Swatantrya Veer Savarkar Review: बॉलीवुड की गलियों में बीते कुछ दिनों से रणदीप हुड्डा की फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' की चर्चाएं जोरों पर थी. इस फिल्म के लिए रणदीप तगड़े बॉडी ट्रांसफॉर्मेंशन से भी गुजरे थे, जिसकी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई. अब फिल्म दर्शकों के लिए सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. यह फिल्म विनायक दामोदर सावरकर की बायोपिक है, जो हिन्दुस्तान को आजादी दिलाने में अहम योगदान देते हैं और उनका परिवार इसमें उनका पूरा साथ देता है. फिल्म को खुद रणदीप हुड्डा ने डायरेक्ट किया है और वीर सावरकर का लीड रोल निभाया है. उन्होंने एक्टिंग में तो जान डाल दी है पर फिल्म की कहानी दर्शकों को कन्फ्यूज करने वाली है. साथ ही डायरेक्शन काफी कमजोर है, जो दर्शकों को बोर करेगा. Swatantrya Veer Savarkar: रणदीप हुड्डा का बॉडी ट्रासफॉर्नेशन उड़ा देगा आपके होश, दुबले पतले लुक में एक्टर ने शेयर की सेल्फी (View Pic)
कहानी
फिल्म की कहानी विनायक दामोदर सावरकर (रणदीप हुड्डा) से शुरु होती है जोकि बचपन में ही मां को खो चुके हैं और बहुत जल्द ही उनके पिता भी महामारी के चलते उन्हें अलविदा कह जाते हैं. पर जाते-जाते वह कहते हैं कि बेटा अंग्रेज बहुत बड़े हैं, और क्रांति में अब कुछ नहीं बचा है, तुम ये सब छोड़ दो. लेकिन विनायक ने तो ठान लिया था कि वो क्रांतिकारी ही बनेंगे. उन्होंने फर्ग्युसन कॉलेज में ही ब्रिटिश अफसरों की नजर से बचकर अभिनव भारत सोसाइटी की शुरुआत की. उनके हर कदम पर बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर (अमित सियाल) ने उनका साथ दिया. वे लंदन लॉ की पढ़ाई करने जा सकें इसके लिए ऐसा ससुराल ढूंढा गया जो उनके विदेश जाने के लिए पैसों की मदद कर सके. विनायक की शादी यमुनाबाई (अंकिता लोखंडे) से हो जाती है. इसके बाद वे विदेश जाते हैं, वहां वे ऐसा कुछ करते हैं कि उन्हें भारत की जेल में भेज दिया जाता है फिर काला पानी की सजा. यहां कहानी एक अहम मोड़ लेती है जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
डायरेक्शन
'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के साथ रणदीप हुड्डा ने डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखा है. साथ ही उन्होंने फिल्म को लिखा और प्रोड्यूस भी किया है. जब हम कोई फिल्म या बायोपिक देखते हैं तो उम्मीद रखते हैं कि फिल्म में जो दिखाया जा रहा है वह इस ढंग से दिखाया जाए कि समझ में आए. और वह समझ में तभी आता है जब लेखिनी सुंदर और डायरेक्शन सही से हुआ हो, नहीं तो हम उलझ जाते हैं कि यह क्या है? क्यों दिखाया जा रहा है? तो मैं आपको बता दूं यह फिल्म आपको कई जगह पर उलझाने वाली है. जैसे सावरकर के पिता का निधन, गणेशोत्सव का दृश्य इस तरह से दिखाए गए कि कुछ समझ में ही नहीं आया. कहीं पर जिक्र नहीं आता कि उनके पिता का निधन किस बीमारी के चलते हुआ, एक साथ अंग्रेज लोगों को क्यों जला रहे हैं? साथ ही सार्वजनिक गणेशोत्सव का शुभारंभ बाल गंगाधर तिलक ने किया था, यह एक अहम विषय था इस जिस तरह से फिल्म में दिखाया गया आप समझ भी नहीं पाएंगे. इस तरह के और भी दृश्य हैं फिल्म में जो आपको कन्फ्यूज करते हैं.
फिल्म में सिर्फ और सिर्फ विनायक दामोदर सावरक को सुपरहीरो की तरह दिखाया गया है. फिल्म में उनकी एक भी बुरी आदत को नहीं दिखाया गया और जगह-जगह पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जैसे तमाम लोगों का मजाक उड़ाया गया है. फिल्म एक नरेटिव तैयार करने की कोशिश करती है कि सिर्फ विनायक सावरक ही देश की आजादी के लिए लड़े,और अगर कोई और लड़ा तो वह सावरकर से प्रेरित होकर लड़ा. पर यह सत्य नहीं है. हमने इतिहास की किताबों में कई वीर पुरुषों को पढ़ा है, जिन्होंने हस्ते-हस्ते भारत माता की गोद में अपने प्राण न्योछावर किए हैं. हर सिक्के के दो पहलू होते हैं पर इस फिल्म में सिर्फ एक ही पहलू को दिखाया और बताया गया है.
एक्टिंग
रणदीप हुड्डा ने वीर सावरक के किरदार में जान फूंक दी है. उनका हाव-भाव, बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन सबकुछ फिल्म में उनकी बढ़ती उम्र के साथ बदलता चला जाता है. उन्हें देखकर ऐहसास होने लग जाता है कि वीर सावरक ऐसे ही असल में रहे होंगे. रणदीप हुड्डा की एक्टिंग की वजह से यह फिल्म देखने लायक बन जाती है. इसके साथ ही विनायक सावरकर के बड़े भाई के किरदार में नजर आए अमित सियाल भी अपने किरदार में परफैक्ट रमे हैं. अंकिता लोखंडे को स्क्रीन स्पेस कम मिला है, बावजूद इसके वे अपने किरादर में शानदार दिखीं. इसके अलावा बाकी एक्टर्स ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. Yodha Review: 'योद्धा' एक रोमांचक हाईजैक और दमदार एक्शन का तूफान,फिल्म देखने से पहले पढ़ें रिव्यू!
निष्कर्ष
फिल्म में अगर दोनों पहलुओं को ईमानदारी के साथ सामने रखा जाता तो यह फिल्म बहुत ही खास बन सकती थी, पर एक तरफा नाव की वजह से दर्शकों का बैलेंस बिगड़ सकता है. बावजूद इसके रणदीप हुड्डा की दमदार अदाकारी के लिए इस फिल्म को आप एक बार जरूर देख सकते हैं. पर फिल्म से बहुत ज्यादा उम्मीदें जोड़कर थिएटर में मत जाना नहीं तो निराशा हाथ लग सकती है.