इस्लामाबाद, 22 अगस्त : पाकिस्तानी अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि काबुल में अलकायदा नेता अयमान अल जवाहिरी की हत्या ने अफगान तालिबान के विश्व से मान्यता प्राप्त करने की कोशिशों को जोर का झटका दिया है. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने मानें तो अफगान सरकार के लिए आना वाला समय बेहद कठिन होने वाला है, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन ने उनके जब्त किए गए धन को जारी करने से फिलहाल इंकार कर दिया है. इस मामले से निपटने वाले एक अधिकारी ने कहा, यह पाकिस्तान के लिए भी चिंताजनक है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बोलते हुए द एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया कि अफगान सरकार को अमेरिका से अरबों डॉलर की जमा हुई संपत्ति न मिलने पर देश में आर्थिक संकट का खतरा बढ़ेगा, जिससे चलते अफगान पाकिस्तान पर अधिक निर्भर होंगे. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने आगे कहा कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में है. ऐसे में पड़ोसी देश की उनपर निर्भरता अच्छी नहीं होगी. ऐसी खबरें है कि हाल के हफ्तों में पाकिस्तान की मुद्रा में गिरावट का एक कारण यह था कि अफगानिस्तान में डॉलर की तस्करी हो रही थी. अधिकारी ने बताया, पाकिस्तान अफगान सरकार के लिए धन जारी करने पर जोर दे रहा है. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना है कि केवल इससे मानवीय सहायता पर्याप्त नहीं होगी. अफगान सरकार को देश को चलाने के लिए विदेशी भंडार की सख्त जरूरत है. यह भी पढ़ें : वोयाजर 2 के तारों के सफर की 5 अरब साल की विरासत 45 बरस बाद अभी शुरू हो रही है
एक पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा कि तालिबान रैंकों के भीतर भी मतभेद है. अधिकारी ने आगाह किया, यह परि²श्य केवल मामलों को और खराब करेगा. किसी मान्यता का मतलब कोई वित्तीय सहायता नहीं है. अफगानिस्तान अस्थिर रहेगा. अफगान तालिबान के लिए आने वाले कठिन समय की ओर इशारा करते हुए अधिकारी ने एक और संकेत दिए, जिसमें समूह के नेता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से यात्रा छूट के विस्तार को हासिल करने में विफल रहे.
13 अफगान तालिबान अधिकारियों को विदेश यात्रा करने की अनुमति देने वाली संयुक्त राष्ट्र की छूट शुक्रवार को समाप्त हो गई थी. एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया, 2011 के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के तहत, 135 तालिबान अधिकारियों की संपत्ति फ्रीज और यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिए थे. कुछ दिनों बाद, इनमें से 13 को यात्रा प्रतिबंध से छूट दे दी गई थी, ताकि वे शांति वार्ता के लिए विदेशों के अन्य देशों के अधिकारियों से मिल सके.