बीजिंग, 5 जुलाई: जापान की सरकार फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के रेडियोएक्टिव कचरे को प्रशांत महासागर में फेंकना चाहती थी. लेकिन लोगों के विरोध की वजह से ऐसा कर नहीं पा रही थी. फिर इस मामले की जांच संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने शुरु की. दो साल तक जांच चलती रही.
अब इस एजेंसी ने जापान की सरकार को रेडियोएक्टिव कचरा फेंकने की अनुमति दे दी है. एजेंसी की जांच में पता चला है कि प्रशांत महासागर में कचरा फेंकने से इंसानों, जीवों या पर्यावरण को मामूली सा नुकसान हो सकता है. लेकिन उससे घबराने की जरुरत नहीं है. विवादित गैस क्षेत्र पर सऊदी अरब ने जताया अधिकार, जानें क्या है पूरा मामला
समुद्र में करोड़ों लीटर जहरीला पानी छोड़े जाने पर चीनी प्रतिनिधि ने 4 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 53वें सत्र में कहा 'जापान द्वारा परमाणु-दूषित पानी को समुद्र में जबरन छोड़े जाने से आर्थिक लागत के आधार पर परमाणु-दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने का चयन करना परमाणु प्रदूषण के जोखिम को संपूर्ण मानव जाति पर स्थानांतरित करने के बराबर है.'
This summer, Japan will begin pumping Fukushima water into the ocean. The plan will see more than a million tons of treated radioactive water released and take decades to complete. So how will it work? Let’s take a look ⬇️ https://t.co/g8AhoGoxMp pic.twitter.com/2IlIv4gkHd
— Reuters (@Reuters) July 5, 2023
इससे वैश्विक समुद्री पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य में बड़ी समस्याओं के साथ विस्थापन की भी व्यापक समस्याएं पैदा होंगी. उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर ध्यान देगा.
चीनी प्रतिनिधि ने जोर देते हुए कहा कि जापान की हरकतें संयुक्त राष्ट्र समुद्र कानून संधि और लंदन डंपिंग कन्वेंशन का उल्लंघन करती हैं. चीन ने एक बार फिर जापान से परमाणु दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने की योजना को रोकने और वैज्ञानिक, सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से इसका निपटान करने का आग्रह किया.