आम जिंदगी में प्लास्टिक के इस्तेमाल से बढ़ रही दिल की बीमारी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

रोजमर्रा की चीजों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक में ऐसे रसायन होते हैं, जिनका संबंध दिल की बीमारी से हो सकता है. भारत में इसकी वजह से होने वाली मौतों का अनुमानित आंकड़ा एक लाख से ज्यादा है.अमेरिका में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि आम जिंदगी में इस्तेमाल में होने वाली प्लास्टिक की चीजों में पाए जाने वाले रसायनों का संबंध हृदय रोग से हो सकता है. इसका सबसे अधिक प्रभाव एशिया, मध्य पूर्व और प्रशांत क्षेत्र में देखा गया. अगर हम प्लास्टिक के इस्तेमाल का तरीका बदलें, तो यह खतरा कम हो सकता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दिल की बीमारी दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण है. इससे हर साल करीब 1.79 करोड़ लोगों की जान जाती है.

अमेरिका की एनवाईयू लैंगोन हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि कुछ सामान्य प्लास्टिक रसायन, 55 से 64 साल की उम्र के वयस्कों में दिल की बीमारी से होनी वाली 10 फीसदी से ज्यादा मौतों से जुड़े हो सकते हैं.

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दिल की बीमारी से होने वाली मौतों में प्लास्टिक की भूमिका

प्लास्टिक को टिकाऊ और लचीला बनाने के लिए फैलेट्स नाम का रसायन इस्तेमाल किया जाता है. फैलेट्स का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, यह जानने के लिए जनसंख्या संबंधी सर्वेक्षणों से लिए गए स्वास्थ्य और पर्यावरणीय आंकड़ों का विश्लेषण किया गया.

विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने बताया कि फैलेट डीईएचपी (डाय-2-एथिलहैक्सिल फैलेट) के संपर्क में आने से साल 2018 में लगभग 3.5 लाख लोगों की मौतें हुई. हालांकि, यह अध्ययन इस बात की पुष्टि नहीं करता कि डीईएचपी सीधे तौर पर दिल की बीमारी का कारण है या नहीं.

अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और अमेरिका के 'एनवाईयू सेंटर फॉर द इन्वेस्टिगेशन ऑफ एनवायर्नमेंटल हैजर्ड्स' के निदेशक, लियोनार्डो ट्रासांडे ने कहा, "हमने डीईएचपी के संपर्क को ट्रैक करने की कोशिश की. इसके लिए हमने दुनियाभर में उपलब्ध आंकड़ों से अनुसार अनुमान लगाया. इस कारण से इस अध्ययन की भी कुछ सीमाएं हैं."

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यूं तो यह रसायन दुनियाभर में पाया जाता है, लेकिन इसका मुख्य प्रभाव कुछ ही क्षेत्रों में देखा गया है. जैसे कि एशिया, मध्य पूर्व और प्रशांत क्षेत्र में डीईएचपी से जुड़ी कुल अनुमानित मौतों का तीन-चौथाई हिस्सा पाया गया.

भारत में इसकी वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा एक लाख से अधिक है, जो विश्व भर में सबसे ज्यादा है. जिसके बाद पाकिस्तान और मिस्र आता है.

ट्रासांडे ने यह भी बताया, "जिस पूर्व अध्ययन पर यह मॉडल आधारित है, उसमें बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स), खानपान, शारीरिक गतिविधि और अन्य सामाजिक व स्वास्थ्य से जुड़े कारकों को भी ध्यान में रखा गया है, ताकि इन कारणों का असर भी साफ देखा जा सके."

फैलेट्स के जोखिम और इसके साथ संपर्क कम करने के उपाय

पिछले अध्ययनों में यह बताया गया है कि फैलेट्स प्रजनन क्षमता और प्रतिरक्षा प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं.

शोधकर्ता लियोनार्डो ट्रासांडे ने बताया, "इस समय हमारे पास जो जानकारी है, उसके अनुसार प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाले कई रसायन इन्फ्लैमेशन का कारण बन सकते हैं. हमारे हार्मोन, शरीर के प्राकृतिक संकेतक मॉलिक्यूल्स को बाधित कर सकते हैं और यह हमारे बुनियादी जैविक कार्यों जैसे मेटाबोलिज्म और हृदय की कार्यप्रणाली को भी जोखिम में डाल सकते हैं."

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उन्होंने आगे कहा, "लेकिन यह अध्ययन और जिस स्टडी पर यह आधारित है, अलग-थलग नहीं हैं. प्रयोगशाला में, जानवरों पर और मनुष्यों पर किए गए बहुत सारे अध्ययन भी यही संकेत देते हैं कि यह रसायन दिल की बीमारियों को बढ़ावा देता है."

अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हम प्लास्टिक उत्पादों से घिरे हुए हैं और इनसे दूरी बनाना असंभव लग सकता है. लेकिन ट्रासांडे का मानना है कि लोग कुछ सावधानियां अपनाकर खुद को सुरक्षित रख सकते हैं. वह सुझाव देते हैं, "हमें प्लास्टिक के रोजमर्रा होने वाले इस्तेमाल पर ध्यान देने की जरूरत है."

खासतौर पर, उन्होंने प्लास्टिक के बर्तनों को माइक्रोवेव या डिशवॉशर में इस्तेमाल ना करने की सलाह दी. इससे प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक रसायन हमारे भोजन में मिल सकते हैं या वो माइक्रोप्लास्टिक में बदल सकते हैं, जो इंसान के शरीर को भारी नुकसान पहुंचाते हैं.

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संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक वैश्विक प्लास्टिक संधि पर बातचीत चल रही है. यूरोपीय संघ में डीईएचपी जैसे फैलेट्स को खिलौनों और कॉस्मेटिक उत्पादों में इस्तेमाल करने पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है. ट्रासांडे ने यह भी बताया कि कई देश मिलकर खतरनाक प्लास्टिक रसायनों को कम करने के साथ-साथ प्लास्टिक प्रदूषण को भी कम करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

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