Dussehra 2019: बारिश की मार से रावण भी परेशान, दहन से पहले पहनाया गया रेनकोट
रावण का पुतला ( फोटो क्रेडिट- flickr )

देशभर में इस साल मानसूनी बारिश देश के कई हिस्सों में जमकर कहर बरपाया है. कहीं मकान डूबे तो कहीं लोग बाढ़ में बह गए. आलम ऐसा है कि कई इलाकों में अब भी बारिश का सिलसिला अब भी जारी है. बारिश का असर अब त्योहारों पर पड़ता नजर आ रहा है. इस बार के रावण (Ravan Statue) दहन पर नजर आ रहा है यही कारण हैं कि आयोजकों के मन में डर सता रहा है कि अगर रावण के पुतले को खड़ा करने के बाद तेज बारिश हो गई तो पूरा मजा किरकिरा हो जाएगा. अब इससे बचने का कारीगर और आयोजक रावण को रेनकोट से ढककर खड़े कर रहे हैं. ताकि अगर बारिश हो तो पुतला खराब न हो. दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार कार्तिक मेला ग्राउंड का रावण शेरवानी की शक्ल में रैन कोट पहन कर आएगा. कपड़ों को ऐसे मटेरियल से तैयार किया है कि उसपर पानी का कोई असर नहीं होगा और आग आसानी से जल सके.

वहीं नई दुनिया की खबर के मुताबिक इंदौर के चिमनबाग और रामबाग में वाटर प्रूफ रावण का पुतला बनाया गया है. वहीं कई जगहों पर तो प्लास्टिक से पुतले को ढका गया है. अकेले इंदौर में विजयदशमी के दिन दर्जनभर से ज्यादा रावण के पुतलों को जलाया जाएगा. वहीं उज्जैन में भी इसी तर्ज पर रावण का पुतला बनाया गया है जो कि रेनकोट में होने. राजधानी दिल्ली में एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के कम से कम इस्तेमाल के प्रति जागरुक करने के लिए दूध और दुग्ध उत्पादों की विनिर्माता कंपनी मदर डेयरी ने दिल्ली और पड़ोस के शहरों से जमा की गई बेकार प्लास्टिक से रावण का एक 25 फुट ऊंचा पुतला तैयार किया है.

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बता दें कि विजयदशमी (Vijayadashami) यानि दशहरे (Dussehra) के दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण दहन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन रावण के पुतले को जलाने से समाज से बुराइयों का भी सफाया हो जाता है. दिल्ली के रामलीला मैदान में लव कुश रामलीला कमेटी द्वारा रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिरकत करते हैं.

प्राचीन मान्यता

मान्यता है कि लंका में रावण के साथ लगातार नौ दिनों तक युद्ध करने के बाद 10वें दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण को मार गिराया था और माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था. उधर, मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया था और इसी दिन उन्होंने उसका संहार किया था, इसलिए इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है.