सुहागन के लिए क्या मायने रखता है दो चुटकी सिंदूर? जाने इस संदर्भ में क्या कहता है अध्यात्म एवं विज्ञान? एवं कैसे भरे मांग में सिंदूर?

विवाह में सात फेरों के साथ ही पति अपने हाथ से पत्नी की मांग में सिंदूर भरकर उसे सुहागन का दर्जा देता है. मांग भरने के साथ ही लड़की का संपूर्ण व्यक्तित्व बदल जाता है, उसकी सुंदरता तो द्विगुणित होती ही है, साथ ही वह पलक झपकते एक मैच्योर यानी संपूर्ण महिला का तेजस्वी स्वरूप अख्तियार कर लेती हैं. जानें क्या है सिंदूर का महात्म्य.

सिंदूर का महत्व!

पौराणिक कथाओं में सिंदूर के महात्म्य के तमाम वर्णन मिलते हैं. शिव पुराण से लेकर भागवत पुराण तक में माँ पार्वती एवं मां सीता द्वारा सिंदूर से मांग भरने का वर्णन है. कहते हैं कि पार्वती जी अपने पति शिवजी को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए सिंदूर लगाती थीं, तो सीताजी पति श्रीराम की लंबी उम्र की कामना के लिए मांग में रोजाना सिंदूर भरती थीं. महाभारत में भी एक घटनाक्रम में द्रौपदी नफरत और निराशा से अपने माथे का सिंदूर पोंछकर पांडवों को उपेक्षित नजरों से देखती हैं. कहा तो यहां तक जाता है कि सुहागन की मांग में भरे सिंदूर में माँ लक्ष्मी वास करती हैं.

वैज्ञानिक कारण!

सिर के बीचो-बीच मांग में सिंदूर लगाने की मुख्य वजह यह है कि शरीर का यह बिंदु बहुत संवेदनशील होता है. सिंदूर लगाने से मस्तिष्क हमेशा सजग एवं सक्रिय रहता है. वास्तव में सिंदूर में मरकरी होता है. यह अकेली ऐसी धातु है जो द्रव रूप में पाई जाती है. इससे शीतलता प्राप्त होती है. सिंदूर लगाने से सिर-दर्द, अनिद्रा और अन्य मस्तिष्क से जुड़े तमाम रोग दूर होते हैं. दिमाग तनाव मुक्त रहता है. शादी के बाद सिंदूर लगाया जाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि ये रक्त संचार के साथ ही यौन क्षमताओं को भी बढ़ाने का काम करता है.

सिंदूर कैसे लगाएं?

* सिंदूर सुहाग की शान होता है. सिंदूर को बालों से छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मान्यता है कि जितना गहरा सिंदूर लगाते हैं, सुहागन का सुहाग उतना ही स्वस्थ एवं शानदार व्यक्ति वाला होता है.

* आज की फैशनपरस्त महिलाएं कभी बाईं तो कभी दाईं ओर मांग निकालती हैं. आप मांग कहीं भी निकालें, लेकिन सिंदूर बीच की मांग में लगाने का विधान है. बाईं या दाईं मांग में सिंदूर लगाना पति-पत्नी के संबंधों में अस्थिरता पैदा करता है.

* सुहागन महिलाओं को मांग में दो बार सिंदूर लगाना चाहिए.

* तीज एवं करवा चौथ जैसे सुहागिनों के व्रत-पूजा में पूरी मांग में सिंदूर लगाना चाहिए. क्योंकि ये व्रत एवं पूजन अखण्ड सौभाग्य का होता है.

सिंदूर का आध्यात्मिक महत्व

श्रीराम चरितमानस के एक प्रसंग के अनुसार श्रीराम ने सुग्रीव को वचन दिया था कि वे बालि का संहार कर उनका राजतिलक करेंगे. लेकिन श्री राम बालि को मार नहीं सके. बताया गया कि वे बालि को पहचान नहीं सके थे, लेकिन सच्चाई यह थी कि श्रीराम ने जब बालि पर निशाना साधा, उनकी नजर मांग में सिंदूर भरे बालि की पत्नी पर पड़ी. श्रीराम ने सिंदूर के महात्म्य को मानते हुए बालि का संहार नहीं किया. लेकिन अगले दिन उन्होंने एक ही बाण में बालि संहार कर दिया, क्योंकि उस समय बालि की पत्नी वहां नहीं थीं.

माता पार्वती का सिंदूर से संबंध

हिंदू पौराणिक मान्यताओं में लाल रंग से सती और पार्वती की शक्ति व्यक्त किया गया है. सती को हिंदू समाज में एक आदर्श पत्नी के रूप में माना गया हैं. मान्यता है कि सिंदूर लगाने से देवी पार्वती महिलाओं को अखंड सौभाग्यशाली का आशीर्वाद देती हैं. हर विवाहित महिलाएं पति की चिरायु के लिए शिवजी एवं माता पार्वती को सिंदूर अर्पित करती हैं. माँ पार्वती का ही एक स्वरूप दुर्गा पूजा के बाद विसर्जन से पूर्व सिंदूर खेला में नजर आता है. सुहागन स्त्रियां पान के पत्तों पर सिंदूर रखकर मां दुर्गा के गाल स्पर्श करती हैं, फिर वही सिंदूर अपनी मांग में भरती हैं.