शौचालय महज एक निर्माण नहीं, बल्कि स्वच्छता, स्वास्थ्य, गरिमा और समानता का प्रतीक है. हर वर्ष 19 नवम्बर को मनाया जाने वाला विश्व शौचालय दिवस हमें स्मरण कराता है कि स्वच्छता मानव अधिकार का अभिन्न हिस्सा है. भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में लंबे समय तक खुले में शौच की समस्या न केवल स्वास्थ्य, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और पर्यावरण के लिए भी चुनौती बनी हुई थी. इसी चुनौती से निपटने के लिए साल 2014 में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य था हर घर शौचालय, खुले में शौच से मुक्ति और स्वच्छ व्यवहार की संस्कृति का निर्माण.’ विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर आइये जानते हैं ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की क्रांतिकारी योजना के महत्वपूर्ण पहलुओं एवं इसकी सार्थकता के बारे में
स्वच्छता से स्वास्थ्य तक
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, अस्वच्छ जल और खुले में शौच से हर वर्ष दुनिया भर में लगभग 4.3 लाख लोग असमय मृत्यु के शिकार होते हैं. भारत में भी पहले हर वर्ष लाखों लोग डायरिया, टाइफाइड और कालरा जैसी बीमारियों से ग्रस्त होते थे.
स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण से इस स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार साल 2014 से 2024 के बीच ग्रामीण भारत में 11 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया. इन्हीं वजहों से साल 2019 तक देश को ‘खुले में शौच से मुक्त (ODF)’ घोषित किया गया. इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि कहा जा सकता है. यह भी पढ़ें : Utpanna Ekadashi 2025: उत्पन्ना एकादशी व्रत कब रखा जाएगा? जानें इस दिन क्या करें और क्या करने से बचें!
क्या है स्वच्छ भारत मिशन?
साल 2014, 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) को शुरू हुआ ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भारत सरकार का क्रांतिकारी राष्ट्रीय अभियान है. इसके लिए निम्न बिंदुओं को समझना होगा.
खुले में शौच मुक्त भारत: खुले में शौच-प्रथा को समाप्त करना और सभी के लिए पर्याप्त स्वच्छता तक पहुंच सुनिश्चित करना.
‘हाथ से सफाई’ प्रथा खत्म करना: इस मिशन का सबसे प्रशंसापूर्ण कदम ‘हाथ से सफाई’ प्रथा को समाप्त करना था, और उसमें अच्छी सफलता मिली.
नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: शहरों और गांवों में कचरे को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करना.
व्यवहार में बदलाव: लोगों को स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, स्वास्थ्य प्रथाओं को अपनाना.
जागरूकता: स्वच्छता और जन स्वास्थ्य के महत्व के प्रति जन-जागरण करना.
महिला गरिमा और सामाजिक परिवर्तन
शौचालय निर्माण ने महिलाओं के जीवन में वास्तविक परिवर्तन लाया है. पहले ग्रामीण इलाकों में महिलाएं सूर्योदय से पूर्व या रात में खुले में शौच में जाने को विवश होती थीं, जिससे आये दिन महिलाएं असुरक्षा और सेहत संबंधी समस्याओं से परेशान रहती थीं, लेकिन अब सुरक्षित शौचालयों से उन्हें गरिमा, निजता और आत्मविश्वास मिला है. कई राज्यों में महिलाओं ने स्वयं “स्वच्छता दूत” बनकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया है.












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