हिंदुस्तान का सर्वशक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर स्वयं शिक्षित नहीं होने के बावजूद अपने दरबार में बुद्धिजीवियों, विचारकों, धर्म गुरुओं चित्रकारों और संगीतज्ञों का विशेष आदर-सम्मान करता था. उनके दरबार में उनके पसंदीदा ‘नवरत्न’ अबुल फजलस, फैजी, तानसेन, बीरबल, टोडरमल, मानसिहं, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, फकीर अजीउद्दीन और मुल्ला दो प्याजा इसके सजीव प्रमाण कहे जा सकते हैं. इन नवरत्नों में अकबर के सबसे प्रिय थे बीरबल. कहा जाता है कि बीरबल अकबर की बड़ी से बड़ी मुसीबत का निवारण चुटकी बजाते कर देते थे.
बीरबल महान कवि के साथ दार्शनिक और हाजिर जवाब में माहिर थे. यही वजह थी कि अकबर जहां भी जाते, अपने साथ बीरबल को साथ ले जाना नहीं भूलते थे. अकबर उन्हें अपनी आन-बान-शान का प्रतीक भी मानते थे.
जन्म:
कुछ इतिहासकारों के अनुसार बीरबल का जन्म सन 1528 ई में कानपुर स्थित कालपी के पास टिकवनपुर गांव में एक भट्ट-ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उस समय उनका नाम महेश दास था. पिता गंगा दास विद्वान ब्राह्मण थे और माँ अनाभा दावितो गृहिणी थीं। महेश माता-पिता की तीसरी संतान थे. महेश दास (बीरबल) के जन्म स्थल को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं, लेकिन तिकवनपुर में ही जन्म लेने वाले वीररस के महान कवि भूषण ने भी अपनी रचनाओं में लिखा है कि वे बहुत भाग्यशाली हैं कि वह बीरबल की जन्मभूमि में पैदा हुए. कहा जाता है कि बीरबल की सिर्फ एक बेटी थी कमला, जिसने शादी नहीं की थी.
महेश दास ने काफी कम उम्र में संस्कृत, फारसी और हिंदी सीख ली थी. सूत्रों के अनुसार बीरबल की साहित्यिक प्रतिभा से प्रभावित होकर रीवां के राजा रामचंद्र ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया था. कहते हैं कि यहीं पर उनका विवाह एक धनी महिला से हुआ था, यद्यपि कुछ इतिहासकार इस विषय पर एकमत नहीं हैं. कुछ के अनुसार महेश दास बहुत धनी नहीं थे, उन्हें जो भी नाम-दाम मिला, अकबर के दरबार से ही मिला था. महेश दास उर्फ बीरबल अकबर के नवरत्नों में सर्वाधिक लोकप्रिय ब्राह्मण दरबारी थे. उनकी व्यंग्यपूर्ण कहानियों और काव्य रचनाओं ने उन्हें लोकप्रिय बनाया था। बीरबल अपने तेज दिमाग ही नहीं बल्कि साहित्य में अपने योगदान के लिए भी जाने जाते है. उन्होंने बृजभाषा में 'बृह्म' उपनाम से कई कवितायेँ लिखी है जो आज भी साहित्य की अनुपम धरोहर है.
इस तरह महेश दास बने ‘बीरबल’:
मुगल बादशाह अकबर महेश दास की वॉकचातुर्य और बुद्धिमता से बहुत प्रभावित थे. उनकी प्रतिभा को निरंतर देखने-परखने के बाद ही अकबर ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल किया था. कालांतर में अकबर ने महेश दास को पहले ‘राजा’ फिर ‘कविराय’ और बाद में बिरवर की उपाधि देकर सम्मानित किया. आगे चलकर यही बिरवर बीरबल में परिवर्तित हो गया. इतिहासकार बताते हैं कि महेश दास उतना प्रभावशाली सेनापति नहीं थे जितने प्रभावशाली कवि और हाजिर जवाब थे.
दर्दनाक मृत्यु:
बीरबल की मृत्यु की तारीख को लेकर भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर उनकी मृत्यु की तिथि 25 फरवरी 1686 अंकित है. दुनिया के महाशक्तिशाली बादशाह के सबसे चहेते राज दरबारी बीरबल का अंत इतना दर्दनाक होगा इसकी कल्पना स्वयं अकबर ने नहीं की थी. कहा जाता है कि सन 1586 में अफगानिस्तान के युसुफजई कबीले ने मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह कर दिया. अकबर ने इस विद्रोह को दबाने के लिए जैन खान कोका के नेतृत्व में एक सैन्य दल भेजा. लेकिन इस सैन्यदल को जब नाकामी हाथ लगी तो अकबर ने करीब 8 हजार सैनिक बलों को बीरबल के नेतृत्व में भेजा. कहा जाता है कि एक भीतरघात षड़यंत्र के कारण बीरबल और उनके 8000 सैनिक स्वात वैली में बुरी तरह फंस गए. यहां पर दुश्मन सेना ने घात लगाकर उन पर अचानक हमला कर दिया. बीरबल और उनके सैनिकों को जान बचाने तक का मौका नहीं मिला. दुश्मन सैनिक आसमान से पत्थर और गोले बरसा रहे थे. बीरबल और उनकी पूरी टुकड़ी इस हमले में दबकर मर गई. काफी कोशिशों के बाद भी हजारों मृत सैनिकों के बीच बीरबल का शव नहीं मिला, तब अकबर ने उन सभी हजारों सैनिकों का अंतिम संस्कार करवा दिया ताकि उन्हीं के बीच बीरबल का भी अंतिम संस्कार हो जाये. बीरबल की मृत्यु से अकबर इतने दुखी थे कि वह दो दिन कुछ खा-पी नहीं सके थे.