नई दिल्ली: पहले लोग सबसे ज्यादा मेहनत को तवज्जो देते थे. लेकिन कहते है ना समय के साथ सब कुछ बदल जाता है. आज इंसानों की दिनचर्या इलेक्ट्रॉनिक सामान से शुरू होकर उस पर ही खत्म होती है. हर कोई अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए योजना बनाकर इलेक्ट्रॉनिक सामानों में इन्वेस्ट करता हैं लेकिन वारंटी खत्म होने के बाद वही सामान कबाड़ बन जाते है. इससे ना केवल दोबारा सामान खरीदने से पैसे की बरबादी होती है बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.
जानकार इसकी असल वजह पिछले कुछ सालों में निर्माता कंपनियों के प्रोडक्ट्स की क्वालिटी में लगातार हो रही गिरावट को बता रहे है. दरअसल कंपनियां अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में प्रोडक्ट्स की क्वालिटी से छेड़छाड़ करती है. जिससे एक निश्चित अवधि के बाद कस्टमर को दोबारा वहीं सामान खरीदना पड़े. इस बात की पुष्टी एक शोध में भी हुई है.
एक रिपोर्ट के अनुसार 2004 से 2012 के दौरान होम अप्लायंसेस की क्वालिटी में तेजी से गिरावट आई. 2004 में इलेक्ट्रॉनिक मशीनें पांच साल तक अच्छे से काम करती थी. इसके बाद भी लगभग 3.5% मशीनें खराब हो जाती थी. वहीं साल 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर 8.3% पर पहुंच गया. अबव तो ये हाल है कि इलेक्ट्रॉनिक मशीनें पांच साल भी ठीक से नहीं चल पा रही हैं.
कंपनियों की इसी मनमानी का जवाब देने के लिए हाल ही में यूरोपीय देशों और अमेरिका में 'राइट टू रिपेयर' मुहिम शुरू हुई है. इसमें यूरोप के साथ 18 अमेरिकी राज्य शामिल है. इस मुहीम के जरिए मांग की जा रही है कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां ऐसी चीजें बनाएं जो ज्यादा टिकाऊ हों और बार-बार खरीदनी नहीं पड़े. साथ ही वारंटी खत्म होने के बाद कंपनी सर्विसिंग के अलावा लोकल मैकेनिकों को भी किसी खास सर्विस की ट्रेनिंग देने की मांग की जा रही है. हालांकि राइट टू रिपेयर का रास्ता आसान नहीं दिख रहा. क्योकि कंपनियां इसका जोर-शोर से विरोध कर रही हैं.
यूरोपीय पर्यावरण ब्यूरो (ईईबी) के अनुसार कई ऐसे प्रोडक्ट हैं, जिनकी मरम्मत बाहरी मैकेनिकों के लिए नामुमकिन होती है क्योंकि उसके अधिकार कंपनी अपने ही प्रशिक्षित कामगारों के लिए रखती है. इससे सामान खराब होने पर ग्राहक की मजबूरी होती है कि वो कंपनी के पास ही जाए चाहे उसे कितनी ही ज्यादा कीमत देनी पड़े.