Hans Christian Gram 166th Birthday: Google ने हान्स क्रिश्चियन ग्रैम (Hans Christian Gram) की 166वीं जयंती पर एक खास डूडल बनाकर उन्हें याद किया है. ग्रैम को स्टेन टेक्निक के इजात के लिए जाना जाता है. इस तकनीक से बैक्टीरिया की प्रजातियों का पता लगाया जाता है. 13 सितंबर 1853 में कोपेनहैगन, डेनमार्क में ग्रैम का जन्म हुआ था. 1884 में बर्लिन के सिटी हॉस्पिटल के मुर्दाघर में जर्मन माइक्रोबायोलॉजिस्ट कार्ल फ्रेडलेंडर के साथ काम करने के दौरान ग्रैम ने स्टेन टेक्निक विकसित की. इस तकनीक का इस्तेमाल आज भी बैक्टेरिया टेस्ट के लिए किया जाता है. शुरू में उन्होंने फेफड़े के टिश्यू के दाग वाले हिस्सों में बैक्टीरिया अधिक दिखाई देने के उद्देश्य से इस तकनीक का आविष्कार किया था.
बैक्टेरिया के दो समूह होते हैं, पहला ग्रैम पॉजिटिव और दूसरा ग्रैम नेगेटिव. ग्रैम पॉजिटिव बैक्टीरिया कई बीमारियों का कारण होते हैं, जबकि ग्रैम नेगेटिव की कुछ प्रजातियां तो बीमारी फैलाती हैं, लेकिन कुछ बैक्टीरिया द्वारा फैलाए गए रोगों से लड़ती हैं. स्टेनिंग तकनीक में बैक्टेरिया के सैम्पल्स पर पर्पल डाई डालकर इसे आयोडीन सॉल्यूशन से धो दिया जाता है. इस प्रक्रिया में ग्रैम पॉजिटिव बैक्टेरिया पर्पल रंग के ही रह जाते है और ग्रैम नेगेटिव रंगविहीन यानी कलरलेस हो जाते हैं.
जो लोग काफी लंबे से समय से बीमार होते हैं या उन्हें बुखार की शिकायत होती है. बहुत इलाज के बाद भी उनका बुखार ठीक नहीं होता तो डॉक्टर्स उनका स्टेन टेस्ट करते हैं. इस टेस्ट में ब्लड टिश्यू, मल और थूक का सैम्पल लिया जाता है और उसका स्टेन टेस्ट किया जाता है. इससे पता चलता है कि आप बैक्टेरिया से प्रभावित हैं या नहीं? अगर हैं तो बैक्टेरिया के कौन से प्रकार से ग्रसित हैं. स्टेन टेस्ट बैक्टेरिया रिपोर्ट के अनुसार ही डॉक्टर मरीज का इलाज करते हैं.
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ग्रैम ने अपनी इजात की गई इस तकनीक के निष्कर्ष के बारे में 1884 में विद्वान पत्रिका (Scholarly Journal) में प्रकाशित किए, जिसके बाद ये तकनीक "ग्रैम-पॉजिटिव" और "ग्रैम-नेगेटिव" नाम से प्रसिद्ध हुई. इस पब्लिकेशन में हान्स क्रिश्चियन ग्रैम ने एक डिसक्लेमर लिखा,' "मैंने इसलिए ये टेक्निक प्रकाशित की है, क्योंकि मुझे पता है कि इसमें काफी डिफेक्ट और इम्पर्फेक्शन है, लेकिन मैं आशा करता हूं कि, फिर भी ये जांच के लिए उपयोगी होगी. हालांकि ये सरल परीक्षण, व्यापक रूप से सक्सेसफुल हुआ और आज लगभग 100 साल बाद भी ग्रैम की स्टेन तकनीक का उपयोग किया जाता है.