जबकि 50 प्रतिशत का मानना है कि इस समय जो ग्लोबल पावर शिफ्ट हो रहा है, भारत को उसका लाभ मिलेगा.