Veer Savarkar 54th Death Anniversary: भारतीय जनता पार्टी के सत्तासीन होने के साथ ही वीर सावरकर के इतिहास के पन्ने पलटे जाने लगे हैं, भाजपा जहां उनकी देशभक्ति की भावना से प्रभावित हो भारत-रत्न देने की बात कर रही है, वहीं वामपंथी और कांग्रेस उनकी देशभक्ति पर ही उंगली उठा रही है. लेकिन तमाम आरोप-प्रत्यारोपों के बावजूद कई तथ्य सावरकर को वीर सावरकर के रूप में चरितार्थ करती है. मसलन वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केंद्र लंदन में उन्हीं के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया, वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 1905 के ‘बंग बंग’ के बाद 1906 में ‘स्वदेश’ का नारा देते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाई, वे पहले भारतीय थे जिनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण बैरिस्टर की डिग्री छीनी गयी, वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की मांग की, वे पहले भारतीय थे जिन्होंने सन 1857 की लड़ाई को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम साबित करते हुए 1907 में एक हजार पृष्ठों की पुस्तक लिखी, जिसे प्रकाशित होने से पूर्व ही अंग्रेज सरकार ने बैन कर दिया, और वे पहले भारतीय थे जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया. आज देश पेशे से वकील, क्रांतिकारी, एक चिंतक, लेखक, कवि और कुशल वक्ता वीर सावरकर की 54वीं पुण्य-तिथि मना रहा है.
जन्म और शिक्षा
विनायक सावरकर का जन्म नासिक (महाराष्ट्र) के भगूर में 28 मई 1883 में हुआ था. पिता नाम दामोदर पंत सावरकर और माँ का राधाबाई थीं. सावरकर अल्पायु थे, जब उनके पिता और मां की मृत्यु हो गई. उनकी परवरिश उनके बड़े भाई गणेश (बाबराव) ने की. शिवाजी हाईस्कूल नासिक से उन्होंने 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ. 1902 में मैट्रिक पास करने के बाद पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया. कॉलेज जीवन में ही सावरकर ने ‘मित्र मेला’ नामक संगठन की स्थापना की. प्रत्यक्ष रूप से इस संस्था के जरिये सावरकर नासिक में फैली महावारी रोग से ग्रस्त लोगों की सेवा सुश्रुषा करते थे, लेकिन संस्था का मुख्य उद्देश्य पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना था. कॉलेज जीवन में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी भाषण देकर लोगों को एकजुट करते थे. इस वजह से उन्हें फर्ग्युसन कॉलेज पुणे से निष्कासित कर दिया गया और उनकी डिग्री भी छीन ली गयी. यह भी पढ़े-Vinayak Damodar Savarkar Jayanti 2019: हिंदू धर्म के कट्टर समर्थक होने के बावजूद वीर सावरकर ने गौ पूजन को बताया था अंधविश्वास, जानें उनसे जुड़ी 10 रोचक बातें
‘द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस:1857’ जिसने अंग्रेजों में खौफ पैदा कर दी
जून 1906 में सावरकर वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए. 10 मई 1907 में सावरकर ने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई. इस अवसर पर उऩ्होंने अपने भाषण में प्रमाणों सहित 1857 के संग्राम को गदर नहीं, अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम प्रमाणित किया. इसी सच्चाई को जनता तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जून, 1908 में एक पुस्तक ‘द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस:1857’ लिखी, किंतु अंग्रेज सरकार ने छपने से पहले ही इसे बैन कर दिया. तमाम प्रयासों के बावजूद जब लंदन, पेरिस और जर्मनी से इसका प्रकाशन नहीं हुआ तो गुप्त रूप से इसे हॉलैंड से प्रकाशित करवाया गया. इसके बाद चोरी-छिपे इसकी प्रतियां फ्रांस पहुंचायी गयीं. इस पुस्तक को सावरकर ने ‘पीक वीक पेपर्स’ व ‘स्काउट्स पेपर्स’ के नाम से भारत पहुचाई. इसके बाद इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
शौचालय से सागर में छलांग लगाई
सावरकर को उनके मुकदमे की जाँच के लिए 13 मार्च 1910 को लंदन से भारत भेजा जा रहा था. जहाज फ्रांस के मार्सिलेस पहुंचा था कि सावरकर शौचालय के कमबोट से सागर में कूदकर भाग निकले, यद्यपि फ्रांसीसी पुलिस ने तट तक पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 24 दिसंबर 1910 को उन्हें अंडमान में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इस जेल में सावरकर ने पुस्तकालय की स्थापना करवाई तथा जेल में अशिक्षित अपराधियों को प्रशिक्षित करने की भी कोशिश की.
सेलुलर जेल में अमानवीय यातना
नासिक के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए षड़यंत्र रचने का आरोप लगाकर सावरकर को 7 अप्रैल 1911 को काला पानी की सजा सुनाकर पोर्ट ब्लेयर स्थित सेलुलर जेल भेजा गया. सेलुलर जेल किसी भी कैदी के लिए नर्क का द्वार माना जाता था, जहां क्रांतिकारियों को नारियल से तेल निकालना पड़ता था. अंग्रेज अफसरों की बग्घियां खींचने के लिए उन्हें घोड़े की तरह इस्तेमाल किया जाता था. जेल के बाहर के जंगलों की सफाई एवं दलदल एवं पथरीली भूमि को समतल बनाना पड़ता था. रुकने अथवा विरोध करने पर कोड़ों से पिटाई की जाती थी. उन्हें भरपेट खाना नहीं दिया जाता था. सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में रहे.
महात्मा गाँधी की हत्या में गिरफ्तार और निर्दोष सिद्ध
साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हत्यारे का सहयोगी होने का आरोप लगा था. लेकिन यह आरोप साबित नहीं होने के कारण उन्हें अदालत से रिहा कर दिया गया. अंततः 26 फरवरी 1966 में वीर सावरकर ने इच्छा-मृत्यु स्वीकार करते हुए मृत्यु का वरण किया. यह सच है कि कांग्रेस के अधिसंख्य नेता और वामपंथी विचारधारा वाले सावरकर को एक आंख पसंद नहीं करते थे, लेकिन वहीं एक सच यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बंधुओं का पुराना परिचय था. सावरकर को वीर मानने वालों में महात्मा गांधी भी थे और इंदिरा गांधी भी.