स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण व्यक्तित्व एवं जीवन एक प्रकाश पुंज के समान था, जिसने आध्यात्मिक एवं मानव सेवा का मार्ग प्रशस्त किया. उनकी शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगी. उनका सद्भाव, शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की दुनिया को बढ़ावा देंगी. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1869 को हुआ था. विवेकानंद जी के विभिन्न क्षेत्रों में किये गये योगदान को देखते हुए उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया, लेकिन स्वामी जी के अनुयायी इस वर्ष 2 फरवरी को उनकी जयंती मनाएंगे. आइये जानते हैं स्वामी जी की जयंती साल में दो बार क्यों मनाई जाती है, साथ ही जानते हैं स्वामी जी के जीवन के कुछ अविस्मरणीय पलों के बारे में...
इसलिए साल में दो बार मनाई जाती है विवेकानंद जयंती!
हिंदू चंद्र कैलेंडर तिथि के अनुसार स्वामी विवेकानंद का जन्म पौष कृष्ण पक्ष की सप्तमी को पड़ता है, जो हिंदू माह पौष की पूर्णिमा के बाद का सातवां दिन होता है, इसलिए यह तारीख साल-दर-साल बदलती रहती है. स्वामीजी के अनुयायी आज भी इसी तिथि के अनुरूप स्वामी जी की जयंती मनाते हैं. इसलिए इस तिथि के अनुसार इस वर्ष 2 फरवरी 2024 को स्वामी जी की जयंती मनाई जाएगी.
नरेंद्र नाथ से विवेकानंद नाम कैसे पड़ा स्वामीजी का
स्वामी जी का मूल नाम नरेंद्र नाथ था, लेकिन सारी दुनिया उन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से जानती है. वस्तुतः राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें विवेकानंद का नाम दिया था, इसके बाद से ही नरेंद्र नाथ स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने जाते हैं. शिकागो के धर्म सम्मेलन स्वामी जी ने राजा अजीत सिंह द्वारा भेंट की गई साफा, चोगा और कमरबंद पहनकर रवाना हुए थे.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस से कब और कैसे मिले विवेकानंद?
साल 1881 में कलकत्ता (अब कोलकाता) स्थित दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में पहली बार विवेकानंद स्वामी रामकृष्ण परमहंस से मिले थे. रामकृष्ण परमहंस के बारे में विख्यात था कि उन्होंने साक्षात ईश्वर का दर्शन किया है, और वह उनसे बात भी करते हैं, लिहाजा जब पहली बार विवेकानंद जी ने अपने समक्ष स्वामी परमहंस को देखा तो पहला सवाल उन्होंने यही किया था कि क्या आपने ईश्वर का साक्षात दर्शन किया है? स्वामी जी ने जवाब दिया था, हां मैं ईश्वर को उसी रूप में देखता हूं, जैसे तुम्हें देख रहा हूं. अंतर केवल इतना है कि मैं ईश्वर को तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं.
कम उम्र में ही संन्यास लेना
स्वामी विवेकानंद स्वामी रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरू मानते थे, उनके सानिध्य में आने के बाद उन्हीं से प्रेरित होकर विवेकानंद ने 25 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया था.
महासमाधि!
स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी, जिसकी वजह से उन्होंने 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को उन्होंने अपना भौतिक शरीर त्यागकर महासमाधि ले ली.