Vijaya Dashami 2022: इन गांवों में होती है रावण के साथ महिषासुर की भी पूजा-अर्चना! स्थानीय आदिवासी समाज इन्हें मानता है अपना पूर्वज!
विजयादशमी 2022 (Photo Credits: File Image)

आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को पूरे भारत में जहां विजयादशमी के उपलक्ष्य में रावण का वध होता है, वहीं इसी भारत के बहुतेरे गांव में रावण को ईश्वर तुल्य मानकर पूजा-अर्चना के साथ तमाम तरह के रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है. ये स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं. यह भी पढ़ें: क्यों मनाते हैं दशहरा? जानें दशहरा की पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त एवं मंत्र!

  छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) स्थित एक कस्बा है बिछुवा. स्थानीय लोगों के अनुसार यहां के जामुनी टोला समेत लगभग 50 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जहां आज भी विजयादशमी के दिन रावण के साथ महिषासुर की पूजा होती है. स्थानीय नागरिक उन्हें अपना भगवान मानते हैं. उनके मतानुसार वे रावण के वंशज हैं, इसलिए स्थानीय लोग रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण का दहन प्रक्रिया का सख्त विरोध करते हैं. दशहरा के दिन इन गांवों में रावण-परिवार एवं महिषासुर से संबंधित तमाम विषयों पर रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यह आयोजन दर्शाता है कि कालांतर में रावण का अस्तित्व था, इसलिए श्री राम और रावण काल को इतिहास का हिस्सा मानने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए.

रावण-दहन बर्दाश्त नहीं!

बिछुवा का आदिवासी समाज रावण को अपना पूर्वज मानता है. विजयादशमी के दिन जब सारे भारत में रावण, मेघनाद एवं कुंभकर्ण के पुतले जलाये जाते हैं, तब इन गांवों में स्थानीय आदिवासी समाज रावण, कुंभकर्ण एवं मेघनाद आदि को अपना भगवान मानकर पूजा करते हैं. यह पूजा वे अपनी रीति-रिवाज के अनुसार करते हैं. पूजा के दरम्यान रावण एवं उसके परिवार के लोगों के नाम के जयकारे लगते हैं. इस गांव में रावण का एक मंदिर भी है, जहां स्थानीय आदिवासी नियमित पूजा-अर्चना करते हैं. इन्हें आज भी इस बात का विरोध है कि देश में रावण एवं उनके परिवार के पुतले क्यों जलाए जाते हैं.

ऐसे होती है रावण एवं महिषासुर की पूजा!

  यहां दशहरा के दूसरे दिन यानी एकादशी के दिन रावण एवं महिषासुर की पूजा की जाती है. इसकी तैयारी दस दिन पूर्व से शुरू हो जाती है. एकादशी के दिन प्रातःकाल 07 से 11 बजे तक आसपास के कुछ गांवों में कलश के साथ प्रभात फेरी होती है, इसे गोंगो पूजा कहते हैं. दोपहर 12 बजे से राजा रावण मंडावी एवं महिषासुर गोंगो (स्थानीय रावण और महिषासुर को इसी नाम से पुकारते हैं) की विधिवत तरीके से पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा के पश्चात रावण एवं महिषासुर से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिसे देखने आसपास के गांव के अलावा स्थानीय ब्लॉक प्रमुख के सदस्य भी एकत्र होते हैं. उनका मानना है कि रावण प्रकांड पंडित और शूरवीर योद्धा था और महिषासुर महान बलशाली एवं अजेय योद्धा था. उन्हें धोखे से मारा गया था.